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मुनिश्री का अनूठा प्रभाव !!

विख्यात जैन मुनि आचार्य सुदर्शनजी महाराज गाँवों और नगरों में पदयात्रा कर लोगों को दुर्व्यसनों को त्यागने और सदाचार का पालन करने की प्रेरणा दिया करते थे ।

उन्होंने विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन किया था। वे प्रायः कहा करते थे कि जब तक मांस-मदिरा तथा अन्य नशी पदार्थों का त्याग करके सात्त्विक और शुद्ध जीवन नहीं अपनाओगे, तब तक आत्मिक उन्नति असंभव है। प्रत्येक धर्म का यही सार है कि जीवन को पवित्र और शुद्ध बनाओ।

एक बार मुनिश्री शिष्य मंडली के साथ पंजाब के एक गाँव में शाम के समय पहुँचे। उन्हें पता चला कि यहाँ के सभी ग्रामीण सिख हैं। रात बिताने की व्यवस्था गुरुद्वारे में की गई।

गुरुद्वारे में एक सिख ग्रंथी ने सभी मुनियों से भोजन करने के लिए आग्रह किया, तो उन्होंने कहा, ‘हम सूर्यास्त से पूर्व मात्र एक बार भिक्षा माँगते हैं। रात में ज भी ग्रहण नहीं करते । ‘

सवेरा होते ही ग्रंथी ने मुनिश्री से प्रार्थना की, ‘महाराज, गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहब के समक्ष सिर ढककर खड़े रहने का नियम है। ‘

मुनिश्री ने सहर्ष सभी को ऐसा करने का आदेश दिया। सभी मुनिगण ग्रंथ साहब के समक्ष नतमस्तक हुए। मुनिश्री ने गुरु ग्रंथ साहब का अध्ययन किया हुआ था।

उन्होंने गुरुवाणी पर प्रभावी प्रवचन किया और दुर्व्यसनों-नशा सेवन के दुष्परिणाम बताए। सभी उनके प्रवचन सुनकर अभिभूत हो उठे। मुनिगण नियमानुसार सिख घरों से भिक्षा प्राप्त करने गए सभी ने उन्हें श्रद्धा से भोजन दिया। अगले दिन उन्हें आदर सहित विदा किया गया ।

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