ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो ट्रैन से सफर किया करते थे अपने दफ़्दर ये आते थे और जाते थे और ट्रैन की सफर से कुछ न कुछ सीखते थे ।
और घर जा कर के dairy में लिखते थे की आज मैंने ट्रैन की सफर में ये सीखा रोजाना का ये उनका रूटीन था ।
एक दिन वो अपने ऑफिस के लिए निखले ट्रैन में जा कर के बैठे ट्रैन रवाना हुए उनके ठीक सामने वाली सीट पे एक फॅमिली बैठी हुई थी बच्चे खिल खिला रहे थे बाते वाते चल रही थी,
तभी वहा से एक पानी बेचने वाला लड़का निकला पानी बेचते हुए लड़का निकल रहा था ज़ोर ज़ोर से आवाजे दे रहा था इनके सामने वाली सीट पे जो फॅमिली बैठी हुई थी ।
उसमे एक भाई साहब थे उन्हों पूछा बेटा पानी की बॉटल कितने की दी तो उस लड़के ने बोला भैया 20 rs की बोतल है तो इन्होने बोला की ये 15 की बोतल दो ये 20 rs में क्या बेच रहे हो 15rs में दो
तो बताओ वो जो पानी बेच रहा था लड़का वो सिर्फ मुस्कुराया कुछ नहीं बोला चुप चाप आगे बढ़ गया ये जो भाई साहब सामने की सीट पे बैठे हुए थे ।
जो की रोजाना लिखते थे की आज क्या सीखा इनको लगा अंदर से जिज्ञासा हुई भाई क्या मतब आज सीखा है ? ये फटा फट उस लड़के के पीछे गए की ।
ये आज मुझे ये कुछ बढ़िया सा सिख दे देगा की क्या करना चाहिए लाइफ में मुस्कुरा के कैसे चलागया ज़िद बहस नहीं की।
वो उस लड़के के पीछे पीछे निकल लिए वो लड़का इस कोच से दूसरे कोच आगे बढ़ चूका था पानी बेचते बेचते उसे जा कर के रोका और पूछा भाई एक बात बताओ मैं तुमसे कुछ पूछना चाह रहा हु तुम अभी मेरे कोच में थे वहा पे एक फॅमिली थी
याद आया ये बाँदा तुमसे बोल रहा था की 15 की बोतल दो 20 की क्यों दे रहे हो तुमने कुछ नहीं बोला उसे तुम चुप चाप आगे बढ़ गए मतलब ऐसा क्यों तुम्हे गुसा नहीं आया की कहा 2 – 5 रूपये के लिए ज़िद कर रहा है
एक गरीब आदमी से तुम कुछ तो बोलते फिर उस लड़के ने कहा वो जो भाई साहब बैठे हुए थे ।
उनको पानी पीना ही नहीं था उनको प्यास ही नहीं लगी थी तो ये जो बांदा था जो रोज लिखता था उसने पूछा अरे तुम्हे कैसे पता चल गया की उनको प्यास नहीं लगी थी ।
तुम क्या अंतर यामी हो तुम्हे पता चल गया की उन्हें पानी नहीं पीनी है हो सकता है की उनको प्यास लगी हो,
तो फिर से लड़के ने बोला उन्हें प्यास नहीं लगी है जिसको प्यास लगी रहती है वो पहले पानी की बोतल लेता है उसको पिता है उसके बाद में दाम पूछता है और पैसे दे देता है वो फालतू की ज़िद बहस नहीं करता है।
उस लड़के ने जब ये जवाब दिया तो उन्होंने उसे सुना और घर जा कर के dairy में बहुत कुछ लिख डाला इन्होने लिखा ज़िन्दगी में अगर हमने गोल बना लिया है अगर हमारे माइंड में बात फिक्स है ।
तो हम फालतू के वाद विवाद में नहीं पड़ेगे लेकिन हमारा गोल फिक्स नहीं है अगर हमें पता ही नहीं है की हमें क्या करना है ।
तो हम बहुत साडी कमिया उस गोल में ज़िन्दगी के गाल में भी निकालते रहेंगे और बस इसी चाकर में टाइम खत्म कर देंगे। खास कर के जो भी स्टूडेंट्स इस कहानी को बढ़ रहें है
मैं उनको बोलना चाहता हु कीअपने गोल को फिक्स कीजिये क्यों की अगर आपके माइंड में फिक्स नहीं होगा की आपको क्या करना है ।
तो आप वो तीन चार ऑप्शंस में उलझ कर के रह जाएंगे साल पर साल निकलते चले जाएंगे और उसके बाद में आपको महसूस होगा की क्या टाइम तो तब था ।
तब तो कुछ क्या ही नहीं लाइफ में अपने गोल को फिक्स कीजिये और फिर वाद विवाद में परने वाली बात आएगी ही नहीं।