जवाहरलाल नेहरू अपने परिचितों के दुःख-दर्द के बारे में सुनकर द्रवित हो उठते थे। एक बार नेहरूजी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने लखनऊ पहुँचे।
वहाँ पहुँचकर उन्हें पता लगा कि लालबहादुर शास्त्रीजी की बेटी चेचक से पीड़ित थी और आर्थिक वजहों से समुचित इलाज न हो पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।
शास्त्रीजी उन दिनों लखनऊ में ही थे। नेहरूजी तत्काल शास्त्रीजी के पास पहुँचे और उन पर क्रुद्ध होते हुए बोले, ‘यह बहुत दुःखद है कि धनाभाव के कारण तुम अपनी बेटी का उचित इलाज नहीं करा पाए और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
मुझ जैसे किसी सहयोगी से कहते, तो तुरंत धन की व्यवस्था की जा सकती थी।’ यह कहते-कहते उनकी आँखें नम हो गईं।
एक बार नेहरूजी किसी समारोह में भाग लेने जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक युवक किसी वाहन से टकराकर खून से लथपथ सड़क किनारे पड़ा है और कुछ लोग तमाशबीन बने उसे घेरे हुए हैं।
नेहरूजी ने अपनी कार रुकवाई, उन्हें पहचानते ही कुछ लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। नेहरूजी ने नारा लगाने वालों को बुरी तरह फटकारते हुए कहा, ‘जय-जय क्या चिल्ला रहे हो । इस घायल को तड़पते देखकर भी तुममें से किसी का कलेजा नहीं पिघला, जो इसे अस्पताल पहुँचाते?’
नेहरूजी ने अपनी कार से घायल व्यक्ति को पहले अस्पताल पहुँचवाया, फिर वे समारोह में गए।