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बेटे का फर्ज !!

प्रदीप रविवार को अपना पूरा दिन अपने परिवार के साथ बिताना पसंद करते हैं। उनका पूरा दिन अपने माँ बाप ,बच्चों व पत्नी के साथ हंसी मजाक करने तथा पसंद की चीजें खाने पीने में ही गुजर जाता है।रविवार होने की वजह से प्रदीप आराम से अपने घर में बैठकर इन फुर्सत के पलों में अपनी पसंद की फिल्म देख रहे थे।

तभी फोन की घंटी एकाएक बज उठी। उधर से उनकी बहन कनक के रोने की आवाज सुनकर उन्होंने कनक से पूछा “क्या हुआ कनक ? तुम क्यों रो रही हो , घर में सब कैसे हैं ? जीजाजी कहां है” ।अचानक ही प्रदीप के दिमाग में ढेर सारे सवालों ने डेरा डाल दिया।मगर वह लगातार रोये जा रही थी।

प्रदीप ने फिर पूछा “बताओ तो क्या हुआ “? वह बोली “भैया आप घर आइए।तभी बताऊंगी फोन पर यह बात नहीं हो सकती हैं”। प्रदीप ज्योति के साथ कनक के घर पहुंचे। तो देखा जीजाजी अपना और अपने माँ-बाप का सामान बांघकर कहीं जाने की तैयारी कर रहे थे।प्रदीप ने पूछा “क्या हुआ जीजाजी  आप कहां जाने की तैयारी कर रहे हैं” ।

जीजाजी एकदम चुपचाप अपना काम किये जा रहे थे।फिर प्रदीप ने कनक से पूछा तब कनक ने रोते  हुए बताया कि “तेरे जीजाजी मुझे और बच्चों को अकेला छोड़कर गांव जाने की तैयारी कर रहे हैं”।मैंने पूछा “क्यों” ? बोली “पता नहीं, अचानक कल दिन से इनको क्या हो गया है। कल ऑफिस से आते ही गांव जाने की जिद करने लगे”।

प्रदीप की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने हिम्मत बांधी और वह जीजाजी के कमरे की तरफ चल पड़ा।कमरा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था।और सारा सामान बिस्तर के ऊपर बिखरा हुआ था। जीजाजी अपना और अपने मां-बाप का सामान उसमें से अलग कर रहे थे।प्रदीप ने धीरे से पूछा जीजाजी “कुछ तो बताइए, कुछ तो बोलिए, आखिर हुआ क्या है”।

जीजाजी ने प्रदीप की तरफ देखा और बोले “यह बात जाकर अपनी बहन से पूछो। मुझसे क्या पूछते हो ,मैं क्या बताऊं। जिसकी वजह से यह सब हो रहा है। उससे जाकर पूछो तो वही बेहतर बताएगी “।प्रदीप बड़ी उलझन में था।उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।

वह बड़े धैर्य से बोला “चलिए जीजाजी बैठ कर बात करते हैं। जीजाजी बड़े बेमन से उसके साथ बैठ गए और बातें करने लगे ।धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चल पड़ा।जीजाजी के मन की गांठ खुलने लगी।

उन्होंने बताया कि 2 साल पहले तक घर में सब सही चल रहा था।लेकिन पिताजी को टाइफाइड होने के कारण मै उनको इलाज के लिए गांव से अपने पास ले आया।यहां बहुत इलाज करने के बाद पापा स्वस्थ हो गए।स्वस्थ होने के बाद वह वापस गांव जाना चाहते थे।लेकिन मैंने ही मना कर दिया।क्योंकि वहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।आखिर मैं उनकी अकेली औलाद हूं।

शुरु-शुरु में तो सब ठीक चलता रहा।लेकिन धीरे धीरे कनक का व्यवहार उनके साथ खराब होने लगा। वह ठीक से उनका ध्यान नहीं रखती।समय पर उनको खाना एवं दवाइयां नहीं देती।और कुछ दिनों से तो वह उन दोनों के साथ दुर्व्यवहार करती हैं।और उसका ज्यादातर समय किटी पार्टी मे ही गुजरता हैं।

जब भी मैं ऑफिस से घर आता हूं तो दोनों को बहुत उदास पाता हूं। दोनों मुझसे अपना दुख छुपाने का बहुत प्रयास करते हैं।और गांव वापस जाने की बात करते हैं।लेकिन एक दिन मेरे बहुत कुरेदने के बाद उनका सारा मन का गुबार फूट पड़ा। और वह तब से ही गांव जाने की जिद करने लगे।

मैने कनक को बहुत समझाया।लेकिन वो कुछ भी समझने को तैयार ही नहीं हैं। अत: मुझे यह फैसला लेना पड़ा।आखिर मुझे भी तो एक बेटे का फर्ज़ निभाना हैं।वो प्रदीप की तरफ देखते हुए बोले “तुम्हें शायद पता भी नहीं होगा प्रदीप कि मेरे मां-बाप ने मेरे लिए क्या क्या किया।मैने ही तुम्हें कभी कुछ बताया ही नहीं।

मेरे मां-बाप के पास गांव में कोई पैतृक जमीन या खेती-बाड़ी नहीं थी।उनके पास बस रहने भर के लिए दो कमरे का ही मकान था।उन्होंने हमेशा दूसरे के खेतों में काम कर मेरा पालन-पोषण किया।उन्होंने  भले ही अपने लिए हमेशा कमी की हो।लेकिन मेरे लिए कभी भी ,किसी प्रकार की कमी नहीं होने दी।

एक बार मेरे टीचर ने मेरे पापा से यह बात कही कि आपका बेटा पढने में बहुत अच्छा हैं।इसे खूब पढ़ाना। एक दिन ये आपका नाम रोशन करेगा।बस पापा के मन में यह बात बैठ गयी।और उन्हने मुझे अपनी हैसियत से ज्यादा बड़े व अच्छे स्कूल में पढ़ाया।हमेशा अच्छा खिलाया ,अच्छा पहनाया।मेरे लिए वह सब कुछ करने का प्रयास किया जो एक मां-बाप अपने बच्चे के लिए कर सकते हैं।

और एक दिन अपना घर गिरवी रखकर मुझे उच्च शिक्षा लेने हेतु लखनऊ भेज दिया।जहां पर मैंने अपनी कालेज की शिक्षा पूर्ण की और सरकारी नौकरी हेतु परीक्षाओं की तैयारी भी की।जिसकी बदौलत आज मैं  इतने उच्च पद पर हूं।इतने ऐसो आराम की जिंदगी गुजार रहा हूं।

मुझे तो पता भी नहीं कि जब मैं लखनऊ में आराम से बैठ कर पढ़ाई कर रहा था।तो मेरे मां-बाप ने कहां से मेरे लिए पैसों का इंतजाम किया।और अपना जीवन कैसे यापन किया।

लेकिन वो हर महीने की 10 तारीख को मेरे अकाउंट में पैसे भेजना कभी नही भूले।आज उन्हीं की बदौलत पाई हुई इस नौकरी की कमाई में से अगर मैं कुछ अपने मां-बाप को देता हूं ।या उनके लिए कुछ भी करता हूँ तो उसमें भी तुम्हारी बहन को एतराज है।अब तुम ही बताओ प्रदीप कि इस उम्र में मैं उनको अकेला तो नहीं छोड़ सकता।आखिर मुझे भी तो एक बेटे का फर्ज निभाना है। 

इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि तुम्हारी बहन और बच्चे यहीं शहर में रहकर अपना जीवन खुशी-खुशी व आजादी के साथ यापन करेंगे। और मैं अपने मां बाप के साथ गांव में रहकर उनकी सेवा करूंगा। और ट्रांसफर भी उसी जिले में ले लूंगा।

इस तरह से दोनों ही समस्याएं हल हो जाएंगी ।तुम्हारी बहन भी आजादी से रह सकेगी और मैं भी अपने मां-बाप की देखभाल कर पाऊंगा।मगर तू फिक्र मत करना। मै कभी भी उनको रुपये पैसे की कमी नहीं होने दूगा “।वो धारा प्रवाह बोले जा रहे थे ।

प्रदीप और ज्योति की समझ में अब सारी बात आ चुकी थीं।प्रदीप कुछ कह पाते इससे पहले ज्योति उठकर कनक के पास गई बोली “कनक तुमने तो मेरी आंखें खोल दी। सच में सास-ससुर से छुटकारा पाने का यही तरीका सबसे सुंदर है। मैं भी आज घर जाकर सबसे पहले अपने सास-ससुर को ही घर से निकालने का प्रयास करुगी । ताकि मैं भी तुम्हारी तरह ही आराम व आजादी से भरी जिंदगी जी सकू।

तुम ही तो मुझे हमेशा उपदेश दिया करती थी।कि भाभी सदैव सास-ससुर की सेवा करनी चाहिए। यह पुण्य का काम है।और तुम खुद अपने सास-ससुर की यह सेवा कर रही थी।तुम यह सब मुझसे इसलिए कहती थी।ताकि मै तुम्हारे माँ बाप के साथ बुरा बर्ताव ना करू ।वाह कनक वाह.. तुम्हारे माँ बाप…. माँ बाप और दूसरे के माँ बाप………।

कनक आंखें जमीन में झुकाए खामोश खड़ी थी।अब तक उसकी समझ में आ चुका था कि गलती कहां और कैसे हुई है। वह धीरे से उठी और अपने सास-ससुर के पास जाकर माफी मांगने लगी। साथ में प्रदीप और जीजाजी भी पीछे-पीछे हो लिए।सास ससुर ने कहा कि उन्हें उससे कोई शिकायत नहीं हैं।लेकन वह अपने पैतृक गांव लौटना चाहते हैं।

लेकिन कनक और प्रदीप की बहुत मिन्नतों के बाद वह उनके साथ रुकने को तैयार हो गए।यह सुनकर कनक खुशी-खुशी अपने आंसू पोछते हुए अंदर चाय बनाने को चली गई।और प्रदीप ने देखा कि जीजाजी के चेहरे में अचानक से एक संतोष का भाव नजर आया।

Moral of the story

एक बच्चे के लिए उसके माँ-बाप सदा आदरणीय हैं। पूजनीय हैं। बंदनीय हैं। उनकी सेवा से बढकर दुनिया में कोई और सेवा नही ……..।इसीलिए माँ-बाप की सेवा करना बेटे का फर्ज है। 

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