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आत्मा की स्थिति: चिन्ता से मुक्ति की ओर

क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हे मार सकता है ? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है ।जो कुछ हुआ वह अच्छा हुआ, जो कुछ हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है । जो कुछ होगा वह भी अच्छा ही होगा । तुम भूत का पश्चाताप न करो । भविष्य की चिन्ता न करते हुए कर्म करो । वर्तमान चल रहा है ।
तुम्हारा क्या गया जो रोते हो ? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया ? न तुम कुछ लेकर आए थे, जो कुछ लिया यही से लिया । जो कुछ दिया यही दिया । जो
लिया इसी (भगवान) से लिया । जो दिया, इसी को दिया । खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाओगे । जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा । तुम इसे अपना समझ कर मगन हो रहे हो । बस यही प्रसंन्नता दुखो का कारण है ।
परिवर्तन संसार का नियम है । जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो जीवन है । एक क्षण में तुम करोड़ो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण तुम निर्धन हो जाते हो । तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से हटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो ।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो । यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा । परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो ? तुम अपने आप को भगवान को अर्पित करो । यही सबसे उत्तम सहारा है । जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिन्ता व शोक से सर्वदा मुक्त्त है ।
जो कुछ भी तुम करते हो, उसे भगवान को अर्पित करते चलो । इसी से तुम्हे सदा का आनन्द जीवन-मुक्त्त अनुभव होगा ।

आत्मा की मुक्ति के लिए क्या करना चाहिए?
आत्मा को मोक्ष भगवान की कृपा से प्राप्त होता है। भगवान की कृपा उन्ही आत्माओं पर होती है जिन्होंने शरीर में रहते हुए अच्छे कर्म किए हों। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को अष्टांग योग भी अपनाना चाहिए। अष्टांग योग का वर्णन महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ योगसूत्र में किया है।

गीता में आत्मा के बारे में क्या लिखा है?
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार आत्मा परमात्मा का अंश है। इस श्लोक में देखिए भगवान् क्या कह रहे हैं। ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । इस जीवलोक में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियोंको आकृष्ट करता है ।

आत्मा की शांति के लिए कौन सा पाठ करना चाहिए?
ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय। ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

गीता के अनुसार मैं कौन हूं?
भगवद-गीता के अनुसार, हम ये शरीर नहीं हैं, बल्कि आत्मा हैं । हम श्री कृष्ण – भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व – के शाश्वत खंडित अंश हैं।

भगवान कृष्ण के अनुसार आत्मा क्या है?
इसे शाश्वत, अविनाशी और अपरिवर्तनीय बताया गया है। भगवान कृष्ण, दिव्य सारथी और शिक्षक, स्वयं की शाश्वत प्रकृति पर जोर देते हुए, अर्जुन को ज्ञान प्रदान करते हैं। वह स्पष्ट करते हैं कि आत्मा जन्म और मृत्यु से परे है, किसी भी भौतिक माध्यम से विनाश के अधीन नहीं है।

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