एक बार एक आदमी अपने 5 साल के बेटे को पहली बार मंदिर लेकर जाता है। जब वो दोनों मंदिर पहुंचते हैं तो मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ अपंग और लाचार लोग बैठे होते हैं जिन्हें आते जाते कुछ लोग पैसे तो कुछ लोग खाना दे देते हैं और ज्यादातर लोग उन्हें अनदेखा करके आगे बढ़ जाते हैं।
बच्चा जब देखता है कि उसके पापा ने भी बेसहारा लोगों की मदद नहीं की तब वो अपने पापा से पूछता है, “आपने उन लोगों की मदद क्यों नहीं की?”बाप बच्चे को समझाते हुए कहता है,”बेटा, हम जिस मंदिर में आए हैं ना, इसमें जो भगवान बैठा है वह उनकी मदद करेगा.”
जब, दोनों बाप बेटे मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंचते हैं तो बेटा देखता है कि मंदिर के प्रवेश द्वार पर शेर की मूर्तियां बनी है। उन मूर्तियों को देखकर बच्चा डर जाता है और अपने बाप के पीछे छुपने लगता है। बच्चे को ऐसा करता देख बाप उसे पूछता है,”क्या हुआ बेटा क़यों डर रहे हो?” बेटा कहता है पापा वो देखो वह सामने शेर खड़ा है, वह हमें खा जाएगा!
बाप अपने बच्चे के भोलेपन पर मुस्कुराता है और उसे समझाता है,” बेटा वो असली शेर नहीं है वो तो केवल मूर्ति है, और मूर्तियां कभी किसी को फायदा या नुकसान नहीं पहुंचा सकती।” अब बेटा उसी भोलेपन से और एक सवाल अपने बाप से पूछता है,” पापा जब आप जानते हैं कि मूर्तियां किसी का भला या बुरा नहीं कर सकती तो फिर आपने क्यों उन लाचार लोगों की मदद नहीं की?”
अपने बेटे के सहजता और भोलेपन से किए गए इस सवाल ने बाप के ज्ञान चक्षु खोल दिए और वह दोनों बिना मंदिर में प्रवेश किये मंदिर के बाहर बैठे लाचार लोगों की मदद करके वापस अपने घर लौट गए।
कहानी का सार
दोस्तों,हम नास्तिक नहीं है मगर मूर्तियों के बजाय इंसानों में भगवान ढूंढोगे तो भगवान भी खुश होन्गे। जरूरतमंदों की मदद करना सबसे बड़ी भक्ति है। और इंसानियत सबसे बड़ा धर्म।