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स्कूल की दोस्ती!!

नरेंद्र बिहार के एक छोटे से गांव के सर्वोदय विद्यालय में पढता था। दरअसल नरेंद्र का परिवार दिल्ली शहर का था, क्यों की नरेंद्र के पिता भारतीय सेना में थे इसलिए दो साल पहले ही उसके पिताजी का उस गांव में बदली हुई थी। नरेंद्र पढ़ाई और खेल में बहुत अच्छा था, इसलिए वह उस गांव के विद्यालय में बहुत लोकप्रिय था।

एक दिन अचानक उसके पिताजी की बदली पटना शहर में हुई। दो महीने के अंदर नरेंद्र के परिवार को वह गांव छोड़कर पटना जाना पढ़ रहा था। दूसरे विद्यालय में वह कैसे जाएगा, उसका मन लगेगा या नहीं यह सोचकर नरेंद्र परेशान था।

उसकी परेशानी को देखकर उसकी की माँ ने उसे समझाया, “बेटा, हमें यह गांव छोड़कर तो जाना ही पड़ेगा। परंतु तुम्हें ज़्यादा निराश होने की जरूरत नहीं, थोड़े ही दिनों में वहां भी तुम्हारे मित्र बन जाएंगे और तुम्हारा मन स्कूल व मित्रों में लगने लगेगा।”

ट्रांसफर का ऑर्डर लेकर जब नरेंद्र के पिता अपने परिवार के साथ पटना पहुँचे तो यह नया शहर नरेंद्र के मन को एकदम भा गया। वहां शीघ्र ही एक अच्छे विद्यालय में नरेंद्र को दाखिला मिल गया। परंतु जब नए विद्यालय में नरेंद्र को उसकी कक्षा के विद्यार्थियों ने चिढ़ाना शुरू किया तो उसे बहुत बुरा लगा। नरेंद्र बहुत दुखी लगने लगा।

एक दिन जब उसकी माँ ने उससे खुलकर इसका कारण पूछा तो फिर नरेंद्र ने माँ से सभी बातें स्पष्ट बता दीं। वह माँ से यह बताते हुए कि कक्षा के विद्यार्थी उसे चिढ़ाते है और उसे अपने साथ नहीं खेलने नहीं देते है।

उसकी माँ ने उसे समझाया, “बेटा विद्यालय तो जाना ही होगा। जब तुम्हें बच्चे चिढ़ाएं तो तुम कुछ मत कहना और न ही मुँह बनाना। बल्कि उनके साथ हँसने लगना। और तुम बच्चों से खुद ही बात करने की कोशिश करना। उन्हें यदि पढ़ाई में कोई दिक्कत होती हो तो उनकी मदद करना। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”

नरेंद्र माँ की बताई तरकीब के अनुसार चलता गया। अब पुराने विद्यालय की ही तरह नरेंद्र इस विद्यालय में भी प्रसिद्ध होने लगा था। अपनी पढ़ाई और मेहनत के दम पर उसने अध्यापकों के बीच भी अपनी अच्छी पहचान बना ली थी। अब सब बच्चे भी उससे मित्रता करने को आतुर थे।

Moral of the Story – जीवन में कोई सही निर्णय नहीं है, क्योंकि हम जो भी निर्णय लेते हैं वह नया और अप्रत्याशित होता है।

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