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मानसिक सोच का प्रभाव!!

काशी में एक जनप्रिय राजा राज्य करते थे। उनका नाम अजितसेन था। वे प्रजा का पालन पुत्र की भांति करते थे। उनकी शूरवीरता और प्रजावत्सलता की कीर्ति चारों ओर फैली थी।

काशी में ही मणिभद्र नामक एक चंदन की लकड़ियों का बड़ा व्यापारी भी रहता था। उसका गोदाम चंदन की मूल्यवान एवं उच्च कोटि की लकड़ियों से भरा था। लेकिन इस समय चंदन की मांग कम होने के कारण उसका धंधा मंदा हो गया था।

एक बार राजा हाथी पर सवार होकर नगर के भ्रमण पर निकले। साथ में मंत्रीगण और अन्य दरबारी भी थे। महाराज को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। सभी राजा की जय जयकार कर रहे थे। राजा भी मुदित मन से सबको आशीर्वाद दे रहे थे।

उसी भीड़ में सेठ मणिभद्र भी खड़ा था। अचानक उसे विचार आया कि अगर महाराज मर जाएं, तो उनके अंतिम संस्कार में चंदन की लकड़ी का ही प्रयोग होगा। जिससे मेरी सारी लकड़ी बिक जाएगी। यह विचार उसे जंचा। उसने हाथ उठाकर ईश्वर से प्रार्थना की। हे प्रभु ! मेरी कामना पूर्ण हो।

एक व्यापारी का स्वार्थ देखिए। अपने भले के लिए वह ऐसे जनप्रिय राजा को भी मृत देखना चाहता है। इसी समय प्रसन्नता से लोगों का अभिवादन स्वीकार करते राजा की दृष्टि सेठ मणिभद्र पर पड़ी।

सेठ को देखते ही राजा की भाव- भंगिमा बदल गयी। उनकी आंखों में खून उतर आया। वे अत्यधिक क्रोधित हो गए। उनके मन में तुरंत विचार आया कि इसे फांसी दे देनी चाहिए। किन्तु राजा ने अपने विचारों पर नियंत्रण किया।

राजा ने अपने प्रधानमंत्री सुबुद्धि को बताया कि इस व्यक्ति को देखकर मेरे मन में ऐसे विचार उठ रहे हैं। जबकि मैं इसे जानता भी नहीं हूँ। आप इसका कारण पता लगाइये। प्रधानमंत्री सुबुद्धि बहुत ही बुद्धिमान, अनुभवी और गुणी व्यक्ति था।

सुबुद्धि ने सोचा कि इसका उत्तर मणिभद्र के पास ही होगा। यह सोचकर सुबुद्धि ने मणिभद्र से मित्रता कर ली। एक दिन मित्रता के विश्वास में मणिभद्र ने प्रधानमंत्री सुबुद्धि को राजा की मृत्यु की कामना वाली बात बता दी।

सुबुद्धि तुरंत समझ गया कि सेठ के नकारात्मक विचारों ने ही राजा के ऊपर अपना प्रभाव दिखाया है। अब वह अगर यह बात राजा को बताता है तो सेठ को मृत्युदंड मिलेगा। मित्र होने के नाते यह ठीक नहीं होगा।

अगर राजा को जवाब नहीं दिया तो यह राजद्रोह होगा। प्रधानमंत्री ने काफी विचार के बाद इसका एक उपाय निकाला। जिससे दोनों पक्षों को कोई हानि न हो। वह राजा के पास गया और बोला, “महाराज ! जो नया महल बन रहा है। उसके खिड़की दरवाजे शुद्ध चंदन के होने चाहिए।”

“जिससे चौबीसों घण्टे महल चंदन की खुशबू से ओतप्रोत रहे। आने वाले अतिथि भी इससे बहुत प्रसन्न होंगे। राजा को मंत्री की यह बात बहुत पसंद आई। उसने तत्काल शुद्ध चंदन की लकड़िया खरीदने का आदेश दिया।”

पूरे नगर में शुद्ध चंदन की लकड़ियां केवल सेठ मणिभद्र के पास ही थीं। उसका सारा चंदन राजा द्वारा खरीद लिया गया। साथ ही और चंदन की लकड़ियों का आर्डर भी दिया गया। अब तो मणिभद्र बहुत ही खुश हुआ।

वह ईश्वर से राजा के दीर्घायु होने की प्रार्थना करने लगा। राजा की सर्वत्र प्रसंशा करने लगा। कुछ समय बाद एक दिन फिर राजा की सवारी उधर से निकली। उस दिन मणिभद्र को देखकर राजा को क्रोध नहीं आया बल्कि प्रेम महसूस हुआ।

राजा ने फिर यह बात मंत्री को बताई। मंत्री ने कहा, “महाराज ! अगर आप मणिभद्र को क्षमा करो तो मैं इसका कारण बता सकता हूं।” राजा के आश्वासन देने पर मंत्री ने कहा-

“महाराज यह सब मानसिक सोच का प्रभाव है। एक दूसरे की मानसिक सोच व्यक्तियों पर प्रभाव डालती है। अगर आप किसी के प्रति गलत सोच रखते हैं। तो उसकी सोच भी आपके विचारों के कारण आपके प्रति गलत हो जाएगी।”

मणिभद्र ने आपके लिये गलत सोचा। फलस्वरूप आपकी सोच भी उसी के अनुरूप हो गयी। अब वह आपके लिए अच्छा सोचता है। इसलिए आपके भी विचार उसके लिए अच्छे हो गए हैं। सब मानसिक सोच का प्रभाव है।”

कहानी से सीख- moral of story

यह moral story हमें सिखाती है कि हमें सदैव दूसरों के प्रति अपनी सोच अच्छी रखनी चाहिए। क्योंकि हमारी मानसिक सोच हमारे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है।

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