एक स्कूल में क्लर्क की नौकरी पाये हुए थे।
गांव में दो कमरों का एक मकान एक कर्कशा बुढ़िया अम्मा,एक गाय जैसी पत्नी लक्ष्मी, दो लड़कियां एक बारह साल की सीता,नौ साल की राधा यही उनकी मिल्कियत थी। एक लड़का पैदा हो कर चल बसा था। जिससे मधुकर बाबू बहुत खिन्न रहते थे। जब तब उनका गुस्सा बीवी पर उतर जाता था।
आग में घी डालने कि काम उनकी अम्मा कर देती थी। अम्मा खटिया पर लेटकर जब तब मधुकर बाबू को गरुड़ पुराण का वाचन करती कि लड़का पैदा न हो तो मुक्ति नहीं मिलती। लक्ष्मी छोटी बिटिया का नाम दुर्गा रखना चाहती थी पर अम्मा बोली का दुर्गा रखोगी? जैसा नाम वैसा ही गुण आ जाता है। तभी मधुकर जी कड़वाहट घोलते बोले इसका नाम तो लक्ष्मी है अम्मा पर जब से हमारे जीवन में आयी है हमारा तो बंटाधार हो गया है।
ये सब सुनते सुनते लक्ष्मी गूंगी हो गई थी। बड़ी बिटिया सीता तो समझने लगी थी पर छोटी ना समझ थी उसे अपनी मां को रोते डरते देख कर एक ही बात समझ में आती थी पिताजी और अम्मा दोनों बुरे हैं जो उसकी मां को रुलाते हैं।अपनी मां के आंसू पोछ कर कहती मैं जब बड़ी हो जाऊंगी तब सब ठीक कर दूंगी। लक्ष्मी को एक उम्मीद बंध जाती।
सत्रह साल की होते ही मधुकर बाबू ने सीता का विवाह उससे पन्द्रह साल बडे़ सुनील से तय कर दिया सीता पढ़ना चाहती थी उसने दबे स्वर में कहा पर उन्होंने उसे डांटते हुए कहा कि बारहवीं तो कर रही हो अब क्या कलक्टर बनोगी?सब वहीं जा कर करना।
सीता बेचारी रो धो कर विदा हो गई।उसके पति सुनील की एक छोटी सी दुकान थी। सीता की सास एक नंबर की लालची और गंवार औरत थी। सीता की शादी को तीन साल हो गए थे। एक बेटा हो गया था पर सास जरा भी नहीं बदली थी। मधुकर जी सब पता होते हुए भी कहते थे तुम्हारा घर अब वहीं है सहना सीखो।
घर की दहलीज में ही औरत की जिंदगी और इज्जत महफूज होती है।छोटी राधा अब सत्रह साल की हो गई थी बला की खुबसूरत, पढ़ने में होशियार,स्टेट लेवल की एथलीट खेलना तो बैटमिंटन चाहती थी पर मधुकर जी ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया तो उसने अपने शरीर और बुद्धि का उपयोग कर के ऐथिलेटिक्स चैम्पियन शिप में हिस्सा लेकर साबित कर दिया कि हुनर किसी का मोहताज नहीं होता।
चैम्पियनशिप में हिस्सा दिलाने की रिक्वेस्ट करने प्रिंसिपल सर मधुकर जी के पास गए। जब राधा जीत कर घर आयी तो मधुकर जी ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। राधा के बारहवीं करने के बाद मधुकर बाबू उसके लिए भी रिश्ता खोजने लगे।
जब राधा को ये पता चला तो उसने कहा पिताजी मैं अभी शादी नहीं करुंगी मधुकर बाबू ने उसे डांटते हुए कहा कि मेरे घर में ऐसा नहीं चलेगा। राधा पिता के सामने तन कर खड़ी हो गई आप मुझे सीता दीदी समझने की गलती मत करना ये घर मेरा भी है।राधा लगातार मेहनत करती रही और अपनी मेहनत के बल पर नेशनल लेवल पर भी जीत गई।
अपनी हिम्मत और मेहनत से रेलवे में ऑफिसर के पद पर सलेक्ट हुई। ज्वाइनिंग के छह महीने बाद घर आकर अपनी मां से बोली मां तैयार हो जाओ अपने घर चलेंगे। लक्ष्मी हैरत से उसे देखने लगी मधुकर बाबू खामोश थे।
राधा बोली मां अभी दीदी के घर से आ रही हूं उसकी सास के होश ठिकाने लगा कर। उसे बोला है कि आज केवल समझाने आयी हूं अगली बार अगर दीदी को जरा सी भी परेशानी हुई तो पुलिस लेकर आऊंगी। लक्ष्मी ने मूक नज़रों से पति को देखा अपना सामान लेकर बेटी के साथ गर्व से गर्दन ऊंची कर के घर की दहलीज पार कर गई।
ये वही दहलीज थी जिसे कभी पार न करने की नसीहत पहले उसे अपने मां बाप से और फिर पति से जिंदगी भर अपमान सह कर मिलती रही थी