शहर के मुख्य चौराहे पर एक लड़का तरबूज और दूसरा ककड़ी की दुकान लगाकर बैठा था। उधर से गुजरने वाला एक व्यक्ति रुककर तरबूज की दुकान पर गया। एक तरबूज उठाकर वहां मौजूद लड़के से उसने पूछा, “यह तरबूज कैसा है?”
लड़के ने उत्तर दिया, “यह तो अंदर से सड़ा है, श्रीमान। आप दूसरा ले लीजिए।” व्यक्ति ने कहा कि जब एक सड़ा है तो और भी सड़े होंगे। वह बिना तरबूज लिए ही आगे बढ़ गया। ककड़ी वाले लड़के की दुकान पर जाकर उसने पूछा कि ककड़ी कैसी है?
ककड़ी वाले लड़के ने उत्तर दिया, “एकदम ताजी और ठंडी है, श्रीमान।” उस व्यक्ति ने ककड़ी खरीदी और चला गया। ग्राहक के जाने के बाद ककड़ी वाले लड़के ने तरबूज वाले से कहा, “तू बहुत बड़ा मूर्ख है। कोई अपने सामान को भी खराब बताता है भला। इस तरह तो तू कुछ भी नहीं बेच पायेगा।”
मुझे देख, मैंने तीन दिन की बासी ककड़ी ताजी बताकर बेंच दी। ग्राहक भी खुशी खुशी ले गया। इस पर तरबूज वाला लड़का बोला, “चाहे मेरा माल बिके या नहीं। मैं झूठ नहीं बोलूंगा। मैं झूठ बोलकर किसीको ठगूंगा नहीं। सत्य की हमेशा विजय होती है। इसी सच्चाई के दम पर एक दिन मेरा माल बिकेगा।”
दूसरे दिन ककड़ी लेने वाला ग्राहक वापस आया। बासी ककड़ी देने के लिए उसने ककड़ी बेचने वाले लड़के को खूब फटकार लगाई। उस दिन वह तरबूज लेकर गया। ईमानदारी और सच्चाई के कारण लड़के के तरबूज की बिक्री बढ़ने लगी।
धीरे धीरे उसकी ख्याति पूरे शहर में फैल गयी। शहर के दूसरे किनारे से भी लोग उसकी दुकान से तरबूज लेने आने लगे। क्योंकि सबको विश्वास था कि लड़का झूठ नहीं बोलता। इसका माल अच्छा ही होगा।
इस प्रकार धीरे धीरे लड़का उस शहर का एक प्रसिद्ध व्यवसायी बन गया। यह सब सच्चाई और ईमानदारी के कारण हुआ।
Moral of Story – सीख
यह कहानी हमें बताती है कि सच्चाई और ईमानदारी से किया गया काम जरूर सफल होता है।