एक बार की बात है माता अंजना हनुमान जी के कुटी में लिटाकर कहीं बाहर चली गयीं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए दिखलायी दिए। इन्होंने समझा ये कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है। बस, एक ही छलांग में ये सूर्य भगवान के पास जा पहुंचे और उन्हें पकड़कर मुंह में रख लिया। सूर्य ग्रहण का दिन था। राहु सूर्य को ग्रसने के लिए उनके पास पहुंच रहा था। उसे देखकर हनुमान जी ने सोचा ये कोई काला फल है, इसलिए उसकी ओर भी झपटे। राहु किसी तरह भागकर देवराज इंद्र के पास पहुंचा। उसने कांपते हुए स्वरों में इंद्र देव से कहा, “भगवन! आज आपने ये कौन-सा दूसरा राहु सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया है? यदि मैं भगा न होता तो वह मुझे भी खा गया होता”।
राहु की बातें सुनकर भगवान इंद्र को बड़ा अचंभा हुआ। इंद्र ने देखा कि एक वानर-बालक सूर्य को मुंह में दबाए आकाश में खेल रहा है। हनुमान ने भी सफेद ऐरावत पर सवार इंद्र को हाथ में वज्र लिए देखा और समझा कि ये भी कोई खाने लायक सफेद फल है। वे उधर भी झपटे पड़े। क्रोधित इंद्र ने अपनी ओर झपटते हुए हनुमान से अपने को बचाया और सूर्य को छुड़ाने के लिए हनुमान की ठुड्डी पर वज्र का तेज प्रहार किया। प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वे बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
हनुमान के गिरते ही उनके पिता वायु देव वहां पहुंच गए। बेहोश हनुमान को उठाकर उन्होंने छाती से लगा लिया। मां अंजना भी वहां दौड़ी हुई आ पहुंचीं। हनुमान को बेहोश देखकर वे रोने लगीं। वायु देव ने क्रोध में आकर बहना ही बंद कर दिया। तीनों लोकों के सभी प्राणी व्याकुल होकर गिरने लगे। ब्रह्माजी इंद्र सहित सारे देवताओं को लेकर वायु देव के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने अपने हाथों से छूकर हनुमान को जीवित करते हुए वायु देवता से कहा, “वायु देव! आप तुरंत बहना शुरू करें। यदि आपने बहने में जरा भी देर की तो तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुंह में चले जाएंगे। आपके बालक को आज सभी देवताओं की ओर से वरदान प्राप्त होगा। आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इंद्र ने कहा- “मेरे वज्र का प्रभाव भी अब इस पर नहीं पड़ेगा। इसकी हनु (ठुड्डी) वज्र से टूट गई थी, इसलिए इसका नाम आज से हनुमान होगा”। ब्रह्मा जी ने कहा कि वायुदेव, तुम्हारा ये पुत्र बल, बुद्धि, विद्या में सबसे बढ़-चढ़कर होगा। तीनों लोकों में किसी भी बात में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई न होगा। ये भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त होगा। इसका ध्यान करते ही सबके सभी प्रकार के दुख दूर हो जाएंगे। ये मेरे ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से सर्वथा मुक्त होगा। वरदान से प्रसन्न होकर और ब्रह्माजी एवं देवताओं की प्रार्थना सुनकर वायुदेव ने फिर बहना शुरू कर दिया। तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।
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