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कैसे शेर बना माँ दुर्गा का वाहन!!

कैसे ये पशु इन देवी-देवताओं के वाहन बने और इसके पीछे क्या कारण था?  इन प्रश्नों के उत्तर में जो कहानी छुपी हुई है, वो बड़ी ही रोचक हैं. ये तो अवश्य है कि हर पशु वाहन की अपनी एक पृथक महत्ता है.

शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा का वाहन शेर है, ये संपूर्ण जगत जानता है. उन्हें ‘माँ शेरावाली’ भी कहा जाता है. आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि कैसे शेर माँ दुर्गा का वाहन बना. इसके पीछे दो कथायें प्रचलित हैं.

प्रथम कथा

माँ दुर्गा आदि शक्ति देवी पार्वती का ही प्रतिरूप है. देवी पार्वती हिमालय राज की पुत्री थी. बचपन में ही उन्होंने भगवान शिव को अपना पति चुन लिया था. अतः वह सदा उनकी भक्ति और आराधना में लीन रहती थी.

विवाह योग्य होने पर भोले शंकर को पति के रूप में पाने की कामना में वह एक ऊँचे पर्वत पर जाकर तप करने लगी. वहाँ उन्होंने कई वर्षों तप किया. उनके तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें दर्शन दिया और स्वयं को पति के रूप में प्राप्त करने का वरदान उन्हें प्रदान किया.

इसके उपरांत दोनों का विवाह बड़ी ही धूम-धाम से संपन्न हुआ, जिसमें सारे देवी-देवता, ऋषिगण और शिवगण सम्मिलित हुए. विवाह उपरांत उनके दो पुत्र श्री गणेश और कार्तिकेय हुए.

भगवान शिव को पति स्वरुप प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक किये गए कठोर तप के फलस्वरूप देवी पार्वती का गौर वर्ण सांवला हो गया था. एक दिन कैलाश पर्वत पर बैठकर हास-परिहास करते समय भगवान शिव ने माता पार्वती को ‘काली’ कह दिया.

स्वयं के लिए ‘काली’ संबोधन सुन देवी पार्वती रुष्ट हो गई और गौर वर्ण की प्राप्ति के लिए कैलाश छोड़कर तपस्या करने वन में चली गई.

वन में एक वृक्ष ने नीचे बैठकर वे कठोर तप करने लगी. इस बीच एक दिन एक भूखा शेर भटकते हुए वहाँ आ पहुँचा. देवी पार्वती को देख उनका भक्षण कर अपनी क्षुधा शांत करने की मंशा से वह उनके समीप पहुँचा.

किंतु देवी पार्वती के तप का तेज इतना था कि वह शेर उनका भक्षण न कर सका और वहीँ बैठकर उनकी तपस्या समाप्ति की प्रतीक्षा करने लगा. माता पार्वती को तप करते हुए कई वर्ष बीत गए. इतने वर्षों तक वह शेर वहीं उनके समीप बैठा रहा. एक क्षण को भी वह अपने स्थान से नहीं हिला.

अंततः देवी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए और गौर वर्ण का वरदान प्रदान किया. वरदान प्राप्ति उपरांत शिव जी के निर्देशानुसार देवी पार्वती गंगा के तट पर पहुँची.

गंगा में स्नान उपरांत उनके भीतर का काला स्वरुप देवी के रूप में बाहर निकल गया और उन्हें गौर वर्ण प्राप्त हुआ. तब से उन्हें “माँ गौरी” भी कहा जाता है. उनके काले स्वरुप को “देवी कौशकी” कहा जाता है.

जब माता पार्वती स्नान कर बाहर आई, तो अपने तप स्थल पर एक शेर को बैठा हुआ पाया. बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका भक्षण करने आये शेर ने उन्हें अपना ग्रास नहीं बनाया और इतने वर्षों तक उनके समीप बैठा रहा. इस तरह वह भी उनके तप में सम्मिलित रहा.

प्रसन्न होकर वर्षों तक तप में साथ देने वाले शेर को उन्होंने अपना वाहन बना किया. तब से ही माँ दुर्गा का वाहन शेर है और उन्हें माँ ‘शेरावाली” भी कहा जाता है.

द्वितीय कथा

इस कथा का उल्लेख स्कंधपुराण में मिलता है. इसके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और राक्षस तारक तथा और उसके दो भाइयों सिंहमुखम और सुरापदमन के मध्य एक बार युद्ध हुआ. जिसमें कार्तिकेय ने उन्हें पराजित कर दिया. पराजय उपरांत सिंहमुखम कार्तिकेय से क्षमा याचना करने लगा. कार्तिकेय ने उसे क्षमा कर शेर बना दिया और माँ दुर्गा के वाहन बनने का आशीर्वाद दिया. तब से सिंहमुखम शेर के रूप में माँ दुर्गा की सवारी है.

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