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आत्म विनाश !!

एक बार बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा की एक युवक बहुत ही आवेश में पहाड़ी की तरफ जा रहा है। बुद्ध उसे देखते ही समझ गए की या तो वह किसी की हत्या करने जा रहे है या फिर वह खुद आत्महत्या करने जा रहे है। बुद्ध ने उस युवक को आवाज लगाई। लेकिन उस युवक ने कुछ नहीं सुना। वह एक ऊँची पहाड़ी पर पहुँच गया जहाँ वह पहाड़ी से कूदने ही वाला था। तभी बुद्ध ने उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे खिंच लिया।बुद्ध को सामने देखकर वह युवक बोला,“आप मुझे न रोके। यह मेरा जीवन है। आपको इसमें दखल देने की कोई जरुरत नहीं है।”बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा,“ठीक है तुम आत्महत्या करना चाहते हो तो करो। लेकिन पहले थोड़ा रुको। दश बार गहरी साँस लो और अपनी हतेलिया खोल दो और तब मैं तुम्हे आत्महत्या करने दूँगा। लेकिन उससे पहले नहीं।”वह युवक बोला,“आप मुझे व्यर्थ ही परेशान कर रहे है। मैं पहले से ही बहुत परेशान हूँ। आप मेरी परेशानिया न बढ़ाए। ठीक है आप कहते है तो मैं दश बार गहरी साँस लेता हूँ अपनी हतेलिया खोल देता हूँ। उसके बाद आप मुझे आत्महत्या करने से नहीं रोकेंगे।”उस युवक ने आंखे बंध करके दश बार गहरी साँस ली, अपनी हतेलिया उसने खोल दी और उसके बाद उसने अपनी आंखे खोली।तब बुद्ध ने कहा,“जाओ और पहाड़ी से कूद जाओ।”वह युवक तेजी से पहाड़ी की तरफ गया और कूदने के लिए तत्पर हुआ। लेकिन वह रुका और उसने निचे देखा। वह दो तीन कदम पीछे हट गया। वह युवक बुद्ध की तरफ घुमा और उसके तरफ देखते हुए बोला,“महात्मा आप कौन है?आपसे तेजस्वी व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा। यह मेरे साथ क्या हुआ क्या आप मुझे समझा सकते है? कुछ क्षण पहले अगर आप मुझे नहीं रोकते तो मैं इस पहाड़ी से कूद ही जाता। लेकिन अब मैं इस पहाड़ी से कूदने में असमर्थ हूँ। खूब भय उत्पन्न हो गया है।”बुद्ध मुस्कुराए और बोले,“जब तुम पहली बार कूदने वाले थे तब तुम्हारे भीतर क्रोध था। क्रोध मनुष्य की बुद्धि का नाश कर देता है। और वह सोचने समझने की क्षमता खो देता है। वह केबल वही करना चाहता है जो उसका मन कहता है। तुम्हारे अंदर क्रोध था और तुम्हारा मन आत्महत्या के लिए तैयार था इसी कारन तुम पहाड़ी से कूदने के लिए तत्पर थे। लेकिन जब तुमने आंखे बंध करके गहरी साँस ली और अपनी हतेलिया खोल दी तब तुम्हारे क्रोध की नकारात्मक ऊर्जा एक सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो गई। जिसके कारन तुम्हारे बुद्धि को नियंत्रित प्राप्त हुआ और तुम सही निर्णय लेने में सक्षम हो सके।”वह युवक बोला,“आप कौन है महात्मा? आपने परिचय नहीं दिया।”बुद्ध मुस्कुराए और बोले,“यह जगत मुझे बुद्ध कहता है।”वह युवक बुद्ध के चरणों में गिर गया और बोला,“हे बुद्ध, आप मुझे अपने शरण में ले लें। मैं तो अपने पिता को सबक सिखाना चाहता था इसलिए आत्महत्या करने जा रहा था।”बुद्ध ने कहा,“आत्महत्या करके कोई किसी को सबक नहीं सीखा सकता। इस शरीर के साथ हम इस दुनिआ में कुछ भी कर सकते है। लेकिन अगर यह शरीर नहीं रहेगा तब हम कुछ भी नहीं कर सकते।”युवक बोला,“आप सही कहते है। लेकिन मेरे पिता ने मुझे बहुत अपमानित किया है। आप नहीं जानते बुद्ध, वह मुझे बात-बात पर टोकते है। बचपन में वह मुझसे बहुत प्रेम करते थे। उसके बाद उन्होंने मुझे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल भेज दिया और वहाँ मैंने शिक्षा प्राप्त की। मैं हमेशा सोचता था की मैं अहम् शिक्षा प्राप्त करके अपने पिता का मान बढ़ाऊँगा और वह भी मुझसे बहुत खुश होंगे। लेकिन शिक्षा खत्म करके जब मैं वापस घर आया तब मैंने अपने पिता से कहा की मैंने सारे शास्त्र, वेद, उपनिषद पूरी कर ली है और अब मुझसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है। तब वह खुश होने की जगह कहने लगे अपने आपको बड़ा ज्ञानी मानने का भ्रम मत पालो। मैं अपने पिता को दिखाना चाहता था की मैंने कितना ज्ञान अध्ययन किया है। मैं बड़े बड़े शास्त्रग में जाने लगा जहाँ सभी लोग मेरे ज्ञान से बहुत प्रभाबित होने लगा। सभी ने मुझे महान ज्ञाता माना। लेकिन मेरे पिता ने मुझे ज्ञानी नहीं माना। वह मेरे शास्त्राग के बीच पहुँच जाते और मेरे दिए गए जवाब में कुछ न कुछ कमिया निकालते रहते और सभी के सामने मुझे अपमानित करते। मेरे साथ रहने वाले मित्रो को भी वह अपमानित किया करते। वह कहते थे की वह सब मेरा जीवन बर्बाद कर देंगे क्यूंकि वह सभी मित्र मेरी सहयता करते थे और मेरे हैं ज्ञान की प्रशंसा करते थे। मेरी समझमे नहीं आ रहा था की वह ऐसा कर क्यों रहे है। तब मेरे मित्रो ने मुझे बताया की वह मेरे ज्ञान से हिंग्सा करते है। वह मेरे जितना ज्ञान अर्जित नहीं कर पाए इसी कारन वह मुझसे हिंग्सा करने लगे है। एक दिन मेरे परेशानियों के कारन मेरे मित्रो ने मुझे मदिरा पान कराया। मेरे पिता मुझे ढूंढते-ढूंढते मेरे मित्र के घर आ गए और जब उन्होंने देखा की मैंने मदिरा पान किया है तो उन्होंने मेरे मित्रो के सामने ही मुझपे हाथ उठा दिया। और तब मैंने फैसला किया की मैं मेरे पिता को सबक सिखाऊँगा। और एक पिता के लिए अपने जवान पुत्र की अर्थी को उठाने से ज्यादा बड़ा सबक क्या होगा। तब वह सोच पाएंगे की उन्होंने क्या गलती की है। इसी कारन मैं यहाँ आत्महत्या करने आया था।”बुद्ध मुस्कुराए और बोले,“मुझे एक बात बताओ, जो ज्ञान तुम्हे आत्महत्या करने से न रोक सके तब तुम कैसे ज्ञानी हो?”वह युवक बोला,“आप सही कह रहे है। अब मैं अपने आपको अज्ञानी समझने लगा हूँ। आप मुझे अपनी शरण में ले लें। आपसे ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ बुद्ध।”बुद्ध ने कहा,“तुम मेरे साथ चार दिनों तक रहो। उसके बाद अपने पिता के घर जाना। अपने पिता के घर तुम मध्यरात्रि के बाद जाना और चुपचाप घर में प्रवेश करना। तब तुम्हे वहाँ जीवन का पहला ज्ञान प्राप्त होगा। उसके बाद वापस आकर मुझसे मिलना।”वह युवक बुद्ध के साथ चार दिनों तक रहा। उसके बाद वह बुद्ध से आशीर्वाद लेकर अपने पिता के घर चल दिया। मध्यरात्रि होने पर उसने अपने पिता के घर में प्रवेश किया और उसने देखा की उसकी माता बिस्तर पर है और वह बहुत बीमार है। उसकी पिता उसकी माता के पास बैठे है। उसकी माता उसके पिता से कह रही है की तुम्हारी बजह से मेरा पुत्र मुझसे दूर चला गया। अगर तुमने उस पर इतनी शक्ति न की होती तो वह अभी भी मेरे पास होता। उस युवक ने देखा की उसके पिता जिनके आँखों में उसने आज तक एक आंसू भी नहीं देखा था उनके आँखों से आंसू बह रहे थे।”उस युवक के पिता ने कहा,“मैं अपने पुत्र को कभी दुःख नहीं देना चाहता था। लेकिन वह बहुत ज्ञानी था और मुझे डर था की उसका वह ज्ञान उसके अंदर अहंकार न पैदा कर दे। अहंकार के कारन मनुष्य अपने पथ से भटक जाता है। इसी कारन जब सब लोग उसकी प्रसंसा करते थे तब मैं वहाँ पहुँचकर उन व्यक्तियों को ढूंढना चाहता था जो उसके गलतियों को उसे बताए। लेकिन वहाँ एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उसके गलतियों को उसे बताता। तब मैंने निश्चय किया की मैं उसके गलतियों के बारे में उसे बताऊँगा। लेकिन वह अपने मित्रो के कारन मेरे बातो को अनसुना करता रहा। वह अपने मित्रो की सुनता रहा। और एक दिन जब उसने मदिरा पान किया तब मेरे मन को बहुत ठेस पहुँची और तब मैंने सोचा की सायद मेरी ही परवरिश में कुछ कमी रह गई है। मैं एक अच्छा पिता नहीं बन पाया। पर तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे पुत्र को कही से भी खोजकर लाऊँगा। जितना प्रेम तुम अपने पुत्र से करती हो उससे कही ज्यादा प्रेम मैं भी अपने पुत्र से करता हूँ। मैंने उसे हर जगह ढूंढा पर वह नहीं मिला।”माता ने कहा,“मेरा मन कहता है की वह यहाँ से कुछ दूर एक गांव में भगवान बुद्ध रुके है वह अवश्य ही वहाँ होगा। तुम जाकर देखो।”वह युवक यह सब सुन रहा था। उसके आँखों से आंसू बह रहे थे। वह चुपचाप घर से निकल गया और बुद्ध के पास वापस पहुँचा।युवक ने बुद्ध से कहा,“हे बुद्ध, अगर आपने उस दिन मुझे आत्महत्या करने से न बचाया होता तब मुझसे कितना बड़ा पाप हो जाता।”बुद्ध ने युवक से कहा,“इस दुनिआ में सबसे बड़ा अज्ञान आत्महत्या करना है। यह जीवन तुमने खुद नहीं लिया है यह तुम्हे दिया गया है। और जो तुम्हे दिया गया है उसे तुम्हे खुद नष्ट करने का कोई अधिकार नहीं है। कल सुबह तुम्हारे पिता यहाँ आएंगे तब तुम उनके साथ वापस जाना और उनके ऋण को उतारना।”वह युवक बोला,“हे बुद्ध, मेरा सारा ज्ञान मुझे व्यर्थ ही लगता है। आप सत्यता का उजागर करते है। मैं आपसे ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ। मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ। मुझे अपने साथ शामिल करले बुद्ध।”बुद्ध ने कहा,“सुबह जब तुम्हारे पिता आएंगे तब तुम अपने पिता से बातचित करना और उनसे आज्ञा लेना। और तब अगर तुम्हे लगे की तुम्हे ज्ञान प्राप्ति की तुम्हे जरुरत है तब तो मेरे दरवाजे हमेशा सभी के लिए खुले है।”

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