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दूसरे का सुख!!

एक जंगल में एक कौवा रहता था। वह अपनी स्थिति से कभी संतुष्ट नहीं रहता था। सदैव उसे कोई न कोई कमी ही दिखाई देती थी। जब वह दूसरे पक्षियों को देखता तो सोचता कि ये सब मुझसे अच्छे हैं।

एक बार उसे एक हंस दिखा। हंस को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया। “अरे! इतना स्वच्छ और श्वेत रंग। यह पक्षी तो अद्भुत है। इसका जीवन शानदार है। इसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता है।”

“मेरा रंग तो काला है। इसके सामने तो मैं बहुत कुरूप हूँ।” कौवा उससे मिलने पहुंचा। उसने हंस के रंग-रूप की भूरि-भूरि प्रसंशा की। लेकिन हंस अपनी प्रसंशा सुनकर खुश नहीं हुआ बल्कि और भी उदास हो गया।

जब कौवे ने कारण पूछा तो हंस बोला, “मेरा रंग कहाँ अच्छा है ? यह फीका और केवल एक ही रंग है। असली सुंदरता देखनी है तो तोते को देखो। जिसमें प्रकृति ने रंगों का अद्भुत संयोजन किया है।”

हरे रंग के शरीर पर गले में सुर्ख लाल रंग का छल्ला कितना सुंदर लगता है!” कौवे ने हंस की बात सुनी तो वह तोते से मिलने के लिए लालायित हो उठा।

थोड़ा ढूंढने के बाद एक आम के पेड़ पर बैठा तोता उसे मिल गया। उसे तोते का रंग-रूप बहुत पसंद आया। वयः तोते की प्रसंशा करने लगा। तोता उसकी बातें सुनकर उदास होकर बोला- “जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था। तब तक मैं भी यही सोचता था कि मैं बहुत सुंदर हूँ। असली सुंदरता तो मोर में है। उसका एक एक पंख अनुपम है।”

अब कौवा मोर से मिलने को उत्सुक हो उठा। पूरा जंगल छान मारने के बाद भी उसे एक भी मोर नहीं मिला। लेकिन उसने तो मोर से मिलने की ठान ली थी। वह शहर की ओर उड़ चला। वहां एक चिड़ियाघर में उसे एक सुंदर मोर दिखा।

लोग उसके बाड़े के चारों ओर भीड़ लगाकर खड़े थे। वे उसकी प्रसंशा कर रहे थे। कौवा मोर के पास गया और बोला- “मित्र, जीवन तो आपका ही सफल है। इतने सुंदर हो कि धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी भी तुम्हें देखने आता है। हमे तो विधाता ने कुरूप बनाया है।”

उसकी बात सुनकर मोर उदास स्वर में बोला- “इस सुंदरता से क्या लाभ! इसकी वजह से मैं कैद में हूँ। ईश्वर ने तुम्हे भले ही कुरूप बनाया है। किंतु तुम्हें स्वतंत्रता भी प्रदान की है। तुम स्वेच्छा से कहीं भी आ जा सकते हो। जो चाहो कर सकते हो।

कौवे को मोर की बात समझ में आ गयी। उस दिन के बाद फिर कभी कौवे ने अपनी स्थिति पर असंतोष व्यक्त नहीं किया।

हम मनुष्यों की स्थिति कौवा, हंस और तोते जैसी ही है। हम अपनी खूबियों, खासियतों पर ध्यान नहीं देते। बल्कि दूसरों से अपनी तुलना करने लगते हैं। यह नहीं सोचते कि हमें ईश्वर ने जो भी दिया है वही हमारे लिए सर्वोत्तम है।

एक बात और ध्यान देने योग्य है कि आपको उतना ही मिलेगा जितने के आप पात्र हैं। उससे अधिक एक रत्ती भी नहीं मिल सकता। ध्यान रखिये यह पात्रता आप निर्धारित नहीं कर सकते बल्कि ईश्वर या प्रकृति निर्धारित करती है।

सीख- Moral

सदैव अपनी स्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरों के सुख, वैभव को देखकर अपनी मानसिक शांति भंग नहीं करनी चाहिए।

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