एक ब्राह्मण था। उसके पास सब कुछ था, बस कमी थी तो एक पुत्र की। इसलिए वह सभी सुख-सुविधाएँ होने के बावजूद भी दुखी रहता था। उसने पुत्र-प्राप्ति के लिए भगवान से कई बार प्रार्थना की।
यहाँ तक कि उसने घर छोड़ दिया और हिमालय पर जाकर कई वर्षों तक तपस्या की। भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले, “पुत्र माँगो, क्या माँगते हो?” ब्राह्मण बोला, “भगवान,
मैं एक पुत्र चाहता हूँ।” भगवान बोले, “पुत्र, मैं तुम्हारी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकता। कुछ और माँग लो?” ब्राह्मण बोला, “नहीं, मुझे सिर्फ पुत्र ही चाहिए।” भगवान बोले, “मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देता हूँ।
लेकिन ये हमेशा याद रखना कि अधिक हठ दुख को जन्म देता है।” जल्दी ही ब्राह्मण को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। बड़ा होते-होते वह बहुत ही उदंड हो गया।
वह झूठा और बेईमान भी था। दुष्ट बेटे की वजह से ब्राह्मण का नाम मिट्टी में मिल गया। तब ब्राह्मण सोचने लगा, ‘भगवान ने सत्य ही कहा था।