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भगवान का दोस्त!!

जून की दोपहर थी।आसमान ही नहीं जमीन भी तप रही थी। ऐसे में 8-10 साल का एक लड़का नंगे पांव फूल बेच रहा था। पैरों की जलन उसके चेहरे पर दिख रही थी। वहां से गुजर रहे एक सज्जन को बालक पर दया आ गयी।

वे पास की जूतों की दुकान पर गए और वहां से एक जोड़ी जूते ले आए। जूते बालक को देकर उन्होंने कहा, “लो इन्हें पहन लो।” जूते देखकर बालक खुश हो गया। उसने झटपट जूते पहन लिए।

खुश होकर उसने उन सज्जन का हाथ पकड़ कर पूछा, “क्या आप भगवान हो?” सज्जन चौककर बोले, “नहीं बेटा मैं भगवान नहीं हूँ।”

तो बालक चहककर बोला, “तो आप जरूर भगवान के दोस्त होंगे। क्योंकि मैंने कल रात भगवान से प्रार्थना की थी। है भगवानजी! धूप में मेरे पैर बहुत जलते हैं। मुझे जूते ले दीजिये और उन्होंने आपसे जूते भिजवा दिए।”

बालक की बात सुनकर सज्जन की आंखों में आंसू आ गए। वे ईश्वर को धन्यवाद देते हुए चल दिये।

Moral of Story- सीख

हमें हरसंभव दूसरों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए। न जाने हम कब ईश्वर के दोस्त बन जाएं।

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रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं