यह उन दिनों की बात है , जब पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया जा रहा था। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन में साथ देने के लिए जब भारतीय जनता को आवाज दी , सभी भारतीय एकमत से महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ाई लड़ने को तैयार हो गए। सभी भारतीय अपने – अपने अनुसार अंग्रेजों का बहिष्कार कर रहे थे , अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार कर रहे थे। उनके द्वारा प्रायोजित हर उस चीज का बहिष्कार कर रहे थे जिससे अपनापन का आभास ना हो।
लोग जमी – जमाई सरकारी नौकरी भी छोड़ कर महात्मा गांधी के साथ खड़े थे।
उनमें से एक नाम मुंशी प्रेमचंद का भी है।
मुंशी प्रेमचंद , महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के एक आह्वान से अपनी सरकारी नौकरी त्याग कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने अपने स्तर पर जितना हो भी हो कर सके अग्रणी भूमिका निभाई , जगह – जगह आंदोलन किया , विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और घूम – घूम कर लोगों को प्रेरित किया।
प्रेमचंद के इस समर्पण भाव को देखकर लोग प्रभावित हो रहे थे। स्त्री – पुरुष सभी उनके प्रभाव में असहयोग आंदोलन में शामिल हो रहे थे और महात्मा गांधी के सपने को साकार कर रहे थे। तभी महिलाओं को भी इस आंदोलन में अधिक संख्या में शामिल करने के लिए विचार किया गया। सभी ने सुझाव दिया प्रेमचंद की पत्नी इस संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाएं सभी महिलाएं उनके नेतृत्व में अपना समर्थन देंगी।
काफी सोच विचार के बाद प्रेमचंद की पत्नी ने असहयोग आंदोलन में गृहणी होते हुए भी अग्रणी भूमिका निभाई और अपने नेतृत्व में महिला मंडली का एक बड़ा दल खड़ा किया।
आरम्भ में कुछ संकोच हुआ किंतु स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर लोगों में आत्मसम्मान की अनुभूति होने लगी। इसमें महिला मंडली का विशेष योगदान रहा , जिसने ना सिर्फ अपने घर परिवार के लोगों को प्रेरित किया बल्कि उनसे प्रेरित होकर पूरा भारत अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा हो गया , जिसने अंग्रेजों की नींव हिलाने का कार्य किया।
Moral of this story
You can learn various things from this hindi motivational story based on freedom fighters.
- Self-respect is one of the important aspects of human life.
- You should not let any other person or company rule you.