रात्रि में विश्राम के बाद प्रात: काल विभीषण ने श्रीराम से हाथ जोड़कर कहा- प्रभो! अब आप स्नान करके दिव्य वस्त्र, मालांए तथा अंगराग का सदुपयोग करें। उसके बाद सुंदर व्यंजनों को स्वीकार कर मुझे कुछ दिन अपने आतिथ्य-सत्कार का सौभाग्य प्रदान करें।
भगवान श्रीराम ने कहा –विभीषण! मेरे लिए इस समय सत्य का आश्रय लेने वाले महाबाहु भरत बहुत कष्ट सह रहे हैं । वह अत्यंत सुकुमार एंव सुख पाने के योग्य हैं। उन धर्मपरायण भरत से मिले बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मेरे पहुंचने में विलम्ब होने पर वह अपने प्राणों का त्याग कर देंगें। अत: तुम शीघ्र मुझे अयोध्या पहुंचाने की व्यवस्था करो।
भगवान श्रीराम के इस प्रकार कहने पर विभीषण ने तत्काल कुबेर पुष्पक विमान का आवाह्न किया। विश्वकर्मा द्दारा निर्मित वह विमान सुमेरू-शिखर के समान ऊंचा तथा विभिन्न रत्नों से सुसज्जित बड़े-बड़े कमरों से विभूषित था। उसमें नील के मूल्यवान सिहांसन लगे थे। वह मन के समान वेगवान् था। वानरों को विभीषण के द्वारा रत्न और धन से सम्मानित कराने के बाद श्रीराम,लक्ष्मण और सीताजी के साथ उस विमान में सवार हुए। तत्पश्चात् भगवान के आदेश से विभीषण के साथ सुग्रीव,हनुमान और अंगदादि समस्त वानर वीर उस विमान पर बैठे। फिर भगवान श्रीराम की आज्ञा पाकर वह उत्तम विमान अयोध्या की ओर उड़ चला। विमान से सीताजी को विभिन्न स्थानों के दर्शन कराते हुए भगवान श्रीराम श्रीभारद्वाज के आश्रम पर उतरे और हनुमान जी के द्वारा भरत को अपने शीघ्र अयोध्या पहुंचने का संदेश भेज दिया। हनुमान जी से श्रीराम का संदेश प्राप्त कर श्रीभरत सहसा आनंदविभोर होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और हर्ष से मूर्छित हो गये। क्षणभर बाद उन्होंने उठकर हनुमानजी को जोर से अपने अंकपाश में भर लिया और कहा-सौम्य तुमने यह प्रिय संवाद सुनाकर मेरे तन में नवीन प्राणों का संचार कर दिया। मैं तुम्हारा सदैव ऋणी रहूंगा। फिर श्रीभरत ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के स्वागत का अभूतपूर्व प्रबंध किया। उसी समय कुबेर का पुष्पक-विमान श्रीराम को लेकर नीचे उतरा। भगवान श्रीराम ने अपने पैरों में पड़े हुए भरत जी को उठाकर गले लिया। फिर वह यथयोग्य सबसे मिले। चारों ओर आनंदाश्रुओं की वृष्टि होने लगी।
तदन्तर भगवान श्रीराम जी के राज्याभिषेक वह दिव्य समय आया। ब्राह्मणों सहित श्रीवशिष्ठ जी ने जल से श्रीराम जी का सीता सहित अभिषेक किया। उसके बाद श्रीवशिष्ठ जी ने ब्रह्मा जी के द्वारा बनाये हुए सुंदर किरीट तथा शत्रुघन जी श्रीराम के पास खड़े होकर धवल चंवर डुलाने लगे। इस पवित्र अवसर पर वायुदेव ने सुवर्णमय कमलों की बनी मालाएं श्रीराम जी को भेंट कीं। श्रीराम के अभिषेक के साथ देवगंधर्व गाने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। भगवान श्रीराम ने ब्राह्मणों को असंख्य गायों के साथ विभिन्न प्रकार के रत्न दान में दिये। श्रीसीता-रामजी के पवित्र जयघोष से धरती और आकाश गूंज उठे। उस समय पृथ्वी हरी-भरी हो गयी तथा वृक्ष फलों से लद गये। फिर श्रीराम जी के शासनकाल में चिरस्मरणीय राम-राज्य की स्थापना हुई। जिसे हम आज भी याद करते हैं।
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