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अस कछु समुझि परत रघुराया

raam krshn kahiye uthi bhor
raam krshn kahiye uthi bhor

अस कछु समुझि परत रघुराया !
बिनु तव कृपा दयालु ! दास-हित ! मोह न छूटै माया ॥ १ ॥

जैसे कोइ इक दीन दुखित अति असन-हीन दुख पावै ।
चित्र कलपतरु कामधेनु गृह लिखे न बिपति नसावै ॥ ३ ॥

जब लगि नहिं निज हृदि प्रकास, अरु बिषय-आस मनमाहीं ।
तुलसिदास तब लगि जग-जोनि भ्रमत सपनेहुँ सुख नाहीं ॥ ५ ॥

 

as kachhu samujhi parat raghuraaya !
binu tav krpa dayaalu ! daas-hit ! moh na chhootai maaya . 1 .

jaise koi ik deen dukhit ati asan-heen dukh paavai .
chitr kalapataru kaamadhenu grh likhe na bipati nasaavai . 3 .

jab lagi nahin nij hrdi prakaas, aru bishay-aas manamaaheen .
tulasidaas tab lagi jag-joni bhramat sapanehun sukh naaheen . 5

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