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सनातन धर्म में वैशाख मास का महत्व!!

सनातन धर्म में वैशाख मास का काफी महत्व है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है।
इस साल यह शुभ तिथि ३ मई दिन मंगलवार को है । इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। यह पर्व शोभन, मातंग और लक्ष्मी योग में मनाया जाएगा। इस साल तृतीया तिथि मंगलवार को रहेगी। इस पर्व पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग होना विशेष शुभ रहेगा।
अक्षय तृतीया का पर्व बेहद शुभ और सौभाग्यशाली माना जाता है।इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है।
अक्षय तृतीया के दिन को अत्यंत शुभ मानने को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं इस दिन के महत्व को और ज्यादा बढ़ा देती हैं।

यहां हम अक्षय तृतीया से जुड़ी 5 कथाओं के बारे में जानेंगे-
भगवान परशुराम जन्मदिवस :
भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया को ही हुआ था। इसलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं। परशुराम महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पराक्रम के बल से 21 बार पृथ्वी को छत्रिय विहीन कर पृथ्वी को ब्राह्मणों को दान कर दी थी। यही वजह है किनअक्षय तृतीया के शुभ दिन भगवान विष्‍णु की उपासना के साथ परशुराम जी की भी पूजा की जाती है।
ब्रह्मर्षि परशुराम के सामर्थ्य के लिए निम्नलिखित श्लोक रचा गया है:-
अग्रतः चतुरो वेदाः, पृष्ठतः सशरः धनुः|
इदं ब्राह्मः, इदं क्षात्रः, शास्त्रादपि शरादपि||
अर्थात् परशुराम जी के समक्ष चारो वेदों का ज्ञान, पीठ पर वाणों से भरा तरकशविद्यमान था| ब्राह्म और क्षात्र गुण सम्पन्न यह ऋषि शास्त्र से या शस्त्र से हर हालत में विजय पाने में समर्थ थे| इन्होने स्वयं भगवान शंकर से शस्त्र की शिक्षा ली थी और शंकर ने उन्हें अपना एक धनुष उनकी वीरता से प्रसन्न होकर दिया था जिसपर बाण चढ़ाने वाले सिर्फ विष्णु या उनके अवतार ही हो सकते थे। इन्हीं गुणों के कारण इन्हें ब्रह्मक्षत्रिय भी कहते हैं।
देवी अन्नपूर्णा जयंती:
मान्यता है कि भंडार और रसोई की देवी माता अन्नपूर्णा का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। अक्षय तृतीया को मां अन्नपूर्णा की भी पूजा की जाती है। मां अन्नपूर्णा के प्रसन्न हो जाने पर कभी भी अन्न के भंडार खाली नहीं रहते। यानी संपन्ना और खुशहाली रहती है।
सुदामा की कृष्ण से मुलाकात :
भगवान कृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा की कहानी तो जग में विख्यात है। कहा जाता है कि गरीब ब्राह्यमण सुदामा अक्षय तृतीया के दिन भगवान कृष्ण से मुलाकात करने गए थे। भगवान को सुदामा उपहार में सूखे चावल भेंट किए थे जिसके बदले भगवान कृष्ण ने उन्हें दो लोकों का स्वामी बना दिया था। मान्यता है कि आज के दिन भगवान विष्णु को चावल चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
द्रौपदी का अक्षय पात्र:
पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है कि पांववों की पत्नी द्रौपदी को भगवान विष्णु की उपासना करने पर आज के दिन ही अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र का भोजन कभी घटता नहीं था।
गंगा का पृथ्वी पर अवतरण-
अक्षय तृतीया से पांचवी कथा है महाराज भगीरथ से प्रसन्न होकर मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण की। कहा जाता है कि हजारों की साल की तपस्या के बाद अक्षय तृतीया के दिन जही मां गंगा पृथ्वी पर आई थीं। महाराज भगीरथ भगवान राम और उनके पिता राजा दशरथ के पूर्वज थे।
अक्षय तृतीया का दिन विवाह, वाहन खरीदने और सोना आदि खरीदने के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु का विवाह इसी दिन हुआ था। यानी अक्षय तृतीया के दिन विवाह करने वाले दंपति माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की जोड़ी की तहर पूरे जीवन पर सुखी और प्रसन्न रहते हैं। अक्षय तृतीया को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है।
मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले दान का फल अक्षय होता है यानी कई जन्मों तक इसका लाभ मिलता है। अक्षय तृतीया पर दान करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है, इसलिए इसे दान का महापर्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान करके जौ का दान अवश्य करना चाहिए, इससे मनुष्य के सभी पापा नाश हो जाते हैं।अक्षय तृतीया पर कलश का दान व पूजन अक्षय फल प्रदान करता है। इस जल से भरे कलश को मंदिर या किसी जरूरतमंद को दान करने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही पितरों को भी अक्षय तृप्ति होती है और नवग्रह की शांति होती है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन श्रीरामचरित मानस का पाठ करना चाहिए। साथ ही आपको भगवान विष्णु के दसावतार की कथा का पाठ करना चाहिए। इनका पाठ करने पर आपको ऋषियों और महान संतों के दर्शन का फल…….

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