एक दिन मेरे मित्र महेश का फोन आया अरे भाई साहब, पिछली बार आपके यहाँ फंक्शन में आपने केटरिंग किससे करवाई थी?बहुत बढ़िया खाना था , मुझे भी उसी से केटरिंग करवानी है हॉं हाँ ज़रूर…कितने गेस्ट होंगे ??? मैंने उत्साह पूछा यही कोई तीन सौ बाएं हाथ में सुनहरी राडो की घड़ी , रेशमी कुर्ता , सफेद चप्पल और काला चश्मा लगाए भवानी सिंह किसी मॉडर्न हलवाई की तरह प्रकट हुआ.
मैंने शहर के मशहूर सनराइज़ कैटरर्स के मालिक भवानी को अपने ऑफिस पर बुलाया, भवानी और महेश के बीच डिनर का सारा कार्यक्रम जिसमें मेहमानों की संख्या लेकर से संपूर्ण मेन्यु , सारी सर्विसेज़ और प्रति प्लेट कितना अमाउंट देना है फाइनल करवा दिया | दोनों ही खुश थे, जाते-जाते मैंने भवानी को कहा , भई ध्यान रखियो ,मेरी इज्जत का सवाल है…
अरे भाई साहब, आप बेफिकर रहो…
महेश ने बड़ी शान से अपने पूरे परिवार में “सनराइज कैटरर्स” के नाम का ऐलान किया
शादी का दिन आ गया. मैं और मेरी पत्नी समारोह में पहुंचे | खुला मैदान रोशनी से नहाया हुआ था | महेश भाई , उनकी पत्नी और उनके परिवार वाले बन ठन कर हाथ जोड़कर मुख्य द्वार पर ही स्वागत के लिए खड़े थे | महेश ने मुझे गले लगाकर स्वागत किया …और कान में कहा
भाई साहब ,जरा कैटरिंग वाले का ध्यान रखना…
मैंने अंदर जाकर देखा, खाने के टेबल खूबसूरती से सजाये गए थे | सब कुछ बड़े व्यवस्थित ढंग से चल रहा था…मेहमान बड़े उत्साह से खाने में लगे थे, लेकिन धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी | इतने में एक बुजुर्ग जो महेश के चाचा थे, खाने की ऊपर तक भरी प्लेट लिए मेरे पास आए , …
भाई साहब यह केटरिंग वाला आप ने करवाया है ???
फरमाइए मैंने कहा
बकवास खाना है , बहुत ही स्पाइसी …हमारे जैसे बुजुर्गों का भी थोड़ा ध्यान रखना चाहिए था…
उन्होंने मेरी आँखों के सामने पूरी भरी हुई प्लेट डस्टबिन के हवाले कर दी… मुझे अपमानित महसूस हुआ | इतने में महेश की बड़ी भाभी प्लेट थामे मेरे पास आईं…उनकी प्लेट में वेज पुलाव के पहाड़ से रायते की नदी बह रही थीं , दो रोटियां बेचारी मुंबई लोकल ट्रेन के मुसाफिर की तरह बड़ी मुश्किल से प्लेट में जगह बना कर आधी बाहर लटक रही थीं | शाही पनीर और साग मटर से बहती हुई ग्रेवी की नदी ,रायते से मिलकर त्रिवेणी संगम के दर्शन करवा रही थी
भइया खाना बहुत ब्लेंड है मसाले तो जैसे हैं ही नहीं… फीका है एकदम .
इतने में मैं महेश की भतीजियों के पास से गुजरा हाउ इज द फूड बेटा ??? मैंने चलते-चलते पूछा
फूड इस गुड अंकल… बट वेरी ऑयली , उन्होंने नाक चढ़ाते हुए जवाब दिया |
इतने में महेश का बड़ा बेटा मेरे पास आकर मेरे कान में बोला , अंकल वेलकम ड्रिंक और स्टार्टर बहुत स्लो है थोड़ा फास्ट करवाइए न |
मैं देखता हूं …मेरे मुँह से अपने आप निकल गया इतने में देखा महेश खुद आया और मेरी बाँह पकड़ कर मुझे किनारे पर ले गया…
अरे यार जरा “तेरे” कैटरिंग वाले पर ध्यान दे ना ,कंप्लेन आ रही है ,रोटी के लिए गेस्ट लाइन में खड़े हैं
मैं घबराया…मेहमान रोटियों के लिए लाइन में लगे थे रोटियां सर्व भी नहीं हो पा रही थीं…
आखिर मैं अपनी पत्नी को मेहमानों के बीच छोड़कर पीछे किचन में पहुंच गया जहाँ से खाना सर्व हो रहा था
माथे पर तनाव लिए भवानी जोर शोर से अपने सभी कर्मचारियों को निर्देश दे रहा था…
जल्दी करो…फटाफट करो…ये लाओ…वो लाओ…फटाफट लेे जाओ…
मैंने जाते ही भवानी से शिकायत की यार, तूने तो मेरी इज्जत का कचरा करवा दिया…
भाई साहब आप देख नहीं रहे हो मैं कैसे लगा पड़ा हूँ… भवानी ने तिलमिलाते हुए कहा
वह तो मैं देख रहा हूँ लेकिन बाहर मेहमानों तक रोटी नहीं पहुंच रही है
भाईसाहब दो तंदूर हैं इससे ज़्यादा क्या करूं ??? भवानी उल्टा मुझे ही डांटने लगा |
लेकिन, साहब आपने मैदान में मेहमान नहीं देखे??? भवानी ने मुझे कहा , जरा अंदाजा तो लगाइए कितने होंगे???
करीब चार पांच सौ होंगे…मैंने कहा और आपने कितने गेस्ट लिखवाए थे ???
तीन सौ … अचानक मुझे याद आया
भाई साहब साढ़े तीन सौ प्लेट तो उठ चुकी है …
रोटी के काउंटर पर भीड़ देखकर आखिर मैं खुद तंदूर वाले के सामने बेंत की छोटी टोकरी लेकर खड़ा हो गया , जल्दी निकाल बेटा रोटी जल्दी निकाल…
तंदूर से पाँच रोटी निकलते ही मैं काउंटर पर भागा, दसियों लोग शरणार्थियों की तरह रोटी पर टूट पड़े,
मैंने अपनी तरफ से जितना हो सके उतनी मदद करने की कोशिश की, मैं दौड़ दौड़ कर किसी मारवाड़ी समधी की तरह महेश को संतुष्ट करने के लिए कभी रोटी कभी पनीर कभी रायता भाग भागकर काउंटर पर सर्व कर रहा था…हाथ में छोटी टोकरी लिए आते जाते हुए लोग मुझे यूं शिकायत कर रहे थे जैसे मैं “सनराइज केटरर्स” का कर्मचारी हूँ…
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस की इज्जत बचाने में लगा हूँ.. महेश की??? भवानी की??? या खुद अपनी???
दुर्भाग्य से मेरी जैकेट का रंग वेटर्स की ड्रेस से मिलता जुलता लग रहा था
मुझे दौड़ते भागते देखकर एक गोल टेबल पर प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठी एक भारी भरकम महिला ने मुझे इशारे से बुलाया … भइया, एक एक प्लेट फालूदा कुल्फी ला दीजिए !!! काउंटर पर बहुत भीड़ है…
भैंजी , मेरा इतना फालूदा मत कीजिए मैं तो खुद गेस्ट हूं …
ओ. के. सॉरी …इतना कहकर बिना किसी ग्लानि के वह महिला खाने में लग गई आखिर जैसे तैसे करके फंक्शन पूरा हुआ…
रात के बारह बज चुके थे कम से कम इतना हुआ कि खाना कम नहीं पड़ा …मुझ पर चारों तरफ से आलोचनाओं की बरसात होने लगी..खराब सर्विस और खराब खाने का ठीकरा मेरे सर पर फूटने लगा…सबके बीच मेरी ब्राउन कलर की जैकेट की ऐसी तैसी हो चुकी थी | सब्जियों के धब्बे साफ नजर आ रहे थे…
श्रीमती जी ने मेरी जैकेट को देखते अपने मुंह पर हाथ रख लिया
हे भगवान !!! जैकेट का क्या हाल कर दिया तुमने??? इस के धब्बे तो ड्राई क्लीन करने पर भी नहीं जाएंगे…
अचानक महेश मेरे पास आया और मुझे कोने में ले गया अमा यार “तेरा” कैटरिंग वाला तो साढ़े चार सौ प्लेट बता रहा है , उसके कान में डाल देना तीन सौ प्लेट से एक पैसा ऊपर नहीं दूंगा…हाँ
मैं समझ गया कि यह प्लेटों का झगड़ा भी मुझे ही निपटाना पड़ेगा…
इतने में भवानी मेरे पास आया भाई साहब आज के बाद ऐसा कस्टमर मेरे पास मत भेजना, आखिर बड़ी मुश्किल से रात को दो बजे साढ़े तीन सौ प्लेट पर समझौता करवाया …महेश और कैटरर भवानी दोनों ही मुझसे नाराज थे…आखिर तक किसी ने हमसे यह नहीं पूछा कि आपने भी खाना खाया कि नहीं ???
देर रात घर जाते हुए श्रीमती जी ने टोका…तुम्हें कसम लगेगी … आज बाद ये जैकेट मत पहनना …
क्यों ??? मैंने पूछा
बिल्कुल वेटर लगते हो इसमें …
मैंने मन ही मन कसम खाई …
आज के बाद यह जैकेट नहीं पहनूंगा…
और आप को “बिना मांगे” सलाह दूँगा …
कि “कैटरिंग के बारे में कभी किसी को सलाह न दें…”
वरना आपको भी वही मिलेगा जो मुझे मिला…
“बिना मांगे…”
फालूदा…( इज्जत का)
–बबल हिर्देष साहनी