एक दिन एक गिलहरी एक पर्वत के पास खुशी से चहकते हुए खेल रही थी। पर्वत की नजर उस पर पड़ी तो उसने मन में सोचा ‘इस गिलहरी का छोटा-सा शरीर किसी भी काम का नहीं है फिर भी यह इतनी खुश कैसे रहती है?’
पर्वत ने गिलहरी को बुलाया और बोला, “कितनी छोटी हो तुम! किसी भी काम की नहीं हो। तुम्हें अपने छोटेपन पर हीनभावना महसूस नहीं होती? मेरे सामने तो तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं है।”
पर्वत के शब्द सुनकर गिलहरी को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर भी वह विनम्रता से बोली, “आपका कहना सही है कि मैं आप की तरह बहुत बड़ी नहीं हूँ।
परंतु इसमें नुकसान ही क्या है? मैं अपने आकार से बहुत संतुष्ट हूँ। अपना हर काम अकेले करने की क्षमता रखती हूँ। इसलिए मुझे अपने छोटे शरीर को लेकर कभी हीनभावना महसूस नहीं होती।
मैं जैसी हूँ, अच्छी हूँ और फिर सभी तो आप की तरह बड़े नहीं हैं। सभी का अपना-अपना आकार-प्रकार है।” पर्वत घमंडपूर्वक बोला, “अरे! बड़े आकार के बहुत लाभ होते हैं।
मैं आसमान में उड़ते बादलों को रोक सकता हूँ, उनसे वर्षा करवा सकता हूँ और तुम तो बस उन्हें दूर से ही देख सकती हो। बोलो, करवा सकती हो तुम वर्षा!” गिलहरी बोली, “नहीं भाई! यह तो मैं नहीं कर सकती।
यह आप ही कर सकते हैं, परन्तु कितने ही कार्य ऐसे हैं जो आप नहीं कर सकते और मैं कर सकती हूँ।” पर्वत ने ताव में आकर पूछा, “अच्छा! जरा बताओ।
ऐसे कौन से कार्य हैं?” गिलहरी बोली, “महाशय बुरा मत मानियेगा। क्या आप मेरी तरह अखरोट तोड़ सकते हैं? क्या आप मेरी तरह खेलकूद कर सकते हैं? मैं अभी यहाँ तो अभी वहाँ आ-जा. सकती हूँ।
दिन रात एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदकती रहती हूँ। सारा दिन मौज-मस्ती करती हूँ। जहाँ मन करता है जाती हूँ। जो मन करता है खाती हूँ।
लेकिन आप तो अपनी जगह से हिल भी नहीं सकते। है न!” फिर वह आगे बोली, “माफ कीजिए, मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहती। मैं आपका बहुत सम्मान करती हूँ।
आपका विशाल रूप मुझे अच्छा लगता है इसलिए मेरी बात का बुरा मत मानना मैं तो सिर्फ आपकी बात का जवाब दे रही हूँ। हमेशा याद रखिए कि प्रकृति ने सभी को कोई न कोई विशेष गुण दिया है।
इसलिए हमें उन पर घमंड नहीं करना चाहिए।” यह सुनकर पर्वत का सिर शर्म से झुक गया। आज तक उसे अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था लेकिन आज एक छोटी-सी गिलहरी ने उसे अपनी बुद्धि से पराजित कर सबक सिखाया था।
शिक्षा: हर चीज़ का अपना महत्व होता है।