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बेजुबान रिश्ता

का देख रही हो बिटिया …. एक भी अमरूद अच्छा ना है … कमली अपनी बेटी सुगिया से बोली… जो सरिता जी जिसे वो अम्मा बुलाती थी को दुध देने आई थी।

अम्मा! तुम भी ना … बेकार में इ गाछ का सेवा करती हो। एक फल तो खिलाता ना है , चिड़ियाँ, मैना आँगन गंदा करता है उ अलग

चिड़ियाँ, मैना का तो पेट भरता है ना! अब उसकी आदत है आधा खाकर गिराने का तो वो क्या करे??

तुम क्या जानो कमली …. ये चिड़ियाँ , मैना मेरा आँगन ना छोड़े इसीलिए तो ये अमरूद का पेड़ नहीं कटवाती। इन्हीं चिड़ियाँ, मैना से तो मेरा आँगन सुहाना रहता है।

वरना कौन है इस बुढ़िया से बात भी करने वाला ??

ठीक है अम्मा … दूध ले लो , मुझे दूसरे घर भी जाना है दूध देने। धूप चढ़ जाएगी तो सुगिया को धूप में लेकर कहाँ-कहाँ फिरती रहूँगी।

सरिता जी दूध ले ली और कमली के बातों पर सोचने लगी….एक माँ-बाप होते हैं जो बच्चों को धूप लगने से भी डरते हैं और यही बच्चे बड़े होकर माँ-बाप को जिन्दगी की धूप में जलने अकेला छोड़ देते हैं। सरिता जी गाँव में रहतीं हैं।

एक दिन सरिता जी अपने गाँव की एक गली से गुजर रही थी । उनकी नजर अमरूद के एक नन्हें से पौधे पर पड़ा। उसकी दो पत्तियाँ ऊपर की ओर बाहें फैलाए जैसे सरिता जी से कह रही हो कि मुझे गोद उठा लो। सरिता जी खुद को रोक नहीं पाईं। उस अमरूद के नन्हें से पौधे को लाकर अपने मिट्टी के आँगन में लगा दी।

सरिता जी पौधे का अपने बच्चे की तरह ध्यान रखती। सरिता जी की सेवा और मौसम के प्यार दुलार पाकर वो पौधा जल्दी हीं पेड़ बन गया। तीसरे साल हीं उसमें फूल आ गया।

सरिता जी फूल देखकर इतनी खुश हुई जैसे माँ अपने बच्चे की किसी उपलब्धि से होती है। चलिए अब थोड़ा सरिता जी के जीवन के बारे में कुछ बात कर लेतें हैं….

सरिता जी की उम्र लगभग 70 वर्ष है। वो गाँव में अकेले रहती हैं।

अरे नहीं !!! वो निःसंतान नहीं हैं। दो-दो बेटे हैं उसके दो बहू और चार-चार पोते- पोतियाँ हैं सरिता जी को। लेकिन सभी शहर में। भरा- पुरा संसार होते हुए भी इस संसार में अकेले रहने को विवश हैं। 50 की उम्र में पति भी साथ छोड़ गए। दोनों बेटे मुम्बई में अपना-अपना बिजनेस करतें हैं। दोनों बेटों को एक- एक बेटा और एक-एक बेटी है।

सभी बड़े हो चुके हैं । काॅलेज में हैं चारो पोता पोती। सभी अपनी-अपनी जिन्दगी में इतने वयस्त हैं कि किसी को फुर्सत नहीं है अपनी माँ की या दादी की खैरियत भी पुछे। बेटों से सरिता जी अकेले रहने में समस्या की बात कहती है तो बेटे कहतें हैं यहीं शहर आकर रहो।

उसका वहाँ रहना दोनों बहुओं को फूटी आँख नहीं सुहाती। 70 वर्ष की उम्र में भी किसी तरह सरिता जी अपने लिए दो रोटी सेंक लेती है। उस रोटी में आत्मसम्मान का स्वाद तो होता है….

नहीं तो बहुओं के पास तो रोटी के साथ तानों और अपमान की चटनी भी साथ खानी पड़ती है। इसीलिए जब तक हाथ-पैर चले सरिता जी गाँव में हीं रहना चाहती है। और ईश्वर से प्रार्थना करती है कि चलते-फिरते हीं अपने पास बुला ले। खैर, फिलहाल उनकी अमरूद के पेड़ की बात पर आतें हैं।

तीसरे साल सरिता जी के अमरूद के पेड़ में बहुत मीठे अमरूद आए। सरिता जी खुशी से अपने आस- पडोस में अमरूद दे बााँटी और बोली ….खाकर देखो… कितनी मीठी अमरूद आई है।

लेकिन दुसरे साल से ना जाने अमरूद के पेड़ को क्या हुआ…. सारे अमरूद काने ( खराब) आए। सरिता जी के ज्यादातर दांत टुट चुके थे । वो खुद तो खा नहीं पाती । खराब अमरूद न बिकेगी और न किसी को देने में हीं अच्छा लगेगा। सरिता जी थोड़ी निराश हो गई।

लेकिन कुछ हीं दिनों बाद अमरूद के पेड़ पर कुछ पक्षी आकर बैठे और अमरूद खाने लगे। सरिता जी को खुशी हुई कि चलो किसी का पेट तो भरा | वो पक्षियों को भगाती भी नहीं …. क्युंकि अमरूद उसके काम का तो था नहीं… तो पक्षीयाँ भी निडर होकर खाती।

दिन ब दिन पक्षियों की संख्या बढ़ने लगी। पक्षियों के कलरव से सरिता जी को आँगन भी सुहाना लगने लगा।र दुसरे साल भी अमरूद सारे खराब हीं आए। लेकिन इस बार सरिता जी दुःखी नहीं बल्कि खुश थीं कि फिर से पक्षियों के कलरव से आँगन खिल उठेगा। उन पक्षियों से रिश्ता जुड़ गया सरिता जी का।

गाँव में सभी कहते …. क्यूं इस काने अमरूद वाले पेड़ की सेवा करती हो। एक भी अमरूद तो अच्छा आता नहीं और पक्षीयाँ सिर्फ आँगन गंदा करती है। सबको डपटते हुए सरिता जी कहतीं… मैं खराब अमरूद के लिए हीं पेड़ की सेवा करतीं हूँ किसी का क्या जाता है??

सब चुप हो जाते। एक दोपहर सरिता जी कमरे में सो रही थी । किवाड़ खुला हुआ हीं था।

अचानक अमरूद के पेड़ पर बैठे पक्षी जोर-जोर से एक साथ चहचहाने लगे। उनकी इतनी जोर की आवाज से सरिता जी की नींद खुली। उन्हें लगा कि कहीं कोई पक्षियों को मार तो नहीं रहा??

वो अन्दर से हीं चिल्लाते हुए बोलीं…. कौन मार रहा है मेरे पक्षियों को???

किसी की आवाज नहीं आई , लेकिन पक्षियों का चहचहाना बंद हीं नहीं हो रहा था…सरिता जी कमरे से निकली तो देखी एक सांप उनके कमरे की तरफ हीं दिवार से सटे जा रहा था और उसी को देख ये पक्षी शोर मचा रहे थे। सांप देखकर सरिता जी डर गई।

किसी तरह बगल से निकल कर बाहर से लोगों को बुला कर लाईं। पड़ोस के कुछ लोग आए और सांप को पकड़ बाहर ले गए। आज ये बेजुबान पक्षी की वजह से सरिता जी की जान बच गई। सरिता जी वहाँ के लोगों से बोलीं…. देखो, तुमलोग कहते थे….. मैं ये पेड़ नहीं काटती … ये पक्षी आँगन गंदा करते हैं।

आज इन पक्षियों की वजह से हीं मेरी जान बची। बेजुबान भी रिश्ता निभाना जानतें हैं। सरिता जी प्यार से पक्षियों को निहार रही थी। वो पक्षी अमरूद खाने में मग्न हो गए।

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