Breaking News

पिंजरे में बंद शेर !!

एक गाँव के निकट एक घना जंगल था. उस जंगल में रहने वाले एक शेर ने पूरे गाँव में आतंक मचा रखा था. वह रोज़ गाँव में घुस आता और मुर्गियों, बकरियों और अन्य पालतू पशुओं को मार कर खा जाता. शाम को जंगल से गुजरने वाले राहगीर भी उसका शिकार बन जाते. उसके डर से अंधेरा होने के बाद से गाँव वालों ने अपने घरों से बाहर निकलना छोड़ दिया था.

एक दिन गाँव के साहसी युवकों ने शेर के आने वाले रास्ते में पिंज़रा रखकर उसे पकड़ लिया. रात हो चली थी, इसलिए वे पिंजरे को वहीं छोड़कर अपने घर वापस आ गए.

इधर पिंजरे में बंद शेर ने पिंजरे से बाहर निकलने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफ़ल न हो सका. उसने मदद के लिए काफ़ी शोर मचाया, किंतु वहाँ कोई सुनने वाला नहीं था. वह थक-हार कर पिंजरे में बैठ गया.

कुछ देर बाद उस रास्ते से एक ब्राह्मण गुजरा. वह दूसरे गाँव में पूजा करके वापस लौट रहा था. शेर ने जब उसे देखा, तो आवाज़ लगाकर उसे अपने पास बुलाया और गिड़गिड़ाते हुए बोला, “ब्राह्मणदेव, मुझे इस पिंजरे से बाहर निकालिए. मैं आपका जीवन भर आभारी रहूंगा.”

ब्राहमण डरते-डरते बोला, “मैंने तुम्हें पिंजरे से बाहर निकाला, तो तुम मुझे मारकर खा जाओगे.”

“मैं वचन देता हूँ ब्राहमणदेव कि मैं आपको नहीं मारूंगा और चुपचाप जंगल चला जाऊंगा. मुझ पर विश्वास करें.” शेर ने विनती की.

ब्राह्मण एक दयालु व्यक्ति था. उसे शेर पर दया आ गई और उसने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही शेर पिंजरे से बाहर आ गया और ब्राह्मण पर झपटने लगा.

यह देख ब्राह्मण डर के मारे पीछे हटते हुए बोला, “तुमने मुझे वचन दिया था कि तुम मुझे नहीं मारोगे. तुम अपना वचन कैसे तोड़ सकते हो? मुझे यहाँ से जाने दो.”

“मैं कई दिनों से भूखा हूँ और मेरा शिकार मेरे सामने है. मैं तुम्हें जाने क्यों दूं? तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊँगा.” शेर दहाड़ते हुए 

बोला.

पेड़ पर बैठा एक बंदर ये सारा नज़ारा देख रहा था. वह शेर की धूर्तता से वाकिफ़ था. ब्राह्मण के बचाव के लिए वह पेड़ से नीचे उतरा और बोला, “क्या बात है? आप लोगों के बीच क्या बहस चल रही है?”

पुजारी ने उसे पूरी बात बता दी, जिसे सुनकर बंदर हंस पड़ा, “क्या मज़ाक कर रहे हो, ब्राह्मणदेव? जंगल का राजा इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजरे में कहा समा सकता है? मैं तो ये मान ही नहीं सकता.”

इस पर शेर बोला, “ये बिल्कुल सच है.”

“अपनी आँखों से देखे बिना मैं आपकी बात भी नहीं मान सकता वनराज.” बंदर शेर से बोला.

“मैं अभी तुम्हें इस पिंजरे में जाकर दिखाता हूँ.” कहकर शेर पिंजरे के अंदर चला गया.

“लेकिन ये पिंजरा तो खुला हुआ है. आप तो इससे खुद ही बाहर आ सकते थे.” बंदर बोला..

बंदर की इस बात पर शेर चिढ़ गया और बोला, “इसका दरवाज़ा बाहर से बंद था.”

बंदर ब्राह्मण से बोला, “ज़रा दिखाओ तो ये दरवाज़ा कैसे बंद था?”

ब्राह्मण ने आगे बढ़कर पिंजरे का दरवाज़ा बंद कर दिया. शेर फिर से पिंजरे में बंद हो चुका था.

बंदर ब्राह्मण से बोला, “इस धूर्त शेर को यहीं बंद रहने दो. अपना वचन तोड़ने का फल इसे मिलना चाहिए.”

इसके बाद बंदर और ब्राह्मण वहाँ से चलते बने. अगले दिन गाँव वालों ने आकर शेर का काम-तमाम कर दिया.

सीख  – धूर्तता का परिणाम बुरा होता है. 

Check Also

malik-naukar

जीवन को खुशी से भरने की कहानी

रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं