बिना मथले न निकली रतन हीरा
ध्रुव जी मथले प्रह्लाद जी मथले
नारद जी मथले बजाय विना,
बिना मथले न निकली,
काठ के मथनियाँ से दहिया मथाला,
ज्ञान के मथनियाँ चलेला धीरा,
बिना मथले न निकली,
कहत कबीर सुन ए भाई साधो,
ए जीवन के मिट्टी अनमोल हीरा,
बिना मथले न निकली,
मोहे हूँक लगी दर्शन की दर्शन कैसे पाउगी
मेरे रोम रोम में कान्हा दर्शन कैसे पाउंगी,
मोहे हूँक लगी दर्शन की दर्शन कैसे पाउगी
कान्हा बंसी मधुर बजावे मेरे मन का चैन चुरावे,
सुध बुध खो के बैठी कान्हा दर्शन कैसे पाउगी
मोहे हूँक लगी दर्शन की दर्शन कैसे पाउगी
सांवली सूरत मन में समाये
मोहनी मूरत मन को भाये,
कान्हा धुन में हुई मस्तानी दर्शन कैसे पाउगी
मोहे हूँक लगी दर्शन की दर्शन कैसे पाउगी
साबुन से मैं मल के नहाई मन का मैल मैं धो न पाई,
मैंने जपी न मन की माला दर्शन कैसे पाउगी
मोहे हूँक लगी दर्शन की दर्शन कैसे पाउगी||