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भव्य निराला प्रेम


द्वारिका में रखा सुदामा ने, पहला कदम,
उसी पल हो गयी, आँखे कान्हा की नम,

कैसे दौड़े कन्हैया कुछ कहा नहीं जाये ,
बिना मिले मेरे शाम से अब रहा नहीं जाये ,
कान्हो को देख सुदामा, भूल गए गम ,

अपने हाथो से कान्हा छप्पन भोग खिलाये,
सब रनिया सेवा में , मिलके चवर हिलाये,
सेवा मै जितनी करू आज, उतनी है काम,

भोला भोला सुदमा अपनी पोटली छुपाये ,
अन्तर्यामी मेरे शाम से, कुछ चुप नहीं पाए ,
मेरे रहते तुमने सही प्यारे, इतने सितम,

ऐसा भव्य निराला प्रेम, आँखे भर आये ,
इससे आगे कुछ ललित से, कहा नहीं जाये,
जग से न्यारा है, ऐसा है ये प्रेम मिलन,,,,,,,,,

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