दोस्तो यह तब की है जब Motivational Speaker bhupendra singh Rathod जी की मां कॉलेज में पढ़ा करती थी। और यह सच्ची कहानी उनके बेस्ट सेलर बुक बदले अपनी सोच तो बदलेगा जीवन किताब से ही ली गई है। इसलिए इस कहानी को अंत तक ध्यान से जरूर पढ़िए।
उनके मां के घर के पीछे एक छोटी पहाड़ी थी जहा लोगो के घरों में काम करने वाले नौकर, खाना पकाने वाले व मजदूर वर्ग के लोग झोपड़ियो में रहते थे। एक बार बरसात के दिनों में वहा बहुत भारी भूस्खलन हुआ और पहाड़ी से अनेक बड़े पत्थर झोपड़ियो को तोड़ते हुए नीचे गिरने लगे।
इस दुर्घटना में काफी लोग मारे गए और इस आपदा में दो परिवार ऐसे भी थे जो आपस में पड़ोसी थी। दोनो परिवारों में एक जैसे सदस्य थे – पति, पत्नी तथा उनके एक लड़का और लड़की थे। उनकी आयु भी लगभग एक जैसी थी।
उनके बच्चे पास वाले किसी स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे। पहाड़ी के अंतिम छोर पर दोनो परिवारों की एक एक दुकान थी। वे दुकान में विविध प्रकार के सामान बेचते थे,- जैसे की किराने का सामान, स्टेशनरी तथा दवाइया आदि… इस दुकान से इतनी आमदनी हो जाती थी की उसके घर का गुजारा चल जाता था।
इस दुर्घटना में दोनों परिवार वालो के घर बुरी तरह से तबाह हो गए थे की उनके पास एक कप तक नही बचा हुआ था। लेखक की मां ने उन्हें बताया की ऐसा होने पर एक परिवार जोर जोर से रोने लगा और लगातार चिलाता रहा। जब की दूसरा परिवार थोड़ी देर के लिए गुस्सा हुआ और फिर यह सोच कर संतुष्ट था की भगवान का शुक्र है की परिवार के सभी लोग सुरक्षित है।
ऐसा उनके पिता ने कहा की मेरी दुकान को किसी भी प्रकार का नुकसान नही हुआ, इसलिए में भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं। जब की दूसरा व्यक्ति नुकसान पर बार बार दुख जाता था और उसके पौडोसी ने बचे हुए कबाड़ से अपना घर फिर से बनाना शुरू किया।
उसकी पत्नी सिलाई का काम करती थी और घरों में सफाई करती थी और उसका पति दुकान पर जाता था। उन्होंने इस द्वरान अपने बच्चो का स्कूल जाना भी बंद नहीं कर दिया, क्योंकि उनकी वार्षिक परीक्षा बिलकुल सिर पर थी।
उसके विपरीत उसके पड़ोसी ने कई महीनो तक अपनी दुकान को नहीं खोलो और सहायता के लिए लोगो के आगे हाथ फैलाता रहता। कुछ दिनों तक तो लोग उसे सहानभूति के कारण उसकी हेल्प करते रहे, लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक न चाल सका। उसके बच्चो का स्कूल जाना भी बंद हो गया।
दूसरे परिवार के दोनो बच्चे पढ़ाई में बहुत तेज थे। जब लोगो ने उन्हें कड़ी मेहनत करते हुए देखा तो वे भी समय – समय पर उनकी हेल्प किया करते थे। वहा पर रहने वाले लडको के एक क्लब ने उन्हें किताबे, यूनीफॉर्म तथा स्टेशनरी देने की जिम्मेदारी ले ली। स्कूल ने भी दोनो बच्चो की फीस माफ कर दी।
जरूरत के अनुसार उनको कपड़े और बर्तन भी मिल गए। उन्हे जितना मिल जाता था, वे हमेशा उससे संतुष्ट रहते जब की दूसरा परिवार को जितना भी मिल जाता था, वह कभी भी खुश नहीं रहता था और हमेशा अधिक से अधिक मांगने की इच्छा किया करता था।
उसके बहुत साल बाद जब लेखक अपने घर गए तो उनकी मां ने उन्हें बताया कि जिस परिवार ने कभी अपना विवेक नही खोया और ईश्वर पर भरोसा रखा, इस ब्रम्हांड ने उन्हें सब कुछ वापिस कर दिया, जो उनसे छीना गया था।
और दूसरे परिवार के पिता को फेफड़ों का कैंसर हुआ,जो अब बिस्तर पर है। उनकी मां भी अस्वस्थ रहती है, जो कुपोषण का शिकार है। उनका बेटा वही दुकान को चलाने के कोशिश करता है, लेकिन उससे इतनी आमदनी नहीं होती है, जितनी उनको घर चलाने के लिए जरूर है।
दोस्तो इस कहानी से हमे यह सीखने को मिलता है की जब आप आकर्षण के नियमो को इस स्थिति से जोड़कर देखते हैं, तो एक परिवार ने हर समय अपना विश्वास और सोच को ब्रम्हांड से जोड़े रखा जब की दूसरे परिवार ने अपने नुकसान को देखते हुए इसे अपना दुर्भाग्य समझ कर ब्रम्हांड को नेगेटिव संकेत भेजने शुरू कर दिए।
इसलिए एक परिवार के साथ हमेशा अच्छा ही होता गया और दूसरे परिवार के साथ हमेशा ही बुरा होता गया। ऐसा नही है की पहले वाले परिवार के साथ सिर्फ अच्छा ही अच्छा होता गया, बल्कि उनको भी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने ज्यादा पर अपना ध्यान सकारात्मक सोच पर केंद्रित किया।
इसलिए उनके साथ हमेशा ही अच्छा होता गया। क्योंकि दोस्तो जैसा आप सोचते हैं ठीक वैसा ही आपके साथ होने लगता है। इसीलिए कितना ही आपके साथ बुरा क्यों न हों, फिर भी आपको हमेशा पॉजिटिव सोचते रहना है।