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ईमानदार लकड़हारे की कहानी !!

एक समय की बात है। एक गांव में एक लकड़हारा रहता था, वह बहुत गरीब था। उसे गांव वाले केशव कहकर बुलाते थे। उसका छोटा सा घर था, जिसमे उसका परिवार रहता था।

वह अपने परिवार की जीवन दिनचर्या चलाने के लिए प्रतिदिन जंगल से लकड़ी काट कर लाता और बाजार में बेचता था। जो भी आमदनी होती थी, उससे उसके परिवार का खर्च चलता था।

एक दिन वह लकड़हारा नदी के किनारे पेड़ से लकड़ियां काट रहा था। अचानक उसके हाथों से कुल्हाड़ी छूट कर  नदी में जाकर गिर गई। नदी गहरी थी, जिससे कुल्हाड़ी निकालना असंभव था। लकड़हारे के पास एकमात्र वही कुल्हाड़ी थी, जिस कारण वह बहुत परेशान हो गया।

वह सोचने लगा कि अब उसके परिवार का खर्च कैसे चलेगा। उसके पास यही एक साधन था, जिससे उसके परिवार का खर्च चलता था। उसके पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं था पैसे कमाने का।

सारे प्रयत्न करने के बाद वह कुल्हाड़ी को नहीं निकाल सका। जिससे वह लकड़हारा उदास होकर नदी के किनारे बैठ गया। अत्यधिक परेशान हो जाने के बाद उसने भगवान से प्रार्थना की “हे प्रभु आप तो सृष्टि के रचयिता, जगज्ञाता है। आप मेरी कुल्हाड़ी मुझे दिला दे, वरन मैं अपने परिवार का खर्च कैसे चलाऊंगा।”

कुछ समय पश्चात भगवान प्रकट हुए और उन्होंने उस लकड़हारे से पूछा, “क्या समस्य है पुत्र?”

लकड़हारे ने जवाब दिया, “भगवन, पेड़ से लकड़ियां काटते वक्त मेरी कुल्हाड़ी मेरे हाथों से छूट कर नदी में गिर गई। हे ईश्वर कृपया मेरी कुल्हाड़ी मुझे दिला दीजिए।”

लकड़हारे की बात सुनकर भगवान ने नदी के अंदर अपना हाथ डालकर उसकी कुल्हाड़ी निकाली। “वह कुल्हाड़ी चांदी की थी।”

भगवान ने लकड़हारे से पूछा, “ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

लकड़हारे का जवाब, “नही भगवन, ये कुल्हाड़ी मेरी नहीं है।”

भगवान ने पुनः नदी में हाथ डाला और एक दूसरी कुल्हाड़ी निकली। इस बार कुल्हाड़ी सोने की थी।

“भगवन ने दूसरी बार पूछा ये है तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

लकड़हारे का जवाब “नहीं प्रभु, ये भी कुल्हाड़ी मेरी नहीं है।”

भगवन ने कहा ध्यान से देखो ये कुल्हाड़ी सोने की है, इसे लेकर तुम अपना और अपने परिवार का जीवन अच्छे से व्यतीत कर सकते हो।

लकड़हारे ने जवाब दिया “प्रभु सोने की कुल्हाड़ी से लकड़िया नहीं कटती है, यह मेरे किसी काम मे उपयोगी भी तो नहीं होगी। भगवन मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी। मुझे मेरी लोहे की कुल्हाड़ी दिला दे। मैं उसी से लकड़ी काट कर अपने परिवार का खर्च चला सकता हूँ।”

भगवान उसका सरल स्वभाव देख कर बहुत प्रसन्न हुए और नदी में पुनः हाथ डालकर उन्होंने उसकी लोहे की कुल्हाड़ी निकाली।

फिर से भगवन ने पूछा “हे पुत्र क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है।”

लकड़हारे ने जवाब दिया “हाँ भगवन, ये मेरी लोहे की कुल्हाड़ी है।”

इस बार वह बहुत प्रसन्न हुआ, उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान भी आ गयी।

भगवान उसकी इमानदारी देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और कहा “हे भक्त, मैं तुम्हारी इस ईमानदारी को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। इसीलिए मैं तुमको लोहे की कुल्हाड़ी के अतिरिक्त सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी देता हूँ।” और भगवान ने तीनों कुल्हाड़ी उस लकड़हारे को दे दी और उसके बाद भगवान अंतर्ध्यान हो गए।

लकड़हारे को उसकी इमानदारी के कारण उसे पुरस्कृत किया गया।

“तो दोस्तों, हमें भी हमेशा ईमानदारी के पथ पर ही चलना चाहिए। जीवन में बड़ी से बड़ी मुसीबतों का सामना ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए।”

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