क्ली एथेंस मातृ-पितृहीन अमेरिकी युवक था। उसने एक धर्मग्रंथ से प्रेरणा लेकर संकल्प किया कि वह परिश्रम करके विद्याध्ययन करेगा, बिना कर्म किए मिले धन-संपत्ति का उपयोग कदापि नहीं करेगा और दुर्व्यसनों से दूर रहकर सदाचारी जीवन बिताएगा ।
एथेंस ने प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया । कुछ संपन्न परिवारों के छात्र उसकी अनूठी प्रतिभा देखकर चिढ़ गए। उन्होंने षड्यंत्र रचकर न्यायाधीश से शिकायत की कि यह अनाथ लड़का अपराध करके धन अर्जित करता है,
अन्यथा रोटी और पढ़ाई का खर्च उसे कहाँ से मिलता है ? न्यायाधीश ने उससे पूछा, ‘अनाथ होने के बावजूद तुम विश्वविद्यालय की फीस, पुस्तकों व रोटी कपड़े की व्यवस्था कैसे करते हो?’
एथेंस ने विनम्रता से कहा ‘सर, दुर्व्यसनों से मुक्त होने के कारण मैं बहुत कम खर्च में रोटी-पानी का जुगाड़ करता हूँ। पढ़ने की व्यवस्था के लिए मैं एक बाग में कुछ घंटे माली का कार्य करता हूँ।
उससे मिलने वाले धन से पढ़ाई का खर्च चलाता हूँ।’ न्यायाधीश ने जाँच कराई, तो पता चला कि यह होनहार छात्र सुबह और रात को घोर परिश्रम कर धन अर्जित करता है।
न्यायाधीश ने एथेंस की लगन देखकर दया करके कुछ मुद्राएँ देने का प्रयास किया। उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘यदि मैं ये मुद्राएँ स्वीकार कर लूँगा, तो बिना परिश्रम कुछ न लेने के संकल्प से डिगने के पाप का भागी बनूँगा।’ आगे चलकर एथेंस की गणना अमेरिका के अग्रणी बुद्धिजीवियों में हुई।