जो व्यक्ति बिना हिम्मत हारे जीवन की मुश्किलों को पार करता है वही सफलता के द्वार तक पहुंच पाता है। संघर्षों से ही भरी कहानी है भारतीय क्रिकेटर संजू सैमसन की; जो बिना हार माने मेहनत करते गए और आज अंतर्राष्ट्रीय भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं।
पिता सैमसन विश्वनाथ दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल थे, इसलिए संजू के क्रिकेट खेलने की शुरुआत भी दिल्ली से ही हुई। जब वह 6-7 साल के थे तब उनके पिता पहली बार फिरोजशाह कोतला के मैदान पर उन्हें नेट प्रैक्टिस के लिए ले गए; जिसके बाद उनकी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ने लगी।
इसके बाद उन्होंने दिल्ली में कई जगहों पर क्रिकेट के लिए ट्रायल भी दिए लेकिन सफलता हाथ न लगी। संजू ने खुद अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वह क्रिकेट प्रैक्टिस के लिए कहीं बाहर जाते थे तब उनके पापा ही उनकी क्रिकेट किट उठाकर उन्हें बस स्टैंड पर छोड़ने जाया करते। संघर्ष के दिनों में उन्हें कई बार लोगों के ताने भी सुनने पड़े। लोग उन्हें और उनके पिता को ताने मारते हुए कहते थे- “वो देखो सचिन और उनके पापा जा रहे हैं.. ये निकले हैं तेंदुलकर बनने।”
लेकिन संजू ने अपनी सोच और कर्म पर इन बातों का असर नहीं होने दिया। वह मेहनत करते रहे, उनका दिल्ली में सेलेक्शन नहीं हुआ तो उनके पिता ने उन्हें केरल के त्रिवेंद्रम भेजने का फैसला किया। जहाँ एक तरफ वह अपनी माँ और भाई के साथ केरल में रह रहे थे, वहीं उनके पिता दिल्ली में नौकरी कर रहे थे। लेकिन जब उनका क्रिकेट में कुछ नहीं हो रहा था तो उनके पिता वॉलंटरी रिटायरमेंट लेकर केरल आ गए और उन्हें सुबह-शाम प्रैक्टिस पर ले जाने और मनोबल बढ़ाने का काम किया।
आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई.. 2011 में उन्होंने केरल की टीम से फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया और 2012 में भी केरल टीम का हिस्सा बने। इसके बाद 2013 में राजस्थान की तरफ से आईपीएल में कदम रखा। और 2015 में उन्होंने भारतीय टीम का हिस्सा बनकर इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू किया। इसके बाद संजू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने प्रदर्शन से लोगों का दिल जीतते चले गए संजू ने यह साबित किया है कि अगर आप मेहनत करते रहे और आपके अपने अगर आपके साथ खड़े रहे; तो आपको अपना लक्ष्य हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता