एक शहर में एक ज्योतिषी रहता था। वह हर समय आकाश में स्थित ग्रह-नक्षत्रों की चाल देखता रहता था और फिर उनकी गणना में उलझा रहता।
एक अंधेरी रात में वह आकाश की ओर देखता हुआ चल रहा था कि अचानक उसका पैर फिसला और वह एक कुएँ में जा गिरा। कुआँ सूखा हुआ था और ज्यादा गहरा भी नहीं था।
उसके अंदर से वह लोगों से मदद के लिए गुहार लगाने लगा, “बचाओ, बचाओ ! मैं कुएँ में गिर गया हूँ। कोई तो मुझे बाहर निकालो।” एक राहगीर उसकी आवाज सुनकर रुका।
वह कुएँ के पास गया और उसमें झाँककर देखा तो वहाँ ज्योतिषी गिरा हुआ था। उसने ज्योतिषी से कहा,”अरे! ज्योतिषी महाराज,
आप तो सब लोगों की ग्रह- दशा बताते हैं। फिर क्या कारण है कि आप अपना भविष्य नहीं देख पाए और चलते-चलते कुएँ में गिर पड़े?” यह कहकर वह हँसता हुआ आगे चला गया।
Moral of Story
शिक्षा: एक समय में एक ही काम करना चाहिए।