राजा जन्मेजय की नगरी में अयुद्धौम्य नामक प्रसिद्ध गुरु का आश्रम था इनका एक सबसे उत्तम शिष्य था आरुणी | आरुणी की गुरु भक्ति इतिहास के पन्नो में गुंजायमान हैं |
घटना कुछ ऐसी हैं, एक बार गाँव के पार मेड़ में दरार बन जाती हैं इससे पानी रिस- रिस खेतो में आने लगता हैं जिसे रोकना बहुत जरुरी हो जाता हैं क्यूंकि ऐसा ना करने पर खेतों में पानी घुसने का खतरा था | जब यह बात आश्रम तक पहुंची तब गुरु अयुद्धौम्य को गाँव की फसलों की चिंता होने लगती हैं | तब वे अपने शिष्य आरुणी को अपने पास बुलाते है समस्या के बारे में विस्तार से बताते हैं और आदेश देते हैं – पुत्र आरुणी इसी समय जाकर मेड़ से बहते पानी का कोई उपचार करो वरना पानी का बहाव बढ़ते ही मेड़ टूट भी सकता हैं और अगर ऐसा होता हैं वो सारी फसले नष्ट हो जायेंगी | गुरु की आज्ञा पाते ही आरुणी बिना कुछ सोचे अपने कार्य को पूरा करने लक्ष्य की तरफ चल पड़ता हैं | गाँव में पहुँचने पर आरुणी पूरी स्थिती समझता हैं और कई प्रकार से मेड़ से बहते पानी को रोकने का प्रयास करता हैं लेकिन पानी का बहाव अधिक होने पर दरार में लगी कोई भी सामग्री टिक नहीं पाती और पानी तेजी से खेतों के आने लगता हैं | तब आरुणी विचार करता हैं और उस मेड़ की दरार पर स्वयं लेट जाता हैं उसके ऐसा करते ही पानी खेतों में जाने से रुक जाता हैं | पानी बहुत ठंडा होने के कारणआरुणी को कम्पन्न महसूस होने लगता हैं लेकिन उसके लिए गुरु का आदेश सर्वोपरि हैं वो कितनी भी तकलीफ सह लेगा पर गुरु के आदेश की अवहेलना नहीं करेगा | आरुणी इसी तरह से सुबह से शाम तक मेड़ पर लेटा रहता हैं और पानी से खेतो की फसलों को बचाता हैं और पूरी श्रद्धा से अपने गुरु के आदेश का पालन करता हैं |
उधर आश्रम में गुरु अयुद्धौम्य बहुत चिंतित हैं | संध्या होने को हैं और आरुणी की कोई खबर नहीं,अब तक तो आरुणी को घर आ जाना था | इन्ही सब विचारों से घिरे अयुद्धौम्य सोच में बैठे हैं | तब ही दुसरे शिष्य गुरु अयुद्धौम्य के पास जाकर चिंता का कारण पूछते हैं | तब गुरु जी कहते हैं – पुत्रो मैंने सुबह आरुणी को मेड़ की दरार भरकर खेतों को पानी से बचाने के लिए भेजा था | उस बात को बहुत समय हो गया, अब तक तो आरुणी को आश्रम आ जाना चाहिये था | वो संध्या की प्रार्थना कभी नहीं छोड़ता,आज पहली बार वो उसमे उपस्थित नहीं हुआ | कहीं कोई चिंता का विषय तो नहीं हैं ? आरुणी किसी बड़ी परेशानी में तो नहीं | सभी चिंतित होकर मेड़ तक जाकर देखने का निर्णय लेते हैं | गुरु अयुद्धौम्य एवम कुछ शिष्य आरुणी को देखने आश्रम से निकल पड़ते हैं |
मेड़ के पास पहुंचकर गुरु अयुद्धौम्य जोर-जोर से आरुणी को पुकारते हैं | थोड़ी देर बाद आरुणी को गुरु जी की आवाज सुनाई देती हैं और वो जोर से उत्तर देता हैं – गुरु जी मैं यहाँ हूँ, मेड़ के उपर लेता हूँ |
सभी आरुणी की तरफ भागते हुये आते हैं और गुरु अयुद्धौम्य जल्दी से आरुणी को खड़ा करते हैं और सभी शिष्य मिलकर दरार को भरते हैं | गुरु जी आरुणी से पूछते हैं – पुत्र तुम इतनी भीषण ठण्ड में इस तरह पानी पर क्यूँ लेटे थे | तुम्हारा पूरा शरीर ठण्ड से नीला पड़ गया हैं | अगर अभी हम नहीं आते तो तुम मृत्यु के समीप ही थे | आरुणी सिर झुकाकर कहता हैं – क्षमा कीजिये गुरुवर, मैंने आप सभी को बहुत कष्ट दिया, किन्तु आपने मुझे पानी बंद करने भेजा था जिसे मैं अकेला कर नहीं पाया, तब एक ही उपाय था जो मैंने किया | गुरु ने कहा – तुम आश्रम आकर इसकी सुचना दे सकते थे | अपने प्राणों को इस तरह से संकट में क्यूँ डाला ? तब आरुणि कहता हैं – हे गुरुवर! आपका आदेश मेरे लिये सर्वोपरि हैं,आपकी चिंता मेरे लिए सबसे बड़ी हैं | अगर मैं आश्रम आता तो फसल का कई हिस्सा बरबाद हो गया होता और यह जानकर आपको बहुत दुःख होता और मेरे कारण आपको मिला दुःख मेरे लिये मृत्यु के समान ही हैं | इसलिये मैंने मेड पर लेटकर पानी को रोकने का निर्णय लिया | आरुणि की ऐसी निष्ठा देख गुरु अयुद्धौम्य को गर्व महसूस होता हैं और वो आरुणि को आशीर्वाद देते हैं – पुत्र तुम्हारा नाम सदैव गुरु भक्ति के लिये जाना जायेगा | युगों- युगों तक तुम्हे सुना एवम पढ़ा जायेगा और तुम्हारे द्वारा किये गये इस कार्य का बखान कर आने वाली पीढ़ी को गुरु भक्ति का पाठ सिखाया जायेगा | और इस तरह गुरु अयुद्धौम्य आरुणि को एक नया नाम उद्दालक देते हैं और उसे आशीर्वाद देते हैं कि तुम्हे बिना किसी अध्ययन के सारे वेदों का ज्ञान प्राप्त हो | इस तरह उसी दिन आरुणि की शिक्षा ख़त्म होती हैं और गुरु उन्हें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं |
आरुणि का नाम उन्ही महान शिष्यों के साथ लिया जाता हैं जो गुरु आदेश को सर्वोपरि रखते हैं जिनमे एक नाम एकलव्य का भी हैं | यह दोनों ही नाम गर्व के साथ लिए जाते हैं |
आज गुरु शिष्य की वो परंपरा विलुप्त हो चुकी हैं ऐसे में छात्रों को इसका ज्ञान केवल इन एतिहासिक कहानियों के जरिये मिलता है जो उनमे संस्कारों को पोषित करता हैं | अपनी आने वाली पीढ़ी को तकनीकी ज्ञान के साथ- साथ संस्कारिक भी बनाये जिसमे ऐसी कई रोचक कहानियाँ ही आपकी मदद करेंगी जिससे आने वाली पीढ़ी में सम्मान के भाव उत्पन्न होंगे और उनमें अपने से बड़े एवम अपने शिक्षको के प्रति आदर का भाव पनपेगा | अपने बच्चों को पर्याप्त समय दे उन्हें कहानियाँ सुनाये क्यूंकि यही एक ऐसी कला हैं जिसके जरिये आप अपने बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान दे सकते हैं और अपना मूल्यवान समय भी | साथ ही उनके ज्ञान को भी बढ़ा सकते हैं |