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बुरी संगति का फल !!

जंगल में एक सुंदर स्वच्छ जल का तालाब था। उसके किनारे एक बरगद का विशाल वृक्ष था। उस पर एक कौवा रहता था। नीचे तालाब में एक हंस रहता था। हंस स्वभावतः सदाचारी और परोपकारी था।

एक दिन कौवे ने सोचा कि हंस यहां साथ ही रहता है, क्यों न इससे मित्रता कर ली जाय। यह सोचकर उसने हंस से मित्रता का प्रस्ताव रखा। स्वभाव से भोले हंस ने उसकी मित्रता स्वीकार कर ली।

यद्यपि नीति कहती है कि अपने से विपरीत स्वभाव वालों से मित्रता नहीं करनी चाहिए। उसका परिणाम बुरा होता है। तथापि दोनों की मित्रता गाढ़ी हो चली थी। हंस तालाब से निकलकर पेड़ पर आ जाता और कौवे से बातें करता।

इस तरह कई महीने बीत गये। हंस को भी कौवे का साथ अच्छा लगने लगा। एक दिन एक राहगीर सैनिक दोपहर में उस पेड़ के नीचे आकर रुका। अच्छी छाया और तालाब के कारण ठंडी जगह उसे बहुत पसंद आई। उसने वहीं साथ लाया हुआ भोजन किया और पेड़ की छाया में आराम करने लगा।

दोपहर के सूरज की सीधी किरणें उसके चेहरे पर पड़ रहीं थीं। यह देखकर पेड़ पर बैठे परोपकारी हंस ने अपने पंख फैलाकर छाया कर दी। जिससे सैनिक के चेहरे पर धूप न पड़े। लेकिन दुष्ट स्वभाव के कौवे को यह बात पसंद नहीं आयी।

उसने राहगीर सैनिक के चेहरे पर बीट कर दी और उड़ गया। सैनिक बड़ा गुस्सा आया उसने ऊपर देखा तो उसे हंस नजर आया। उसने सोचा कि इसी हंस ने मुझपर बीट की है। सैनिक ने क्रोध में अपना धनुष उठाया और बाण चला दिया।

बाण सीधा हंस को लगा और वह निष्प्राण होकर जमीन पर गिर पड़ा। परोपकार करते हुए भी बुरी संगति के कारण हंस को यह परिणाम भोगना पड़ा।

Moral- सीख

समान स्वभाव वाले अच्छे लोगों से मित्रता करनी चाहिए। क्योंकि आप कितने ही अच्छे क्यों न हों यदि आपके मित्र अच्छे नहीं हैं। तो आपकी गिनती भी अच्छे लोगों में नहीं होगी

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