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उपदेशप्रद कहानी: शुभचिंतन का प्रभाव

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सेठ गंगासरन जी काशी में रहते थे। वे भगवान शंकरजी के सच्चे भक्त थे। सोमवती अमावस्या का प्रात:काल था। मणिकर्णिका घाट पर अनेक नर-नारी, साधु-सन्यासी स्नान कर रहे थे। भक्त गंगासरन जी भी स्नान कर रहे थे। तब तक अलवर के मंदिर पर से कोई गंगा में कूटा और डुबकियां खाने लगा। किसी की हिम्मत न पड़ी, जो उस डूबने वाले को बचाने की कोशिश करता, क्योंकि कभी-कभी डूबनेवाला अपने बचानेवाले को इस तरह पकड़ता है कि दोनों डूब मरते हैं; परंतु सेठजी का हृदय करुणा से भर गया। वे तैरना भी जानते थे। चार हाथ मारे और डूबनेवाले को जा थामा। किनारे पर लाकर देखा तो वह सेठजी का ही मुनीम नंदलाल था। पेट से पानी निकालने के बाद जन नंदलाल को होश में देखा, तब गंगासरन जी ने कहा –
‘मुनीमजी! आपको किसने गंगाजी में फेंका था?’
‘किसी ने नहीं।’
‘तो क्या किसी का धक्का खाकर आप गिरे थे?’
‘नहीं तो’
‘फिर क्या बात थी?’
‘मैं स्वयं ही आत्महत्या करना चाहता था।’
‘वह क्यों?’
‘मैंने आपके पांच हजार रुपए सट्टे में बरबाद कर दिए हैं। मैंने सोचा कि आप मुझे गबन के अभियोग में गिरफ्तार कराकर जेल में बंद करा देंगे। अपनी बदनामी से बचने के लिए मैंने मर जाना उत्तम समझा था।’
एक शर्त पर मैं तुम्हारा अपराध क्षमा कर सकता हूं।
‘वह शर्त क्या है?’
प्रतिज्ञा करो कि आज से किसी प्रकार का कोई जुआ नहीं खेलोगे – सट्टा नहीं करोगे।
प्रतिज्ञा करता हूं और जगद्गुरु शंकर की शपथ खाता हूं।
‘जाओ, माफ किया। पांच हजार की रकम मेरे नाम घरेलू खर्च में डाल देना।’
‘परंतु अब आप मुझे अपने यहां मुनीम नहीं रखेंगे?’
‘रखूंगा क्यों नहीं। भूल हो जाना स्वाभाविक है। फिर तुम नवयुवक हो। लोभ में आकर भूल कर बैठे। नंदलाल! मैं तुम्हें अपना छोटा भाई मानता हूं चिंता मत करो।’

अगले वर्ष सेठ गंगारसन जी को कपड़े के व्यापार में एक लाख का मुनाफा हुआ। मुनीम नंदलाल को फिर लोभ के भूत ने घेरा। अपकी बार सेठजी के प्राण लेने की तरकीब सोची जाने लगी। उसने सोचा-यदि सेठजी बीच में ही उठ जायं तो विधवा सेठानी और बालक शंकरलाल मेरे ही भरोसे रह जाएंगे। वे दोनों क्या जानें कि ‘मिती काटा और तत्काल’ धन किसे कहते हैं। बुद्धिमाने से भरे हीले-हवाले से यह एक लाख मेरी तिजोरी में जा पहुंचेगा। किसी को कुछ खबर भी होगी, अंत में घाटा दिखला दूंगा। व्यापार में लाभ ही नहीं होता, घाटा भी होता है।

संध्या का समय था। नंदलाल अपने घर से एक गिलास दूध संखिया (एक प्रकार का घातक विष) डालकर सेठ के पास ले गया और बोला-‘दस दिन हुए मेरी गाय ने बच्चा दिया था। आज से दूध लेना शुरू किया जाएगा। आपकी बहू ने कहा – ‘पहला गिलास मालिक को पिला आओ। तब हम लोग दूध का पउपयोग करेंगे।’

सेठजी बोले-‘गिलास मेज पर रखकर घर चले जाओ।’ अभी मैं भी भोजन करने जा रहा हूं। सोते समय तुम्हारा लाया हुआ यह दूध मैं अवश्य पी लूंगा।’

मेज पर वह विषाक्त दूध रखकर दुष्ट मुनीम चला गया।

भोजन करके सेठजी आए तो देखा कि गिलास खाली पड़ा है। सारा दूध पड़ोस की पालतू बिल्ली पी गई। सुबह सुना कि पड़ोसी की बिल्ली मर गई। वह क्यों मरी, कैसे मरी-इस बात की छानबीन नहीं की गई। पशु के मरने-जीने की चिंता मनुष्य नहीं करता। दुकान पर सेठ को गद्दी पर बैठा देख मुनीम को आश्चर्य हुआ, परंतु वह बोला कुछ नहीं।

रात को स्वप्न में सेठजी को भगवान शंकरजी के दर्शन हुए। भगवान कहा रहे थे – ‘तुमने जिस दुष्ट मुनीम को पांच हजार के गबन के मामले में क्षमा कर दिया था, उसने दूध में संखिया मिलाकर तुमको समाप्त करने का षड्यंत्र रचा था। मैंने प्रेरणा करके बिल्ली भेजी थी और तुम्हारे प्राण बचाए थे। उसी विष से पड़ोसी की बिल्ली मरी थी।’

सेठ ने उसी समय जाकर सेठानी को अपना सपना सुनाया। सुनकर बेचारी सेठानी सहम गई। फिर संभलकर बिली – ‘जब वह तुम्हारा ऐसा अशुभचिंतक है, तब उसे निकाल बाहर करो, कोई दूसरा ईमानदान मुनीम रख लो।’
‘मैं अपने शुभचिंतन के द्वारा उसका अशुभचिंतन नष्ट कर डालूंगा। सेठ ने दृढ़ता के साथ कहा।’
‘यह कैसे हो सकता है?’ सेठानी ने आश्चर्यचकित होकर प्रश्न किया।’
‘मैं अपने मन में उसके प्रति वैरभावना नहीं रखूंगा, बल्कि प्रेम-भावना को बढ़ाता रहूंगा।’
‘इससे क्या होगा?’
‘जब हम किसी के प्रति शत्रुता के विचार रखते हैं, तब वह भावना उसके पास जाकर उसकी शत्रुता को और भी बढ़ा देती है। दिल को दिल से राह होती है।’
प्रात:काल स्नान के बाद भक्तजी विश्वनाथ-मंदिर में गए। पूजन करके हाथ जोड़कर बोले – ‘अंतर्यामी भोलेनाथ! मुझे अपने मुनीम के पतन का आंतरिक दुख है, परंतु मेरे मुनीम के प्रति जरा भी द्वेष देखें त्प बेशक मुझे दण्ड दें। भगवन्! आप मेरे मुनीम का चित्त शुद्ध कर दीजिए। यदि उसकी लोभ-भावना दूर न हुई तो मेरी भक्ति का क्या फल हुआ? काम, क्रोध, लोभ – ये ही तीन मानव के प्रबलतम शत्रु हैं। मुझे अपने जीवन का भय नहीं है; क्योंकि मैं तो आत्मसमर्पण करके निश्चिंत हो गया हूं।

सांझ को एक सपेरा मुनीमजी के घर के सामने से निकला। मुनीम ने उसे बुलाकर कहा – ‘तुम्हारे पास कोई ऐसा सांप है, जिसके विषदांत तोड़े न गए हों?’
‘जी हां, इसी पेटी में मौजूद है। कल ही पकड़ा था।’
‘तुम उसे बेच दो। ये लो पांच रुपए।’
संपेरे ने वह सांप एक मिट्टी की हांडी में बंद कर दिया और मुंह पर कपड़ा बांध दिया।
रात में नंदलाल सेठजी के मकान पर पहुंचा। उसने खिड़की के द्वाता वह काला सांप अंदर फेंक दिया, और वह सेठजी की रजाई के ऊपर जा गिरा। हंसता हुआ नंदलाल लौट गया।

प्रात: जब सेठजी रजाई से बाहर निकले तब सेठानी भी वहीं खड़ी थी। उसी रजाई में से एक काला सांप निकला और पलंग पर से नीचे उतर गया। सेठानी चीख पड़ी। नौकर को बुलाने लगी।
‘नौकर को क्यों पुकारती हो’ सेठजी बोले।
‘इस सांप को मरवाऊंगी। आपको काटा तो नहीं!’ सेठानी ने कहा।
‘मेरी प्रेमपरीक्षा लेने के लिए भगवान भोलेनाथ ने अपने गले का जार भेजा था। रातभर साथ सोता रहा। कभी मेरा हाथ पड़ गया तो कभी पैर भी पड़ गया; परंत काटता तो रातभर में सौ बार काट सकता था।’ सेठ ने कहा।
तब तक लाठी लेकर नौकर आ गया। सेठजी बोले-‘हीरा! लाठी रख दो। एक कटोरा दूध ले आओ। दूध पिलाकर सर्पदेवता को जाने दो, जहां वे जाना चाहें। खबरदार, मारना मत।’
और वह इसी घर में रहने लगे। सेठानी ने व्यंग्य किया।
कोई परवाह नहीं, रहने दो। भला, सांप कहां नहीं रहते। सेठजी ने कहा।

रात को सेठजी ने सपने में फिर भोलेनाथ को बैल पर चढ़े हुए मुस्कुराते देखा। भगवान ने मुनीमवाली सर्प-क्रिया बयान कर दी। सेठ ने कहा- कुछ हो, अपने शुभचिंतन के द्वारा मुनीम के अशुभ-चिंतन को नष्ट करना है। आपका आशीर्वाद है, इस परीक्षा में पास हो ही जाऊंगा। आप भी इसमें मेरी सहायता करें।

अपने दोनों अशुभचिंतन विफल देख मुनीम नंदलाल ने तीसरी स्कीम सोची। उसने दो नामी चोरों से दोस्ती गांठी। एक दिन आधी रात के समय नंदलाल उन दोनों चोरों को लेकर सेठजी के मकान के पूछे जा पहुंचा। सेंध लगवाकर तीनों भीतर घुसे। सेठजी की तिजोरी जिस कमरे में रहती थी, उस कमरे को मुनीम जानता था। ज्यों ही मुनीम उस कमरे में पहुंचा, उसने सामने काशी के कोतवाल भगवान महान भैरव को त्रिशूल लिए खजाने के पहरे पर खड़ा देखा; भय खाकर भागना चाहा तो भगवान ने उसे पकड़ लिया। दो तमाचे लगाकर कहा – ‘नीच, जिसने तुझे आत्महत्या से बचाया, उसके प्रति बदमाशी-पर-बदमाशी करता ही चला जा रहा है। आज तुझे खत्म करूंगा।’

दोनों चोर भाग गए। मुनीम ने भगवान भूतनाथ के चरण पकड़ किए और गिड़गिड़ाने लगा – आज मेरा सारा अशुभचिंतन मर गया। मैं अभी सेठजी से माफी मांगता हूं। अपने सुधार के लिए यह एक मौका दीजिए।
वही हुआ। मुनीम ने जाकर सेठजी को जगाया और उनके चरण पकड़कर अपने तीनों अपराधों को स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी। सेठजी ने हंसकर मुनीम को छाती से लहा लिया और कहा – ‘मेरे शुभचिंतन की विजय हुई।’
और वास्तव में नास्तिक मुनीम ईमानदार आस्तिक बन गया था।

wish4me in English

seth gangaasaran jee kaashee mein rahate the. ve bhagavaan shankarajee ke sachche bhakt the. somavatee amaavasya ka praat:kaal tha. manikarnika ghaat par anek nar-naaree, saadhu-sanyaasee snaan kar rahe the. bhakt gangaasaran jee bhee snaan kar rahe the. tab tak alavar ke mandir par se koee ganga mein koota aur dubakiyaan khaane laga. kisee kee himmat na padee, jo us doobane vaale ko bachaane kee koshish karata, kyonki kabhee-kabhee doobanevaala apane bachaanevaale ko is tarah pakadata hai ki donon doob marate hain; parantu sethajee ka hrday karuna se bhar gaya. ve tairana bhee jaanate the. chaar haath maare aur doobanevaale ko ja thaama. kinaare par laakar dekha to vah sethajee ka hee muneem nandalaal tha. pet se paanee nikaalane ke baad jan nandalaal ko hosh mein dekha, tab gangaasaran jee ne kaha –
‘muneemajee! aapako kisane gangaajee mein phenka tha?’
‘kisee ne nahin.’
‘to kya kisee ka dhakka khaakar aap gire the?’
‘nahin to’
‘phir kya baat thee?’
‘main svayan hee aatmahatya karana chaahata tha.’
‘vah kyon?’
‘mainne aapake paanch hajaar rupe satte mein barabaad kar die hain. mainne socha ki aap mujhe gaban ke abhiyog mein giraphtaar karaakar jel mein band kara denge. apanee badanaamee se bachane ke lie mainne mar jaana uttam samajha tha.’
ek shart par main tumhaara aparaadh kshama kar sakata hoon.
‘vah shart kya hai?’
pratigya karo ki aaj se kisee prakaar ka koee jua nahin kheloge – satta nahin karoge.
pratigya karata hoon aur jagadguru shankar kee shapath khaata hoon.
‘jao, maaph kiya. paanch hajaar kee rakam mere naam ghareloo kharch mein daal dena.’
‘parantu ab aap mujhe apane yahaan muneem nahin rakhenge?’
‘rakhoonga kyon nahin. bhool ho jaana svaabhaavik hai. phir tum navayuvak ho. lobh mein aakar bhool kar baithe. nandalaal! main tumhen apana chhota bhaee maanata hoon chinta mat karo.’

agale varsh seth gangaarasan jee ko kapade ke vyaapaar mein ek laakh ka munaapha hua. muneem nandalaal ko phir lobh ke bhoot ne ghera. apakee baar sethajee ke praan lene kee tarakeeb sochee jaane lagee. usane socha-yadi sethajee beech mein hee uth jaayan to vidhava sethaanee aur baalak shankaralaal mere hee bharose rah jaenge. ve donon kya jaanen ki ‘mitee kaata aur tatkaal’ dhan kise kahate hain. buddhimaane se bhare heele-havaale se yah ek laakh meree tijoree mein ja pahunchega. kisee ko kuchh khabar bhee hogee, ant mein ghaata dikhala doonga. vyaapaar mein laabh hee nahin hota, ghaata bhee hota hai.

sandhya ka samay tha. nandalaal apane ghar se ek gilaas doodh sankhiya (ek prakaar ka ghaatak vish) daalakar seth ke paas le gaya aur bola-‘das din hue meree gaay ne bachcha diya tha. aaj se doodh lena shuroo kiya jaega. aapakee bahoo ne kaha – ‘pahala gilaas maalik ko pila aao. tab ham log doodh ka paupayog karenge.’

sethajee bole-‘gilaas mej par rakhakar ghar chale jao.’ abhee main bhee bhojan karane ja raha hoon. sote samay tumhaara laaya hua yah doodh main avashy pee loonga.’

mej par vah vishaakt doodh rakhakar dusht muneem chala gaya.

bhojan karake sethajee aae to dekha ki gilaas khaalee pada hai. saara doodh pados kee paalatoo billee pee gaee. subah suna ki padosee kee billee mar gaee. vah kyon maree, kaise maree-is baat kee chhaanabeen nahin kee gaee. pashu ke marane-jeene kee chinta manushy nahin karata. dukaan par seth ko gaddee par baitha dekh muneem ko aashchary hua, parantu vah bola kuchh nahin.

raat ko svapn mein sethajee ko bhagavaan shankarajee ke darshan hue. bhagavaan kaha rahe the – ‘tumane jis dusht muneem ko paanch hajaar ke gaban ke maamale mein kshama kar diya tha, usane doodh mein sankhiya milaakar tumako samaapt karane ka shadyantr racha tha. mainne prerana karake billee bhejee thee aur tumhaare praan bachae the. usee vish se padosee kee billee maree thee.’

seth ne usee samay jaakar sethaanee ko apana sapana sunaaya. sunakar bechaaree sethaanee saham gaee. phir sambhalakar bilee – ‘jab vah tumhaara aisa ashubhachintak hai, tab use nikaal baahar karo, koee doosara eemaanadaan muneem rakh lo.’
‘main apane shubhachintan ke dvaara usaka ashubhachintan nasht kar daaloonga. seth ne drdhata ke saath kaha.’
‘yah kaise ho sakata hai?’ sethaanee ne aashcharyachakit hokar prashn kiya.’
‘main apane man mein usake prati vairabhaavana nahin rakhoonga, balki prem-bhaavana ko badhaata rahoonga.’
‘isase kya hoga?’
‘jab ham kisee ke prati shatruta ke vichaar rakhate hain, tab vah bhaavana usake paas jaakar usakee shatruta ko aur bhee badha detee hai. dil ko dil se raah hotee hai.’
praat:kaal snaan ke baad bhaktajee vishvanaath-mandir mein gae. poojan karake haath jodakar bole – ‘antaryaamee bholenaath! mujhe apane muneem ke patan ka aantarik dukh hai, parantu mere muneem ke prati jara bhee dvesh dekhen tp beshak mujhe dand den. bhagavan! aap mere muneem ka chitt shuddh kar deejie. yadi usakee lobh-bhaavana door na huee to meree bhakti ka kya phal hua? kaam, krodh, lobh – ye hee teen maanav ke prabalatam shatru hain. mujhe apane jeevan ka bhay nahin hai; kyonki main to aatmasamarpan karake nishchint ho gaya hoon.

saanjh ko ek sapera muneemajee ke ghar ke saamane se nikala. muneem ne use bulaakar kaha – ‘tumhaare paas koee aisa saamp hai, jisake vishadaant tode na gae hon?’
‘jee haan, isee petee mein maujood hai. kal hee pakada tha.’
‘tum use bech do. ye lo paanch rupe.’
sampere ne vah saamp ek mittee kee haandee mein band kar diya aur munh par kapada baandh diya.
raat mein nandalaal sethajee ke makaan par pahuncha. usane khidakee ke dvaata vah kaala saamp andar phenk diya, aur vah sethajee kee rajaee ke oopar ja gira. hansata hua nandalaal laut gaya.

praat: jab sethajee rajaee se baahar nikale tab sethaanee bhee vaheen khadee thee. usee rajaee mein se ek kaala saamp nikala aur palang par se neeche utar gaya. sethaanee cheekh padee. naukar ko bulaane lagee.
‘naukar ko kyon pukaaratee ho’ sethajee bole.
‘is saamp ko maravaoongee. aapako kaata to nahin!’ sethaanee ne kaha.
‘meree premapareeksha lene ke lie bhagavaan bholenaath ne apane gale ka jaar bheja tha. raatabhar saath sota raha. kabhee mera haath pad gaya to kabhee pair bhee pad gaya; parant kaatata to raatabhar mein sau baar kaat sakata tha.’ seth ne kaha.
tab tak laathee lekar naukar aa gaya. sethajee bole-‘heera! laathee rakh do. ek katora doodh le aao. doodh pilaakar sarpadevata ko jaane do, jahaan ve jaana chaahen. khabaradaar, maarana mat.’
aur vah isee ghar mein rahane lage. sethaanee ne vyangy kiya.
koee paravaah nahin, rahane do. bhala, saamp kahaan nahin rahate. sethajee ne kaha.

raat ko sethajee ne sapane mein phir bholenaath ko bail par chadhe hue muskuraate dekha. bhagavaan ne muneemavaalee sarp-kriya bayaan kar dee. seth ne kaha- kuchh ho, apane shubhachintan ke dvaara muneem ke ashubh-chintan ko nasht karana hai. aapaka aasheervaad hai, is pareeksha mein paas ho hee jaoonga. aap bhee isamen meree sahaayata karen.

apane donon ashubhachintan viphal dekh muneem nandalaal ne teesaree skeem sochee. usane do naamee choron se dostee gaanthee. ek din aadhee raat ke samay nandalaal un donon choron ko lekar sethajee ke makaan ke poochhe ja pahuncha. sendh lagavaakar teenon bheetar ghuse. sethajee kee tijoree jis kamare mein rahatee thee, us kamare ko muneem jaanata tha. jyon hee muneem us kamare mein pahuncha, usane saamane kaashee ke kotavaal bhagavaan mahaan bhairav ko trishool lie khajaane ke pahare par khada dekha; bhay khaakar bhaagana chaaha to bhagavaan ne use pakad liya. do tamaache lagaakar kaha – ‘neech, jisane tujhe aatmahatya se bachaaya, usake prati badamaashee-par-badamaashee karata hee chala ja raha hai. aaj tujhe khatm karoonga.’

donon chor bhaag gae. muneem ne bhagavaan bhootanaath ke charan pakad kie aur gidagidaane laga – aaj mera saara ashubhachintan mar gaya. main abhee sethajee se maaphee maangata hoon. apane sudhaar ke lie yah ek mauka deejie.
vahee hua. muneem ne jaakar sethajee ko jagaaya aur unake charan pakadakar apane teenon aparaadhon ko sveekaar karate hue kshama maangee. sethajee ne hansakar muneem ko chhaatee se laha liya aur kaha – ‘mere shubhachintan kee vijay huee.’
aur vaastav mein naastik muneem eemaanadaar aastik ban gaya tha

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