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सबसे गहरा दलदल !!

किसी नगर में एक राजा राज्य करता था। वह न्यायप्रिय, विद्वान एवं अत्यंत बुद्धिमान था। उसका एक मंत्री था, जो बहुत ही लोभी तथा धैर्यहीन था। राजा ने उसे सुधारने का निश्चय किया।

उसने मंत्री को बुलाकर कहा, “मंत्रीजी, मेरे राज्य में सबसे गहरा दलदल कौन सा है इसका पता लगाइये ? आपके पास एक माह का समय है। यदि आप एक माह में पता नहीं लगा पाए तो आपको मृत्युदंड दिया जाएगा।”

अब मंत्रीजी बांस बल्ली लेकर हर पोखर, तालाब की गहराई नापने लगे लेकिन सबसे गहरा दलदल नहीं खोज पाए। जब एक माह बीतने में केवल एक दिन बचा तो वे प्राणदण्ड के डर से राज्य छोड़कर भाग निकले।

चलते चलते वे एक रेगिस्तान में पहुंचे। दोपहर की धूप और गर्मी से उनका बुरा हाल हो गया था। प्यास के मारे प्राण निकलने वाले थे। चारों तरफ देखने पर एक जगह उन्हें भेड़ों का झुंड दिखाई पड़ा। पानी की आशा में वे वहां पहुंचे।

वहां उन्होंने एक गडरिये का मकान देखा। मंत्रीजी को देखकर गड़रिये ने उनका परिचय और इस वीरान रेगिस्तान में आने का कारण पूछा। मंत्रीजी ने उसे पूरी बात बता दी।

गड़रिया बोला, “आप चिंता न करिए, आपकी सारी समस्याओं का हल मेरे पास है। मैं सबसे गहरे दलदल के बारे में जानता हूँ। इससे भी अधिक मैं आपको राजा बना सकता हूँ। मेरे पास पारसमणि है, जिससे आप सोना बनाकर खुद का साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं।”

“पीने के लिए मेरे पास जल तो नहीं है किंतु इन भेड़ों का दूध पीकर आप अपनी प्यास बुझा सकते हैं।” मंत्री बहुत प्रसन्न हुआ। अब उसकी सारी परेशानियां दूर होने वाली थीं। उसने गड़रिये से कहा, “लाओ पहले मेरी प्यास बुझाने के लिए दूध दो।”

गड़रिये ने कहा, “उसमें एक दिक्कत है। मेरे पास एक ही लोटा है, उसमें मैं दूध दुहूँगा। पहले मैं खुद पीऊंगा जो बचेगा वह आपको दूंगा।” यह सुनकर मंत्री बहुत नाराज हुआ। यह गड़रिया मुझे अपना जूठा दूध पिलाना चाहता है। मैं नही पिऊंगा।

मंत्री वहां से आगे बढ़ गया। लेकिन थोड़ी दूर जाकर उसने सोचा कि प्यास से प्राण देने से तो अच्छा है कि गड़रिये का जूठा दूध ही पी लाया जाए। वैसे भी इसके बारे में किसे पता चलेगा ?

यह सोचकर वह वापस गड़रिये के पास आकर बोला, “अच्छा ठीक है, पहले तुम पी लेना फिर मुझे देना।” तब गड़रिया बोला, “मंत्रीजी आपने मेरी पूरी बात नहीं सुनी थी।” मंत्री ने कहा कि ठीक है तुम पूरी बात बताओ।

तब गड़रिये ने कहा, “यहां मेरे साथ मेरा कुत्ता भी रहता है जो इन भेड़ों की रखवाली करता है। पहले मैं दूध पीऊंगा फिर अपने कुत्ते को दूंगा। फिर जो बचेगा वह आपको मिलेगा।

मंत्री आगबबूला हो गया और तुरंत वहां से आगे बढ़ गया। लेकिन थोड़ी दूर जाने के बाद उसने फिर सोचा कि इसके पास पारसमणि है। जिसका उपयोग करके मैं राजा बन जाऊंगा। फिर किसकी हिम्मत होगी कि यह कहे कि राजा ने कुत्ते का जूठा दूध पिया है।

यह सोचकर वह वापस लौट आया और बोला, “ठीक है, तुम मुझे वही दूध दे देना।” लेकिन गड़रिया बोला, “मंत्रीजी, आप बहुत जल्दी में रहते हो। आपने मेरी पूरी बात फिर नहीं सुनी थी। पूरी बात यह है कि पहले मैं दूध पिऊंगा ,फिर मेरा कुत्ता पियेगा। फिर बचे दूध में मैं भेड़ों की मैगनी (लीद) घोलूँगा फिर आपको दूंगा।”

अब तो मंत्री आपे से बाहर हो गया। गड़रिये को गाली देता हुआ वह फिर आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाकर जब उसका क्रोध शांत हुआ तो उसने सोचा इसके पास पारसमणि जिससे मैं राजा बन सकता हूँ।

राजा बनने के लिए यह कोई बड़ी कीमत नहीं है। राजा बनते ही सबसे पहले मैं इस गड़रिये को मरवा दूंगा। फिर यह राज भी गड़रिये के साथ ही दफन हो जाएगा। यह सोचकर वह एक बार फिर वापस लौट आया और गड़रिये से बोला कि उसे सारी बातें मंजूर हैं।

गड़रिये ने दूध दुहा, खुद पिया और कुत्ते को पिलाया। फिर बाकी बचे दूध में भेड़ों की मैंगनी घोली और लोटा मंत्री को दे दिया। मंत्री ने जैसे ही लोटा मुंह में लगाया। गड़रिये ने लोटे पर हाथ मारकर गिरा दिया।

मंत्री नाराज होकर बोला, “अब इस धृष्टता का क्या अर्थ है ? तुमने लोटा क्यों गिरा दिया ?” गड़रिया बोला, “मंत्रीजी, तुम अब भी नहीं समझे।

जैसे तुम इस समय पारसमणि के लोभ में कुछ भी करने को तैयार हो गए। लोभ ने तुम्हारी बुद्धि पर पर्दा डाल दिया। जिससे तुम यह भी विचार नहीं कर पाए कि अगर मेरे पास पारसमणि होती तो मैं खुद न राजा बन जाता। यह अभावपूर्ण जीवन क्यों जीता ? जाओ अपने राजा को उत्तर दे दो।”

सीख- Moral

लोभ इंसान को बुरे कर्मों की ओर धकेल देता है। इसलिए कभी लोभ नहीं करना चाहिए।

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