प्रिंसिपल वर्मा जी जैसे ही घर से निकले पीछे से उनके पिता ने आवाज लगाई- बेटा जी, मेरी आँख का ड्रॉप्स खत्म हो गया तीन दिन हो गए ,तुम आफिस जा रहे हो तो ले आना।
तब वर्मा जी गुस्सा होते हुए बोले-पापा, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से टोका मत करो, अपशगुन होता है।
तब वह बोले-बेटे, तुम शिक्षा -विभाग के इतने बड़े अधिकारी होकर भी शगुन-अपशगुन को मानते हो? अब नही बोला करूँगा।
वर्मा जी बिना कुछ बोले चल दिये।
कुछ ही देर में वह एक विशाल सभा कक्ष में जाकर मंच पर बैठ गए और वहां उपस्थित अधिकारी-कर्मचारियों के अभिवादन के बाद बोले- साथियों शासन के आदेशानुसार यह दो दिवसीय मीटिंग हो रही है, जिसमे हमे स्कूल चलो अभियान की ट्रेनिंग लेना है।
तभी उनकी नज़र देर से मीटिंग में
प्रवेश करते हुए एक शिक्षक मोहन शर्मा जी पर पड़ी, तो चिल्लाकर बोले- मास्टर मोहन शर्मा ,यह कोई टाइम है मीटिंग में आने का? क्यों न आपका एक दिन का वेतन काटा जाए।
आज लेट क्यों आये इस बात का स्पस्टीकरण कल लेकर आना।
मास्टर मोहन शर्मा जी बिना कुछ बोले
सर झुकाए खड़े रहे,जब उन्होनें अपना सिर सीधा किया तब लोगों ने देखा उनकी आंखों में आंसू थे।
मीटिंग समाप्त होने पर प्रिंसिपल वर्मा जी ने अपने बड़े बाबू को बुलाकर एक दिन के वेतन काटने का आर्डर टाइप करने का आदेश दिया। तब बड़ा बाबू बोला-साहब जी,आप उनकी एक दिन का नही, एक महीने का वेतन भी रोकने का आदेश देंगे तो भी वह आपत्त्ति नही करेंगे।सिर झुकाकर आंसू बहाते रहेंगे।
यह नोकरी उनकी कमजोरी भी है और मजबूरी भी है।
प्रिंसिपल वर्मा जी बोले-जो भी हो, अधिकारी लोग अक्सर दिमाग से काम लेते हैं, जो अधिकारी दिल से काम लेता है। वह अधिकारी अक्सर फेल हो जाता है।कल उनके एक दिन के वेतन काटने का आदेश टाइप करके ले आना।
तब बड़े बाबू ने कहा-सर जी, एक-दो दिन रुक जाईये।
तब प्रिंसिपल वर्मा बोले- देखिये बड़े बाबू, पेंडिंग काम एक लाश के समान होता है,जितनी देर करोगे उतनी ही सड़ांध होगी।
मीटिंग समाप्त होने बाद वर्मा जी अपने घर
पहुंचे ,दरवाजे पर टकटकी लगाए उनके पिता बैठे थे।उनकी आंखें सवाल पूछ रही थीं कि आंखों का ड्रॉप्स क्यों नही लाये।
घर मे प्रवेश करते ही वर्मा जी ने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई, उनके पास आने पर एक पेन ड्राइव देकर बोले- लीजिये तुम्हारी फरमाइश की नई फ़िल्म ।
वह बोलीं–मैंने कब फरमाइश की?चलो ले आये अच्छा किया, लेकिन आपके पापा तीन दिन से आंखों का ड्रॉप्स मांग रहे हैं वह भी ले आते।
वर्मा जी बोले-चलो,अब मूंड खराब मत करो। वो फ़िजूल की फरमाइश करते रहते हैं।चलो फ़िल्म देखें।
अगले दिन वर्मा जी मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे कि तभी बड़े बाबू आ गए और मास्टर मोहन शर्मा के एक दिन के वेतन काटने के आदेश
हस्ताक्षर हेतु सामने रख दिया। वर्मा जी ने वह आदेश पढ़कर हस्ताक्षर कर के अपने पास रख लिया,
बड़े बाबू ने कहा- सर जी,अभी आप भी मीटिंग में जा रहे हैं, मुझे भी वही चलना है,सर जी, आपकी शान के विरुध्द एक निवेदन है,अगर उचित समझें तो रास्ते मे मास्टर मोहन शर्मा जी का घर है,उनके पिता बहुत बीमार हैं सिर्फ एक मिनिट उनको देखते हुए चलें?
वर्मा जी ने बहुत देर तक सोचने के बाद स्वीकृति दे दी, फिर क्या था, दोनों कुछ देर में ही शर्मा जी के घर पहुंच गए।
मास्टर मोहन शर्मा अपने घर के बाहर
अपने बीमार विकलांग पिता को स्नान करा रहे थे।
अपने अधिकारी को सामने पाकर शर्मा जी चोंक पड़े हाथ जोड़कर बोले-साहब जी,आप मेरे घर आये,मेरे अहोभाग्य, साहब जी, यह मेरे पिता जी हैं,इन्होंने मजदूरी करके मुझे पाला है,इन्होंने पूरा जीवन मेरी परवरिश में लगा दिया।मुझे जवान करते-करते खुद बूढ़े हो गए। बिल्कुल आपके पिता के समान।
आज यह बीमार हैं इसलिए मेरा भी फ़र्ज़ है कि इनकी सेवा करूँ। साहब जी अब आप ही बताइए दुनियाँ की हर चीज खोने के बाद मिल सकती है, लेकिन अपने पिता को खो दिया तो फिर इनको सपने में भी पाना कठिन है। आप मेरा एक दिन का वेतन काट रहे हैं।मुझे जरा भी दुख नहीं है भले महीने भर का वेतन कट जाए, भूख लगेगी तो भीख मांग लूंगा,लेकिन अपने पिता की सेवा में कमी नही कर सकता।
यह सुनकर वर्मा जी ने वेतन काटने वाले आदेश को फाड़कर फेंक दिया, और मास्टर मोहन शर्मा के कांधे पर हाथ रखकर बोले-शर्मा जी, आपकी पितृ-भक्ति के आगे नममस्तक हूँ।
फिर वर्मा जी मीटिंग में थोड़ी देर बैठे और उठकर वहां से सीधे अपने घर आ गए। वहां उन्होंने अपने पापा को इधर-उधर ढूंडा लेकिन वह नही मिले।
तभी उनके पास किसी का मोबाइल कॉल आया-साहब जी, आपके पिता को कोई गाड़ी वाला टक्कर मार कर भाग गया, जल्दी आइए। वह अंतिम सांस गिन रहे हैं।
वर्मा जी तत्काल भागे,
उन्होंने देखा अस्पताल के जनरल वार्ड के बेड पर उनके पिता गम्भीर हालत में पड़े हुए हैं।
वर्मा जी उनसे लिपट कर रो पड़े , और बोले-पापा जी, आप इस हाल में?
लड़खड़ाती ज़ुबान में वह बोले-बेटा, जब तुम्हारी माँ की मृत्यु हुई थी,तब तुम बहुत छोटे थे।लोगो ने बहुत कहा कि दूसरी शादी कर लो। लेकिन मैंने अपना जीवन तुम्हें इन्सान बनाने में लगा दिया,लेकिन निश्चित ही मेरी परवरिश में कुछ कमी रह गई,अपनी आंख के इलाज के लिए मुझे अकेला अस्पताल आना पड़ा। अब मेरा अंतिम समय आ गया है,तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देता हूँ।
तब वर्मा जी हाथ जोड़कर बोले-पापा जी,मुझे माफी मांगना नही आता, लेकिन मुझे इतना पता है। आपको माफ करना आता है।प्लीज मुझे माफ़ कर दो।
लेकिन जिसे माफ करना था वह दुनियाँ छोड़कर जा चुका था।
वर्मा जी बिलखकर रो पड़े। तभी वहां मास्टर मोहन शर्मा ने आकर रुमाल से उनके आंसू पोंछते हुए कहा-साहब जी,हम अपने असहाय बुजुर्गों को खोने के बाद उनके उपकारों को याद करके रोते हैं। अगर उनके जीवनकाल मे ही उनके उपकारों को याद करते रहें तो कभी बाद में रोना या पछताना न पड़े।
मानव भूल जाता है कि उनका वर्तमान काल भी कभी न कभी भूतकाल होगा।हमारे धर्म शास्त्र सदियों पहले ही लिख चुके हैं- पितृ देवो भवः। यह असत्य नही है, लेकिन हम पुराणों के साथ नही ,ज़माने के साथ चलते हैं ||
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