शांतिनगर में एक अमीर व्यापारी रहता था। थोड़ा बहुत बूढ़ा होने के बाद भी वह बहुत मेहनत करता था। एक दिन उन्हें न जाने क्या सूझा कि अपने एक नौकर को बुलाकर कहा, ‘पता करो हमारे पास कितना धन है और कब तक के लिए पर्याप्त है?”
कुछ दिन बाद नौकर हिसाब लेकर आया और सेठ जी से बोला, “जिस हिसाब से आज खर्चा हो रहा है, उस तरह अगर आज से कोई कमाई न भी हो तो आपकी अगली दो पीढ़िया खा सकती हैं।”
व्यापारी चौंक पड़े। उन्होंने पूछा, “तब तीसरी और चौथी पीढ़ी का क्या होगा?” व्यापारी सोचने लगे और तनाव में आ गए। फिर बीमार रहने लगे। बहुत इलाज कराया मगर कुछ फर्क नहीं पड़ा।
एक दिन व्यापारी का एक दोस्त हालचाल पूछने आया। व्यापारी बोले, “इतना कमाया फिर भी तीसरी और चौथी पीढ़ी तक के लिए कुछ नहीं है। उसका दोस्त बोला, “एक साधु थोड़ी दूर पर रहते है अगर उन्हें सुबह को खाना खिलाएं तो आपका रोग ठीक हो जाएगा।”
अगले ही दिन व्यापारी भोजन लेकर साधु जी के पास पहुंचे। साधु जी ने उसे आदर के साथ बैठाया। फिर अपनी पत्नी को आवाज दी, “व्यापारी जी खाना लेकर आए हैं।”
इस पर साधु जी की पत्नी बोली, “आज खाना तो कोई दे गया है।” साधु जी ने कहा, “माफ़ करना व्यापारी जी, आज का खाना तो कोई दे गया है। इसलिए आपका भोजन स्वीकार नहीं कर सकते। हमारा नियम है कि सुबह जो एक समय का खाना पहले दे जाए, हम उसे ही स्वीकार करते हैं। मुझे क्षमा करना।”
व्यापारी बोले, “क्या कल के लिए ले आऊं?” इस पर साधू जी बोले, “हम कल के लिए आज नहीं सोचते। कल आएगा, तो ईश्वर अपने आप भेज देगा।”
व्यापारी जी घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर वह सोचते रहे कि कैसा आदमी है यह। इसे कल की बिल्कुल भी चिंता नहीं है और मैं अपनी तीसरी और चौथी पीढ़ी तक को लेकर रो रहा हूं। उनकी आंखें खुल गईं। व्यापारी ने सारी चिंता छोड़कर सुख से रहने लगे।