महिलारोप्य राज्य का राजा महेंद्र वर्मन एक योग्य शासक था। वह अपनी प्रजा को पुत्रवत मानता था। उसी प्रकार वह प्रजा के सुख दुख का ध्यान रखता था। कोई भी व्यक्ति कभी भी उससे मिलकर अपनी समस्या बता सकता था।
उसके राज्य में सभी सुखी थे। किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन राजा महेंद्र वर्मन हमेशा सोचता कि कहीं मुझमें कोई कमी तो नहीं। उसने अपने दरबारियों से अपनी कमियां बताने को कहा। लेकिन सबने उसकी तारीफ ही की।
लेकिन राजा को चैन नहीं आया। अपनी कमियों का पता लगाने के लिए वह वेश बदलकर राज्य में घूमने निकल पड़ा। उसने राज्य में अलग अलग लोगों से राजा के बारे में बात की। लेकिन किसी ने राजा की बुराई नहीं की, न ही कोई कमी बताई।
इस तरह घूमते घूमते राजा महेंद्र वर्मन हिमालय के घने जंगलों में पहुंच गए। वहां एक महात्मा का आश्रम देखकर राजा थोड़ी देर विश्राम करने के लिए उस आश्रम में चले गए। वहां उन्होंने देखा कि एक तेजवान तपस्वी ध्यानमग्न बैठे हैं।
राजा ने पास जाकर उनको प्रणाम किया और सामने बैठ गए। थोड़ी देर बाद महात्मा ने आंखे खोलीं तो राजा को सामने बैठा देखकर उनसे कुशल क्षेम पूछी। महेंद्र वर्मन ने अपने राजा होने की बात को छुपाकर अपना परिचय दिया।
थोड़ी बातचीत के बाद महात्मा ने आश्रम में लगे फलदार पेड़ों से कुछ गोदे तोड़कर राजा को खाने के लिए दिए। राजा ने पहले भी गोदे खाये थे। लेकिन ये गोदे बहुत ही रसीले और मीठे थे। ऐसे गोदे उसने कभी नहीं खाये थे।
आश्चर्यचकित राजा ने महात्मा से पूछा, “भगवन ! ये गोदे तो बहुत ही रसीले और मीठे हैं। इसका क्या कारण है ? महात्मा ने जवाब दिया, ” निश्चय ही राज्य का राजा धर्मात्मा और परोपकारी है। वह न्यायपूर्ण तरीके से राज्य का संचालन करता है। इसीलिए ये गोदे इतने रसीले और मीठे हैं।”
राजा ने फिर प्रश्न किया, “भगवन ! मेरी समझ में नहीं आया कि राजा और गोदों का क्या संबंध है ? क्या आप मुझे समझाने का प्रयत्न करेंगे ?
महात्मा ने उत्तर दिया-
भंते ! जैसा राजा होता है। वैसी ही उसकी प्रजा होती है। यदि राजा धर्मात्मा, न्यायप्रिय और सच्चरित्र है। तो उसके राज्य के प्रजाजन यहां तक कि वनस्पतियां भी उत्तम गुण, स्वभाव वाली हो जाती हैं। इसके विपरीत यदि राजा अधर्मी, अन्यायी होता है तो उसका प्रभाव उसके राज्य की प्रत्येक वस्तु पर पड़ता है।”
राजा कुछ बोला नहीं किन्तु उसने महात्मा के इस कथन का परीक्षण करने का निश्चय किया। उसने वापस आकर बहुत अन्यायपूर्ण शासन किया। प्रजा को खूब परेशान किया। एक साल बाद वह फिर उन महात्मा के आश्रम पर गया।
वहां पर कुशल क्षेम पूछने के बाद महात्मा ने फिर उसे गोदे खाने को दिए। इस बार गोदे इतने कड़वे थे कि राजा उन्हें खा नहीं सका। उसने गोदे थूक दिए और महात्मा से कहा, “भगवन ये तो बहुत कड़वे हैं।”
महात्मा ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “निश्चय ही राजा अधर्मी और अन्यायी है।” राजा महेंद्र वर्मन को उत्तर मिल चुका था। उसने वापस आकर पुनः धर्म और न्यायपूर्ण शासन प्रारम्भ कर दिया।
सीख- Moral of Story
उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति अथवा घर के मुखिया को न्यायपूर्ण, धार्मिक अच्छे चरित्र वाला होना चाहिए। क्योंकि उसके आचरण का प्रभाव पूरे परिवार अथवा सभी अधीनस्थों पर अवश्य ही पड़ता है।