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गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन के कुछ अनछुए पहलू

He used to have special reverence in religion.

गोस्वामी तुलसीदास(1497-1623) एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर गांव (वर्तमान बांदा जिला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रन्थ लिखे और उन्हें विद्वान होने के साथ ही अवधी और हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक माना जाता है।

कहते हैं कि तुलसीदासजी महर्षि वाल्मीकि का अवतार थे जो मूल आदि काव्य रामायण के रचयिता थे। यहां हैं गोस्वामी तुलसीदास के निजी जीवन की कुछ रोचक प्रसंग जो बहुत कम लोग जानते हैं।

1. भुलई नाम का एक व्यक्ति था। वह भक्ति-पथ और गोस्वामीजी की निन्दा किया करता था। उसकी मृत्यु हो गयी। सब लोग उसे अर्थी पर सुलाकर शमशान ले जा रहे थे। भुलई की स्त्री रोती हुई आई, और उसने गोस्वामीजी को प्रणाम किया। गोस्वामीजी के मुंह से सहज में निकल गया कि ‘सौभाग्यवती भव!’

जब उसने अपने पति मृत्यु की बात बताई तो तुलसीदासजी ने उसके पति का शव अपने पास मंगवा लिया और मुंह में चरणामृत देकर उसे जीवित कर दिया। उसी दिन से गोस्वामी जी ने नियम ले लिया और बाहर बैठना छोड दिया।

2. तीन बालक थे। वह धर्म कर्म में विशेष श्रद्धा रखते थे। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब वह गोस्वामी जी के दर्शन के लिए ना आते हों। गोस्वामी जी उनका प्रेम पहचानते थे। वे केवल उन्हें ही दर्शन देने के लिए बाहर निकलते और फिर अन्दर बैठ जाते। जिन्हें दर्शन नहीं मिलता, वे इस बात से नाखुश थे।

बाबा पक्षपाती हैं ऐसा जानकर वह उनका तिरस्कार करने लगे। एक दिन तुलसीदास ने उनका महत्त्व सब लोगों के सामने प्रकट किया। दूसरे दिन उन तीन बालकों के आने पर भी वे बाहर नहीं निकले। तब उन तीनों ने अपने शरीर त्याग दिए। गोस्वामीजी बाहर निकले और सबके सामने भगवान का चरणामृत पिलाकर उन्हें जीवनदान दिया।

3. एक बार गांव के ही एक व्यक्ति टोडरमल का देहान्त हो गया। उसके पांच महीने बाद उनकी धन-सम्पत्ति उनके दोनों लडकों को गोस्वामी जी ने बांट दी। गोस्वामीजी ने इसके बाद हनुमान-बाहुक का निर्माण किया। पहले के ग्रन्थों को ठीक करवाया और फिर उन्हें दूसरों से लिखवाया। जब जहांगीर तुलसीदास बहुत-सी जमीन और धन देना चाहता था, तुलसीदास ने यह जमीन लेने से मना इंकार कर दिया था।

4. तुलसीदास अयोध्या में गए वहां उनकी भेंट एक व्यक्ति से हुई वह निम्म जाति का था। तुलसीदास ने भगवान का स्वरूप समझकर उसे अपने हृदय से लगा लिया। उसी समय गिरनार के बहुत-से सिद्ध आकाश-मार्ग से आए। तुलसीदासजी का दर्शन करके बडे आनन्दित हुए। उन्होंने बडे प्रेम से पूछा तुम कलियुग में रहते हो फिर भी काम से प्रभावित नहीं होते, इसका क्या कारण है ? यह योग की शक्ति है अथवा भक्ति का बल है ?

गोस्वामीजी ने कहा मुझमें न भक्ति का बल है, न ज्ञान का बल है, न योग का बल है। मुझे तो केवल भगवान के नाम का भरोसा है। गोस्वामीजी का उत्तर सुनकर वे सिद्ध बहुत प्रसन्न हुए। उनसे आज्ञा लेकर गिरनार चले गये ।

5. एक समय तुलसीदासजी के पास चन्द्रमणि नाम का एक भाट आया। उसने उनके चरणों में गिरकर प्रार्थना की मेरी आधी उमर विषयों के भोग में ही बीत गई। अब जो बची है, वह भी वैसे ही न बीत जाए। इन्द्रियों के कारण मेरी बडी हंसी हुई है। महाराज! अब मुझे भगवान के चरणों में ही रखिए! काशी से दूर मत कीजिए।तुलसीदास ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

6. तुलसीदास के पास एक बार एक हत्यारा ब्राह्मण आया। दूर खडा होकर वह राम-राम कहने लगा। अपने इष्टदेव का नाम सुनकर तुलसीदासजी आनन्द में खो गए और उसके पास जाकर उसे हृदय से लगा लिया। आदर से भोजन कराया और बडी प्रसन्नता से कहा-

तुलसी जाके मुखनि ते, धोखेहु निकसत राम।

ताके पगकी पगतरी, मेरे तन को चाम ।।

यह बात जल्द ही सारे नगर में फैल गयी। शाम होते ही ज्ञानी, ध्यानी, विद्वान इकट्ठे हो गए। उन लोगों ने गोस्वामीजी से पूछा यह हत्यारा कैसे शुद्ध हो गया? तुलसीदास ने कहा वेदों, पुराणों में नाम-महिमा लिखी है उसे पढकर देख लीजिए।

तब उन लोगों का कहना था कि आप कोई ऐसा उपाय करें जिससे हमें विश्वास हो जाए तुलसीदास ने उस हत्यारे के हाथों से भगवान शिव के नन्दी को भोजन कराया, यह देखकर सबको विश्वास हो गया। चारों ओर जय-जय की ध्वनि होने लगी। निन्दकों ने तुलसीदास के चरणों को पकड़कर क्षमा मांगी।

In English

Goswami Tulsidas (1497-1623) was a great poet He was born in Rajapur village (presently Banda district) in Uttar Pradesh. During his lifetime, Tulsidas ji wrote 12 books and as a scholar he is considered as one of the famous and best poets of Awadh and Hindi language.

It is said that Tulsidasji was the incarnation of Maharishi Valmiki who was the author of the original poet poet Ramayana. Here are some interesting incidents of private life of Goswami Tulsidas which very few people know.

1. There was a person named Bhulai. He used to condemn the path of devotion and Goswamiji. He died. All the people were taking him to the crematorium on the other side. The lady of Bhulai came crying, and she bowed down to Goswamiji. Goswamiji went out of his mouth comfortably, ‘Good luck!’

When she told her husband about the death, Tulsidasji took the body of her husband and got her dead and returned to life after giving vent to her mouth. From that day, Goswami took the rule and left it out.

2. There were three children. He used to have special reverence in religion. There is no such day when he does not come to see Goswami ji. Goswami ji knew his love They would just go out to give them visas and then sit in and sit in. Those who did not get the sight, were unhappy about this.

Knowing that Baba is biased, he began to despise them. One day Tulsidas revealed his importance to all the people. On the second day, they did not go out even when those three children came. Then all three of them left their bodies. Goswamiji came out and gave a life to God in front of everyone and gave him life.

3. Once a person of the village Todramal was killed. Five months later, Goswami ji distributed his wealth to his two sons. Goswamiji then created Hanuman-Bahuk. Correcting earlier texts and then writing them with others. When Jahangir Tulsidas wanted to give lots of land and money, Tulsidas refused to accept this land.

4. Tulsidas went to Ayodhya where his gift was to the half of the person who came from a person. Tulsidas understood God’s nature and applied it to his heart. At the same time came from the many proven skyways of Girnar. Tulasidasji appeared to be delighted. They asked with great love, you live in Kaliyuga, yet they are not affected by the work, what is the reason? Is this the power of yoga or the power of devotion?

Goswamiji said that there is no power of devotion in me, there is no power of knowledge, there is no yoga force. I just believe in God’s name. They were very happy to hear Goswamiji’s answer. With orders from them they went to Girnar.

5. Once upon a time Tulsidasji came to have a talk with Chandramani. He fell down at his feet and in the enjoyment of my half-hearted subjects of prayer passed. What remains of the survival is not the same. I am very laughing because of the senses. King! Now keep me in the feet of God! Do not take away from Kashi. Tulsidas accepted his prayer.

6. Tulsidas once came to a murderer Brahmin. Standing away, he started saying Ram-Rama. Tulsidasji lost his joy in hearing the name of Ishtavdev and went to him and attached him to the heart. Dinner with respect and said with great happiness-

Tulsi jake mache te, dhakehu niksat ram

Takke Pagki Pagari, My tan ki chama ..

This thing soon spread to all the cities. In the evening, knowledgeable, meditators, scholars gathered. Those people asked Goswamiji how did this killer become pure? Tulsidas said that the Vedas have written Nam Mahima in the Puranas, read and study them.

Then those people said that you take such a step that we believe that Tulsidas gave food to Lord Shiva’s nand at the hands of that killer, seeing that everyone was convinced. The sound of Jai-jai started to sound around. The condemners grabbed the feet of Tulsidas and apologized.

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