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एक अंधे भिखारी की कहानी !!

किसी गांव में दो सगे भाई रहते थे। बड़ा भाई अमीर था, उसके पास किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। छोटा भाई गरीब था। मेहनत और मजदूरी करके अपने और अपने बच्चों के पेट भरता था। एक दिन, दोनों भाइयों में बहस होने लगी। बड़े भाई ने कहा, “भले का भला नहीं होता। आज के दुनिआ में भले को भीख भी नहीं मिलती। इसमें दूसरे का चाहे बुरा ही क्यों न हो, अपने भले की बात पहले सोचना चाहिए।”  छोटे भाई ने कहा, “नहीं भइया। तकलीफ दुसरो को हो, ऐसे में अपना भला कैसे हो सकता है।”  बड़े भाई ने कहा, “चल हम गांव के लोगो से ही पूछ लेते है। तेरी बात सही निकली तो मेरे पास जितना धन है वह सब तेरा। और अगर मेरी बात सही निकली तो तेरे पास जितना धन है सब कुछ मेरा।”  छोटे भाई ने कहा, “ठीक है चलो।”दोनों भाई गांव में पहुंचे। गांव के सभी लोग यही कहने लगे की आज कल भलाई का जमाना कही नहीं रहा। भलाई करने वाला तो भूखा मरता है। और जो बुरी राह पर चलता है, वह खूब सुखी रहता है। अब छोटे भाई के पास जमीन का जो छोटा टुकड़ा पड़ा था, वह भी शर्त में हार गया। अब वह कुछ चावल के दाने के लिए तरसता रहा। उसके बीवी-बच्चे भूखे मरने लगे। उसे तो कोई उधार भी नहीं देता था।वह अपने बड़े भाई के पास गया चावल उधार लेने के लिए। सोचा की बड़ा भाई है, मन नहीं करेगा। उसने बड़े भाई से कहा, “भइया 10 किलो चावल दे दो, घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है। बच्चे भूख से मरे जा रहे है।”  बड़े भाई ने कहा, “पैसे दे दो और जितने चाहो उतने चावल ले जाओ।”  छोटे भाई ने कहा, “भइया, पैसे तो नहीं है।”  इस पर बड़े भाई ने कहा, “फिर अपनी आंख दे दो।”  छोटे भाई ने सोचा बड़ा भाई मजाक कर रहा है। पर बड़े भाई ने एक आंख निकलवा लिया और 10 किलो चावल दे दिए।यह देखकर, उसके बीवी बच्चे रोने लगे और बोलने लगे, “तुमने यह क्या कर दिया?” थोड़े दिन तो आराम से गुजर गए। कुछ दिन बाद, अनाज फिर से ख़तम हो गया। छोटा भाई फिर से अपने बड़े भाई के पास गया। उसे अपने भूखे बच्चे और बीवी की हालत देखे नहीं जा रहे थे। बड़े भाई ने कहा, “दूसरी आंख भी दे दो और चावल ले जाओ।”  छोटे भाई ने दूसरी आंख भी दे दी और चावल ले आया। जब वह घर आया तो उसके बीवी बच्चे उसे देखकर रोने लगे और कहा, “तुमने फिर से यह क्या कर दिया? अब हमारा क्या होगा?”  छोटे भाई ने कहा, “अब मैं अँधा हो गया हूँ। लोग मुझे भीख दे देंगे। तुम बस मुझे सड़क के किनारे बैठा देना।

दूसरे दिन से उसकी पत्नी उसे रोज रास्ते पर बैठा आती थी, जिससे उसका रोज का काम चलने लगा। एक दिन, उसे बैठे बैठे बहुत देर हो गई। उसकी पत्नी उसे लेने के लिए नहीं आई। उसने बहुत देर तक अपनी पत्नी का इंतज़ार किया। बहुत रात हो रही थी इसलिए वह खुद अपने घर की तरफ चलने लगा। पर न दिखने के कारन वह रास्ता भटक गया। उसने सोचा, “यही रात बिता लेता हूँ। कही आगे चलकर रास्ता न भटक जाऊं। फिर वह एक पेड़ के निचे बैठ गया।उसी वक़्त पेड़ से कुछ अजीब आवाज आने लगी। कुछ समय के बाद एक तूफान सा आया। असल में वह चार भूत थे। चारों भूतो में से एक उनका सरदार था। भूत बहुत खुराफाती थे। सभी एक महीने भर लोगो को सताते थे। और महीने के अंतिम दिन सभी इस पेड़ पर आकर सरदार के साथ चर्चा करते। तो आज महीने का अंतिम दिन था और चारों भूत उसी पेड़ पर जमा हुए है।भूतों के सरदार ने पूछा, “एक एक करके बताओ तुम लोगो ने क्या क्या किया।”  पहला भूत बोला, “एक गांव में दो भाई थे। भले और बुरे का तर्क हुआ। दोनों ने शर्त रखा। छोटा भाई हार गया। मैंने उसे अँधा बनवा दिया।”  सरदार बोला, “बहुत खूब, अब अँधा ही बना रहेगा। वह क्या जाने की इस पेड़ की तली की ओस लगाने से उसकी आंखे ठीक हो सकती है।”  दूसरा भूत बोला, “मैंने रामनगर जिले के सारे नदी, नाले, झरने, तालाब और कुए सब कुछ सूखा दिया है। पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। दूर दूर तक पानी नहीं है। सब यूं ही तड़प तड़प के मर जायेंगे।”  भूतो का सरदार बोला, “बहुत खूब। प्यासे मर जाये सब। उन्हें क्या पता की पहाड़ के तले से मिटटी की परतें हटा देने से पानी फिर से आ सकता है।”तीसरा भूत बोला, “सरदार राजा की बेटी की शादी होने वाली थी। राज्य में खुशिया मनाई जा रही थी, लेकिन मैंने राजकुमारी को गंगा बना दिया जिससे उसकी शादी नहीं हो पाई।”  सरदात ने कहा, “बाह, बहुत खूब। अब वह गूंगी ही रेहगी। किसी को क्या पता की इस पेड़ की झूमती जटा को पीसकर पीला देने से वह बोलने लगेगी।”  फिर सरदार ने कहा, “ठीक है। अब जाओ तुम सब, एक महीने बाद, फिर से इसी जगह पर मिलेंगे।फिर से एक तूफान सा आया और चारों भूत वहां से गायब हो गए। तब तक सभेरा हो गया था। पेड़ के निचे आराम करता हुआ वह अँधा चारों भूतो की बात सुन लेता है। अंधे भाई ने पहले वही ओस की बुँदे आँखों पर लगाई। उसकी आंखे लोट आयी। उसने जल्दी से पेड़ की जटा ली और घर लौटा। उसकी आंखे वापस आ जाने से उसके बीवी बच्चे सभी खुश हो गए। उसने सारा किस्सा अपनी पत्नी को समझाया और घर से निकल गया।घर से निकल कर वह सीधे रामनगर पहुंचा। वहां की हालत देखकर उसे रोना आ गया। वहां की जमीन सुखकर फट  रही थी। कही पर भी एक बून्द पानी नहीं था। उसने पहाड़ के निचे से मिटटी की परते निकली की तभी कुए, तालाब और झील में पानी भर गया। वहां के राजा ने उसे इस समस्या का समाधान  करने के लिए बहुत धन दे दिया। फिर राजा के महल में जाकर पहुंचा। वहां पहुंचकर राजा से कहने लगा, “महाराज मैंने सुना है की आपकी राजकुमारी गूंगी हो गई है। मैं उसे ठीक कर सकता हूँ।”  छोटे भाई ने तुरंत पेड़ की जटा को पीसकर राजकुमारी को पीला दिया। और राजकुमारी बोलने लगी। राजा बहुत खुश हुआ। राजा ने सोने के सिक्को से उसकी झोली भर दी। रहने के लिए एक महल दिया और अपने परिवार के साथ यहाँ आकर रहने को बोला।छोटा भाई बहुत सा धन लेकर अपने घर आया। उसके परिवार में ख़ुशी छा गई। बड़े भाई ने देखा, “छोटे भाई की आंखे वापस आ गई है और उसके पास इतना धन भी है। बड़े भाई को अब छोटे भाई से जलन होने लगी। उसने छोटे भाई से माफ़ी मांगी और उसके दौलत का राज जानना चाहा। छोटे भाई को दया आ गई और उसने अपनी राज बड़े भाई को बता दिया। बड़ा भाई भी उसी जंगल के पेड़ के पास गया। अचानक फिर से वह तूफान आया। भूतों की आवाज आने लगी। भूत कहने लगे, “जो किया कराया था सब पर पानी फिर गया। जरूर किसी ने हमारी बातें सुन ली होगी।”  भूतों  ने अचानक बड़े भाई को पेड़ के निचे बैठा हुआ देखा। भूतों ने झट से बड़े भाई का गला  काट दिया और बड़ा भाई वही मर गया।

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