एक समय की बात है, एक जंगल में एक बाघ रहता था। एक दिन, बाघ अपनी गुफा से बाहर निकल आया और शिकार की तलाश में चला गया। थोड़ा देर चलने के बाद बाघ ने एक हिरन की शिकार की। जैसे-जैसे बाघ अपने भोजन का आनंद ले रहा था, एक छोटी हड्डी उसके जबड़े में फंस गई।
उसने अपने पंजे से हड्डी बाहर निकालने कोशिश की, पर उस की सारी कोशिशे नाक़ामयाग रही।
एक छोटी सी हड्डी ने इस शक्तिशाली बाघ की आँखों में आँसू ले आई।
दिन बीतते गए और बाघ फसी हुइ हड्डी को बाहर नहीं निकाल सका। “मुझे यकीन है कि मैं भुखमरी से मर जाऊंगा,” बाघ ने सोचा। “मुझे इस हड्डी को बाहर निकालना है।” वह जानता था कि उसके गले से हड्डी को बहार नहीं निकला तो वह मर जायेगा। लेकिन वह उस हड्डी को बहार निकलना नहीं जानता था।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, बाघ कमजोर से कमजोर होता गया। उसे पता नहीं चल रहा था कि इस हड्डी का क्या करना है। वह बस अब मौत का इंतजार कर सकता था।
फिर, एक दिन जब बाघ बुरी तरह से एक पेड़ के नीचे पड़ा था, तो उसने एक लकड़हारा देखा। लकड़हारा ने ज़ख़्मी बाघ को देखकर उसके पास गया। “तुम ठीक हो? ये तुम मुँह खोल के क्यों बैठे हो? ” लकड़हारा ने बाघ से पूछा। “कुछ दिनों पहले मेरे दांतों के बीच में एक हड्डी फंस गई है। तब से मैं ठीक से खाना नहीं खा पा रहा हूं। मुझे यकीन है कि मैं इस वजह से भुखमरी से मर जाऊंगा “बाघ ने जवाब दिया।
“मैं केवल एक शर्त पर हड्डी निकालूंगा, तुम जब भी आज से कोई शिकार करोगे उस मे से मांस का छोटा टुकड़ा मुझे लाना होगा।” लकड़हारा ने बाघ से कहा। अब, बाघ हताश हो गया। लेकिन ज़िंदा रहने के लिए उसके पास और कोई तरीके नहीं थे। तो उसने लकड़हारा से सौदा पक्का किया।
तो लकड़हारा ने बाघ की बात मानकर उसके मुँह से हड्डी निकाली और बाघ को उसके दर्द से राहत मिली। जिस क्षण हड्डी निकली, बाघ शिकार की तलाश में चला गया। कुछ घंटों बाद, लकड़हारे ने बाघ को अकेले ही अपने भोजन का आनंद लेते हुए पाया।
“क्या आप अपने वादे के बारे में भूल गए हैं? ” लकड़हारे ने गुस्से से पूछा।
“तुमको अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए,” बाघ ने लकड़हारे से कहा। “मेरे मुंह में घुसने पर ही मैं तुम्हें आसानी से खा सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। अब दूर जाओ यहा से फत्तू”
लकड़हारा इस पर बहुत गुस्सा हो गया। उसने उसी वक्त हात में था लकड़ी का टुकड़ा बाघ के एक आंख में मारा। “मेरी आँख, मेरी आँख! तुमने मेरी आंख में छेद कर दिया! मैं तुम्हे माफ़ नहीं करूँगा ! ” बाघ चिल्लाया।
जिस पर लकड़हारे ने उत्तर दिया “लेकिन तुम्हे अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए, क्योंकि मैं आसानी से दूसरी आँख भी निकाल सकता था”