सेवाराम और मोतीलाल दो घनिष्ठ मित्र थे ।
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दोनों ही गली-गली जाकर पीठ पर पोटली लादकर कपड़े बेचने का काम करते थे ।
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सर्दियों के दिन थे वह गांव-गांव जाकर कपड़े बेच रहे थे तभी एक झोपड़ी के बाहर एक बुढ़िया जो कि ठंड से कांप रही थी तो..
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सेवाराम ने अपनी पोटली से एक कंबल निकालकर उस माई को दिया और कहां माई तुम ठंड से कांप रही हो यह कंबल ओढ़ लो…
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बूढ़ी माई कंबल लेकर बहुत खुश हुई और जल्दी जल्दी से उसने कंबल से अपने आप को ढक लिया और सेवाराम को खूब सारा आशीर्वाद दिया।
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तभी उसने सेवाराम को कहा मेरे पास पैसे तो नहीं है लेकिन रुको मैं तुम्हें कुछ देती हूं।
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वह अपनी झोपड़ी के अंदर गई तभी उसके हाथ में एक बहुत ही सुंदर छोटी सी ठाकुर जी की प्रतिमा थी।
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वह सेवाराम को देते हुए बोली कि मेरे पास देने के लिए पैसे तो नहीं है लेकिन यह ठाकुर जी है।
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इसको तुम अपनी दुकान पर लगा कर खूब सेवा करना देखना तुम्हारी कितनी तरक्की होती है। यह मेरा आशीर्वाद है।
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मोतीराम बुढ़िया के पास आकर बोला, अरे ओ माता जी क्यों बहाने बना रही हो..
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अगर पैसे नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन हमें झूठी तसल्ली मत दो हमारे पास तो कोई दुकान नहीं है।
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हम इसको कहां लगाएंगे। इनको तुम अपने पास ही रखो।
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लेकिन सेवाराम जो कि बहुत ही नेक दिल था और ठाकुर जी को मानने वाला था वह बोला..
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नहीं-नहीं माताजी अगर आप इतने प्यार से कह रही हैं तो यह आप मुझे दे दो। पैसों की आप चिंता मत करो..
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सेवाराम ने जल्दी से अपने गले में पढ़े हुए परने में ठाकुर जी को लपेट लिया और उनको लेकर चल पड़ा।
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बुढ़िया दूर तक उनको आशीर्वाद दे रही थी.. हरी तुम्हारा ध्यान रखेंगे ठाकुर जी तुम्हारा ध्यान रखेंगे।
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वह तब तक आशीर्वाद देती रही जब तक कि वह दोनों उनकी आंखों से ओझल ना हो गए।
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ठाकुर जी का ऐसा ही चमत्कार हुआ अब धीरे-धीरे दोनों की कमाई ज्यादा होने लगी..
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अब उन्होंने एक साइकिल खरीद ली.. अब साइकिल पर ठाकुरजी को आगे टोकरी में रखकर और पीछे पोटली रखकर गांव गांव कपड़े बेचने लगे।
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अब फिर उनको और ज्यादा कमाई होने लगी तो उन्होंने एक दुकान किराए पर ले ले और वहां पर ठाकुर जी को बहुत ही सुंदर आसन पर विराजमान करके दुकान का मुहूर्त किया।
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धीरे-धीरे दुकान इतनी चल पड़ी कि अब सेवाराम और मोती लाल के पास शहर में बहुत ही बड़ी बड़ी कपड़े की दुकाने और कपड़े की मिलें हो गई।
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एक दिन मोतीलाल सेवाराम को कहता कि देखो आज हमारे पास सब कुछ है यह हम दोनों की मेहनत का नतीजा है..
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लेकिन सेवाराम बोला नहीं नहीं हम दोनों की मेहनत के साथ-साथ यह हमारे ठाकुर जी हमारे हरि की कृपा है।
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मोतीलाल बात को अनसुनी करके वापस अपने काम में लग गया।
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एक दिन सेवाराम की सेहत थोड़ी ढीली थी इसलिए वह दुकान पर थोड़ी देरी से आया..
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मोतीलाल बोला.. अरे दोस्त आज तुम देरी से आए हो तुम्हारे बिना तो मेरा एक पल का गुजारा नहीं तुम मेरा साथ कभी ना छोड़ना।
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सेवाराम हंसकर बोला अरे मोतीलाल चिंता क्यों करते हो मैं नहीं आऊंगा तो हमारे ठाकुर जी तो है ना।
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यह कहकर सेवा राम अपने काम में लग गया। पहले दोनों का घर दुकान के पास ही होता था लेकिन अब दोनों ने अपना घर दुकान से काफी दूर ले लिया।
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अब दोनों ही महल नुमा घर में रहने लगे। दोनों ने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया।
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सेवाराम के दो लड़के थे दोनों की शादी कर दी थी और मोती लाल के एक लड़का और एक लड़की थी।
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मोतीलाल ने अभी एक लड़के की शादी की थी अभी उसने अपनी लड़की की शादी करनी थी।
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सेहत ढीली होने के कारण सेवाराम अब दुकान पर थोड़े विलंब से आने लगा तो एक दिन वह मोतीलाल से बोला..
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अब मेरी सेहत ठीक नहीं रहती क्या मैं थोड़ी विलम्ब से आ सकता हूं..
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मोतीलाल ने कहा हां भैया तुम विलम्ब से आ जाओ लेकिन आया जरूर करो मेरा तुम्हारे बिना दिल नहीं लगता।
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फिर अचानक एक दिन सेवाराम 12:00 बजे के करीब दुकान पर आया..
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लेकिन आज उसके चेहरे पर अजीब सी चमक थी चाल में एक अजीब सी मस्ती थी चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी ।
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वह आकर गद्दी पर बैठ गया… मोतीलाल ने कहा भैया आज तो तुम्हारी सेहत ठीक लग रही है..
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सेवाराम ने कहा भैया ठीक तो नहीं हूं लेकिन आज से मैं बस केवल 12:00 बजे आया करूंगा और 5:00 बजे चला जाया करूंगा। मैं तो केवल इतना ही दुकान पर बैठ सकता हूं।
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मोतीलाल ने कहा कोई बात नहीं जैसी तुम्हारी इच्छा..
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अब तो सेवाराम रोज 12:00 बजे आता और 5:00 बजे चला जाता लेकिन उसकी शक्ल देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी बीमार भी है।
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लेकिन मोतीलाल को अपने दोस्त पर पूरा विश्वास था कि वह झूठ नहीं बोल सकता और मेहनत करने से वह कभी पीछे नहीं हट सकता।
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एक दिन मोतीलाल की बेटी की शादी तय हुई तो वह शादी का निमंत्रण देने के लिए सेवाराम के घर गया।
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घर जाकर उसको उसके बेटा बहू सेवाराम की पत्नी सब नजर आ रहे थे.. लेकिन सेवाराम नजर नहीं आ रहा था..
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उसने सेवाराम की पत्नी से कहा भाभी जी सेवाराम कहीं नजर नहीं आ रहा..
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उसकी पत्नी एकदम से हैरान होती हुई बोली यह आप क्या कह रहे हैं ?
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तभी वहां उसके बेटे भी आ गए और कहने लगी काका जी आप कैसी बातें कर रहे हो.. हमारे साथ कैसा मजाक कर रहे हो..
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मोतीलाल बोला कि मैंने ऐसा क्या पूछ लिया मैं तो अपने प्रिय दोस्त के बारे में पूछ रहा हूं..
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क्या उसकी तबीयत आज भी ठीक नही है..? क्या वह अंदर आराम कर रहा है..?
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मै खुद अंदर जाकर उसको मिल आता हूं…
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मोतीलाल उसके कमरे में चला गया लेकिन सेवाराम उसको वहां भी नजर नहीं आया..
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तभी अचानक उसकी नजर उसके कमरे में सेवाराम के तस्वीर पर पड़ी..
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वह एकदम से हैरान होकर सेवा राम की पत्नी की तरफ देखता हुआ बोला…
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अरे भाभी जी यह क्या आपने सेवाराम की तस्वीर पर हार क्यों चढ़ाया हुआ है..
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सेवा राम की पत्नी आंखों में आंसू भर कर बोली..!! मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी भैया कि आप ऐसा मजाक करेंगे..!!
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मोतीलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था..
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तभी सेवाराम का बेटा बोला क्या आपको नहीं पता कि पिताजी को गुजरे तो 6 महीने हो चुके हैं.!!
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मोतीलाल को तो ऐसा लगा कि जैसे उसके सिर पर बिजली गिर पड़ी हो।
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वह एकदम से थोड़ा लड़खडाता हुआ पीछे की तरफ हटा और बोला ऐसा कैसे हो सकता है.. वह तो हर रोज दुकान पर आते हैं।
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बीमार होने के कारण थोड़ा विलंब से आता है..
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वह 12:00 बजे आता है और 5:00 बजे चला जाता है..
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उसकी पत्नी बोली ऐसा कैसे हो सकता है कि आपको पता ना हो..
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आप ही तो हर महीने उनके हिस्से का मुनाफे के पैसे हमारे घर देने आते हो..
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6 महीनों से तो आप हमें दुगना मुनाफा दे कर जा रहे हो..
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मोतीलाल का तो अब सर चकरा गया उसने कहा मैं तो कभी आया ही नहीं..!!
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6 महीने हो गए यह क्या मामला है..
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तभी उसको सेवाराम की कही बात आई मैं नहीं रहूंगा तो मेरे हरी है ना मेरे ठाकुर जी है ना वह आएंगे…
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मोतीलाल को जब यह बातें याद आई तो वह जोर जोर से रोने लगा और कहने लगा हे ठाकुर जी… हे हरि आप अपने भक्तों के शब्दों का कितना मान रखते हो..
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जोकि अपने विश्राम के समय.. मंदिर के पट 12:00 बजे बंद होते हैं और 5:00 बजे खुलते हैं..
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और आप अपने भक्तों के शब्दों का मान रखने के लिए कि मेरे हरी आएंगे मेरे ठाकुर जी आएंगे तो आप अपने आराम के समय मेरी दुकान पर आकर अपने भक्तों का काम करते थे..
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इतना कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा और कहने लगा ठाकुर जी आप की लीला अपरंपार है..
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मैं ही सारी जिंदगी नोट गिनने में लगा रहा असली भक्त तो सेवाराम था जो आपका प्रिय था..
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आपने उसको अपने पास बुला लिया और उसके शब्दों का मान रखने के लिए आप उसका काम खुद स्वयं कर रहे थे…
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और उसके हिस्से का मुनाफा भी उसके घर मेरे रूप में पहुँचा रहे थे..
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इतना कहकर वह भागा भागा दुकान की तरफ गया और वहां जाकर जहां पर ठाकुर जी जिस गद्दी पर आकर बैठते थे..
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जहां पर अपने चरण रखते थे वहां पर जाकर गद्दी को अपने आंखों से मुंह से चुमता हुआ चरणों में लौटता हुआ जार जार रोने लगा..
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और ठाकुर जी की जय जयकार करने लगा।
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ठाकुर जी तो हमारे ऐसे हैं.. सेवाराम को उन पर विश्वास था कि मैं ना रहूंगा तो मेरे ठाकुर जी मेरा सारा काम संभालेंगे।
💥 कथासार 💥
विश्वास से तो बेड़ा पार है इसलिए हमें हर काम उस पर विश्वास रख कर अपनी डोरी उस पर छोड़ देनी चाहिए।
जिनको उन पर पूर्ण विश्वास है वह उनकी डोरी कभी भी नहीं अपने हाथ से छूटने देंते।
English Translation
Sevaram and Motilal were two close friends.
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Both of them used to go street-by-street and put clothes on the back and sell clothes.
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It was winter day, he was going from village to village selling clothes only when an old woman outside a hut was shivering from the cold ..
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Sevaram took out a blanket from his bundle and gave it to that Mai and where Mai you are shivering from the cold, cover this blanket…
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Old Mai was very happy with the blanket and quickly covered herself with the blanket and gave Sewaram a lot of blessings.
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Then he told Sevaram that I do not have money, but wait, I give you something.
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She went inside her hut when she had a very beautiful little Thakur ji’s statue in her hand.
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She said while giving it to Sevaram that I do not have money to give but it is Thakur ji.
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Seeing how much service you do by applying it at your shop, how much your progress. This is my blessing
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Motiram came to the old lady and said, “Oh mother, why are you making excuses ..
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If there is no money then there is no problem but do not give us false comfort, we do not have any shop.
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Where do we put it? Keep them with you.
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But Sevaram, who was very good-hearted and believed in Thakur ji, said ..
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No – Mother, if you are saying this with so much love, then give it to me. You do not worry about money ..
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Sevaram quickly wrapped Thakur ji in his neck, and read about him.
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The old lady was blessing them far away .. Hari will take care of you Thakur ji will take care of you.
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She kept blessing until both of them disappeared from their eyes.
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A similar miracle happened to Thakur ji, now gradually both of them started earning more ..
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Now he bought a bicycle .. Now the village started selling clothes by putting Thakurji in the basket on the bicycle and keeping the bag behind.
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Now again he started earning more, so he rented a shop and sitting there on a very beautiful posture of Thakur Ji, he started the shop.
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Gradually, the shop was so moved that now Sevaram and Moti Lal got very big clothes shops and clothes mills in the city.
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One day Motilal used to say to Sewaram that, look, we have everything today. This is the result of the hard work of both of us ..
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But Sevaram did not say that along with the hard work of both of us, it is the grace of our Thakur Ji, our Hari.
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Motilal ignored the matter and started back in his work.
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One day Sevaram’s health was a little loose, so he came to the shop with a slight delay ..
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Motilal said .. Hey friend, you have come late today, without you, I have not lived a single moment, you will never leave my company.
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Sevaram laughed and said, “Why do Motilal worry, I will not come, so our Thakur ji is there.”
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Saying this, Seva Ram got involved in his work. Earlier both had their house near the shop but now both took their house far away from the shop.
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Now both of them started living in the palace. Both taught and taught their children a lot.
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Sevaram had two boys, both of whom were married, and Motilal had a boy and a girl.
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Motilal had just married a boy, yet he had to marry his girl.
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Due to his health, Sewaram started coming to the shop with a slight delay, so one day he said to Motilal.
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Now my health is not good, can I come a little late ..
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Motilal said yes brother, you come late, but do come. I don’t feel heartless without you.
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Then suddenly one day Sevaram came to the shop around 12:00 pm ..
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But today there was a strange glow on his face, there was a strange fun in the trick, there was a strange smile on his face.
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He came and sat on the throne… Motilal said brother, today your health looks good ..
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Sevaram said, “Brother, I am not well, but from today I will only come at 12:00 and will go at 5:00.” I can only sit at this store.
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Motilal said no matter what you wish ..
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Now Sevaram would come at 12:00 pm and leave at 5:00 pm, but it did not seem that he was ever ill after seeing his face.
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But Motilal had full faith in his friend that he could not lie and he could never back down from working hard.
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One day Motilal’s daughter’s wedding was decided, then he went to Sevaram’s house to invite the wedding.
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After going home, he could see the wife of his son-in-law Sevaram .. But Sevaram was not seen.
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He told Sevaram’s wife, “Bhabhi Ji Sevaram is nowhere to be seen.”
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What are you saying, his wife was surprised by this?
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Then his sons also came there and started saying, Kaka ji, what kind of things are you talking .. How are you joking with us ..
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Motilal said that what have I asked like this, I am asking about my dear friend ..
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Is his health still not good today ..? Is he comfortable inside ..?
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I go inside myself and find him…
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Motilal went to his room but Sevaram did not even see him there ..
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Suddenly, he saw the picture of Sevaram in his room ..
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He was surprised and said looking at Seva Ram’s wife …
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Hey sister-in-law, why have you put a necklace on Sevaram’s picture ..
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Seva Ram’s wife said with tears in her eyes .. !! I did not expect you brother, you will joke like that .. !!
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Motilal could not understand anything ..
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Then Sevaram’s son said, don’t you know that it has been 6 months since father passed. !!
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Motilal felt as if lightning had fallen on his head.
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He stuttered a little backwards and said how could this happen .. He comes to the shop everyday.
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Being sick comes a little late ..
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He arrives at 12:00 and leaves at 5:00 ..
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His wife said how can it be that you do not know ..
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You come to our house to give their share of profit every month ..
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For 6 months, you are going to give us double the profit ..
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Motilal was shocked by his head, he said, “I have never come ..”
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It has been 6 months, what is the matter ..
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Then he came to say about Sevaram, I will not stay, so my hari hai na my thakur ji is there or he will come…
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When Motilal remembered these things, he started crying loudly and said, “Thakur ji … O Hari, how much do you respect the words of your devotees ..”
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Which during their rest .. The temple doors are closed at 12:00 pm and open at 5:00 am ..
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And to keep the words of your devotees that my Thakur ji will come when my green will come, you used to come to my shop at your leisure and work as your devotees ..
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After saying this, he started crying bitterly and started saying that Thakur ji is your leela.
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I was spending all my life counting the notes, the real devotee was Sevaram, who was your favorite ..
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You called him to yourself and you were doing his own work to keep his words respected …
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And the profits of his share were also being delivered to his house as mine ..
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Having said this, he ran towards the shop and went to the place where Thakur ji used to sit on the cushion ..
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Going to the place where he used to keep his feet, the throne was weeping as he returned to his feet kissing the mouth with his eyes ..
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And started cheering Thakur ji.
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Thakur ji is like this to us .. Sevaram had faith in him that if I do not live then my Thakur ji will take care of all my work.
Conclusion
There is a raft of faith, so we should leave our lanyard to him by keeping faith in him.
Those who have full faith in him never let his lanyard be released from his hand.