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आंसू सिर्फ तकलीफ में ही आंखों से नहीं बहते

आज हमारी शादी की आठवीं सालगिरह थी मेरे पति आकाश ने इस अवसर पर परिवार के लोगों को हमारी खुशी में शामिल होने के लिए घर पर आमंत्रित किया था ।

शाम ढलते ही मेहमान घर पर आने लगें,हम दोनों बहुत खुश थें, पर इस खुशी के अवसर पर मेरा मन उदास सा था,क्योंकि शादी के आठ साल बाद भी मेरी कोई संतान नहीं थी,जाने कितनी मन्नतें मांगी मैंने भगवान से कि वो मेरी गोद भर दें, कई डॉक्टर को भी दिखाया पर सब कुछ ठीक होते हुए भी आज तक मेरी गोद खाली ही थी। मैं अपनी उदासी को मुस्कुराहट के पीछे छिपाए मेहमानों के स्वागत में लगी हुई थी।

खाने का समय हो चला था मैं खाना सर्व कर रही थी कि तभी अचानक ही मुझे चक्कर सा आया और मैं बेहोश हो गई; सब घबरा गए, आकाश ने तुरंत ही डॉक्टर को फोन करके घर पर बुलाया, डॉक्टर ने मेरी जांच की और फिर उन्होंने जो कहा उसे सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे “सालों से बंजर पड़ी जमीन पर मानो अचानक ही फसल लहलहा उठी हो,डॉक्टर ने कहा कि मैं “मांँ” बनने वाली हूं,जिस खबर को सुनने के लिए मैं रात दिन तड़पती थी आज उस खबर को सुनते ही मैं अनायास ही रोने लगी, आज मुझे पहली बार ये एहसास हुआ कि आंसू सिर्फ तकलीफ में ही आंखों से नहीं बहते बल्कि कई बार हद से ज्यादा खुशी भी आंखों से आंँसू बन बहने लगती है, क्योंकि सुख या दुख को व्यक्त करने के लिए अक्सर शब्द मौन हो जाते हैं, लेकिन आंखों नेे कहां मौन होना सीखा है!

मेरी शादी की ये सालगिरह मेरे जीवन की एक यादगार सालगिरह बन गई,सभी हमें बधाइयां देने लगें,आकाश जो हमेशा अपने पिता बनने की चाहत को मुझसे छिपाए रखते थें वो इस वक्त बहुत खुश थें ।

आखिर वो दिन भी आया जब मेरी खुशी मेरी गोद में थी; भगवान ने मुझे एक बहुत ही प्यारा सा बेटा दिया, मैं अपने बेटे को अपनी गोद में देख खुशी से रोते हुए उसे चूमने लगी,

तभी आकाश कमरे में आए, उनके साथ डॉक्टर भी थें,डॉक्टर ने मुझसे मेरे बच्चे को लिया और उसको चेक करने लगे, मैंने देखा कि आकाश परेशान से लग रहे थें, मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि बात क्या है!तभी डॉक्टर ने मुझे मेरे बच्चे को वापस पकड़ाते हुए कहा कि;मैं श्योर हूं “आपका बच्चा देख नहीं सकता है”!ये सुनकर मैं एकदम सुन्न हो गई! मेरी कुछ समझ ही नहीं आया कि डॉक्टर ये क्या कह रहे हैं? मेरा बच्चा तो बिल्कुल ठीक ठाक है,डॉक्टर की बात सुनकर आकाश भी उदास से चुप खड़े थें, थोड़ी ही देर में डॉक्टर वहां से चले गए ;

मैं आकाश की ओर देखते हुए उनसे पूछी,ये डॉक्टर क्या कह रहे थें?मेरा बच्चा देख नहीं सकता?लेकिन ये तो बिल्कुल ठीक है! आप इसकी आंखे देखिए आकाश कितनी सुंदर हैं ; फिर ये कैसे हो सकता है, कि मेरा बच्चा देख नहीं सकता?जरूर डॉक्टर को कोई गलतफहमी हुई होगी, तभी आकाश मेरे पास आएं और बच्चे को अपनी गोद में उठा कर रोने लगे; और बोले कि”अवनी डॉक्टर सही कह रहे थें हमारा बच्चा कभी भी देख नहीं सकता”आकाश की बात सुनकर मुझे ऐसा लगा मानो मेरे कान में किसी ने पिघला शीशा डाल दिया हो!मेरी तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं अपनी सालों की कमी अपने बेटे को पाने की खुशी में खुश होऊंँ या उसकी आंँखों की रोशनी के ना होने पर रोऊंँ! मैं कुछ देर यूं ही एकटक अपने बेटे को देखे जा रही थी, वो मुझे दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा लग रहा था, उसके निश्छल मासूम चेहरे को देख मेरा कलेजा फटा जा रहा था, मैंने तुरंत ही उसे अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी आकाश मुझे चुप कराते हुए बोले कि “रो मत अवनी”कम से कम भगवान ने हमें औलाद का सुख तो दिया ना, हमारा बच्चा उन्हीं का आशीर्वाद है देखना सब ठीक हो जाएगा, आकाश ने मुझे हिम्मत दिलाई और कुछ ही देर में मैं भी सामान्य हो गई, मुझे भी लगा कि सच ही तो है कि भगवान के आशीर्वाद से मुझे मां बनने का सौभाग्य तो मिला; मेरा बच्चा उन्हीं का आशीर्वाद है और अब यही मेरी दुनिया है और मेरी जिंदगी भी…

मैंने अपने बच्चे का नाम “अंश” रखा”हमारा अंश”, मैंने अपने जिंदगी का लक्ष्य बनाया कि मैं अपने “अंश” को कभी भी किसी पर आश्रित नहीं होने दूंगी, और न ही उसकी कमी को उसकी कमजोरी बनने दूंगी।

मैं अंश की हर छोटी बड़ी जरूरत का पूरा ध्यान रखती, मेरी रात उसके सोने से और सुबह उसे जगाने के साथ होती।

अंश के चार साल के हो जाने पर हमने उसका दाखिला एक ब्लाइंड स्कूल में करवाया।लेकिन आगे का सफर हमारे और हमारे अंश के लिए आसान नहीं था।

कई बार अंश के पूछे सवाल मुझे अंदर तक तोड़ जाते थे पर मैं बड़ी हिम्मत से बिना टूटे बिना रोए उसके सारे सवालों का जवाब देती, जब भी वो मुझसे पूछता कि, मांँ मुझे हर चीज काली ही क्यों दिखती है? आवाजें तो सुनता हूं पर कोई दिखता क्यों नहीं? आप भी मुझे नहीं दिखती पापा भी मुझे नहीं दिखते क्या आप लोगों को भी मैं नहीं दिखता हूं? क्या हर चीज काली ही है?ऐसे अनगिनत सवाल जिसका जवाब देते हुए मेरी आत्मा रो देती ।

समय निर्बाध गति से बढ़ता गया…

अंश अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुका था और मेरे कहने पर उसने शिक्षक के पद पर आवेदन किया था; हालांकि अंश का मन नहीं था फॉर्म भरने का क्योंकि अंश जॉब नहीं करना चाहता था, वो कहता कि वो ऐसे किसी जगह नहीं जाएगा जहां मैं उसके साथ ना रहूं,पर मैं अंश को अब बिना मेरे सहारे के आगे बढ़ते हुए देखना चाहती थी, मैं उसे अक्सर समझाती कि अब उसे खुद को खुद से ही संभालना पड़ेगा,मैं हर वक़्त तो उसके साथ नहीं रह सकती ना,लेकिन वो बड़ी लापरवाही से मुझसे कहता क्यूं आप कहां जा रही हो?आपको पता है ना कि मैं आपके बिना कुछ नहीं कर सकता; उसके मुंह से ऐसी बातें सुनकर मैं परेशान हो जाती थी,,इस बारे में मैंने आकाश से भी बात की तो उन्होंने भी वही कहा जो अंश कहता था, लेकिन मुझे ये सही नहीं लगता था क्योंकि मैं चाहती थी कि अब अंश बिना मेरे सहारे के अपनी मंजिल की ओर बढ़े,

लेकिन अंश की सोच से मैं परेशान रहने लगी। मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं! कभी कभी मैं अंश की इस सोच के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानती,मुझे ऐसा लगता कि शायद मैंने ही अंश को अपने सहारे की आदत डाल दी है अंश की इस सोच की वजह शायद मैं खुद थी।

इसी बीच अंश को गवर्मेंट जॉब मिल गई, इस खबर को सुनकर मुझे ऐसा लगा मानो आज मेरे जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया हो आखिर अंश अपने पैरों पर जो खड़ा हो गया था, उसे उसकी मेहनत का परिणाम मिल ही गया, पर न जाने क्यों अंश खुश नहीं लग रहा था! मैं अंश से पूूछी कि क्या बात है बेटा तुम अपनी सफलता पर खुश नहीं हो? वो बोला कि “मांँ मैं ये सब आपके बिना कैसे कर पाऊंगा? ऐसा क्यों सोच रहे हो बेटा आखिर यहां तक भी तो तुम खुद अपनी मेहनत से पहुंचे हो ना,आगे भी तुम सब कर लोगे और फिर मैं भी तो हमेशा तुम्हारे साथ हूं।

आज अंश को कॉलेज में ज्वाइन करने जाना था,लेकिन वो मेरे बिना जाने को तैयार नहीं था और आराम से सो रहा था मैने कई बार उसे समझाया पर वो अपनी ही जिद पर अड़ा रहा और ज्वाइनिंग के लिए नहीं गया।

तीन दिन हो चुके थें लेकिन अंश आज भी ज्वॉइन करने नहीं गया,बस एक ही बात कहता कि “मांँ मुझे नहीं जाना है मैं घर पर ही ठीक हूं”मैं उसे समझा के थक गई लेकिन वो मेरी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं था, आखिर में थक कर मैंने अंश की बेहतरी के लिए एक निर्णय लिया अब मैं अपनी ममता को अंश की कमजोरी नहीं बनने देना चाहती थी,इसलिए मैंने अंश की बेहतरी के लिए ये निर्णय लिया और आकाश को बता कर”मैं कुछ दिनों के लिए अपनी मां के यहां चली गई मैंने आकाश से कहा कि वो अंश से कह देंगे कि मैं उससे नाराज होकर गई हूंँ, शायद वो कुछ दिन मेरे बिना रहे तो समझ जाए कि उसे अब बिना सहारे ही आगे बढ़ना होगा; मेरे इस फैसले में आकाश ने मेरा साथ दिया और मैं कुछ दिनों के लिए अपनी मांँ के यहां रहने चली गई, जाने से पहले मैंने आकाश को अंश की हर एक जरूरत के बारे में समझा दिया था।

मैं अंश को पहली बार ऐसे अकेले छोड़कर ‘कहीं जा रही थी मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, पर मैंने फैसला कर लिया था मेरा फैसला सख्त तो था लेकिन अंश की बेहतरी के लिए ये जरूरी भी था ।

मैं अंश से बिना मिले और बिना कुछ बताए ही अपनी मांँ के यहां चली आई थी,मुझे अंश की बहुत याद आ रही थी,मैंने आकाश को फोन करके अंश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि”तुम्हारे जाने के बाद से अंश बहुत परेशान था और हर वक़्त सिर्फ तुम्हारे बारे में ही पूछ रहा था”जब मैंने उससे कहा कि तुम उससे नाराज होकर गई हो तो वो बहुत उदास हो गया,उसने तुम्हें फोन भी किया पर तुमने बात नहीं की, एक दो दिन तो वो बिल्कुल ही चुप था और अपने कमरे से बाहर भी नहीं आया ना ही उसने मुझसे ही कोई बात की, पर आज सुबह वो थोड़ा रिलैक्स लग रहा था, अभी तो मैं ऑफिस में हूं कहो तो शाम को तुम्हारी बात कराऊंँ?आकाश क्या वो अपनी जॉब पर जाने के लिए तैयार है? पता नहीं अवनी इस बारे में तो उसने कुछ नहीं कहा और मैंने पूछा भी नहीं; मुझे ये बात सुनकर दुःख हुआ कि अंश अभी भी अपनी जिद पर अड़ा हुआ है मेरा मन उदास हो गया, तुम इतना क्यों परेशान हो अवनी हमारे एक ही तो बेटा है “सब कुछ उसी का तो है अगर वो नौकरी नहीं करना चाहता है तो उसकी मर्जी; लेकिन आकाश “अंश ने बहुत मेहनत की है यहां तक पहुंचने में”, और अब मैं उसे हारते हुए नहीं देखना चाहती बस वो थोड़ी सी कोशिश करेगा तो अपनी मंजिल पर पहुँच जाएगा, मैं बस यही देखना चाहती हूंँ; कि मेरा बच्चा बिना सहारे आगे बढ़े,वो भी सामान्य बच्चों की तरह अपनी लड़ाई खुद लड़े, और फिर हम हमेशा तो उसके साथ नहीं रहेंगे ना,आप देखिएगा आकाश वो मेरा सपना कभी नहीं तोड़ेगा, मैंने आकाश से अंश का ध्यान रखने को कह कर फोन रख दिया ।

मांँ के यहां आए हुए मुझे आज सात दिन हो गए थें और ये सात दिन मुझे सात साल से लग रहे थें ।एक सुबह आकाश का फोन आया,इतनी सुबह आकाश का फोन देख मैं घबरा गई फोन उठाते ही मैं आकाश से पूछी सब ठीक है ना आकाश?इतनी सुबह आपका फोन! हांँ अवनी सब ठीक है बस तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी; खुशखबरी कैसी खुशखबरी!,फिर आकाश ने बताया कि “आज सुबह अंश बिना किसी की मदद के अपनी ज्वाइनिंग के लिए अकेले ही कॉलेज गया है,ये बात सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई शायद उतनी खुशी जितनी अंश को पहली बार अपनी गोद में लेकर हुई थी आखिर अंश ने मुझे हारने नहीं दिया….

मैं अंश से दूर जरूर थी पर हर वक़्त अंश के बारे में सोचती रहती, न जाने उसका जॉब का पहला दिन कैसा रहा होगा?वो कैसे हर चीज को अकेले संभाल रहा होगा, उसे परेशानी तो नहीं हो रही होगी?कई बार मन होता कि वापस अपने बेटे के पास चली जाऊंँ पर उसकी बेहतरी के लिए मैं अपनी भावनाओं को दबा देती क्योंकि मेरा अभी जाना शायद ठीक नहीं रहता कुछ दिनों में जब अंश व्यवस्थित हो जाएगा मेरा तभी जाना ठीक होगा बस यही सोच कर मैं कुछ और दिन मांँ के यहां ही रुकी थी।

एक शाम मांँ ने मुझे चिट्ठी लाकर दी और बोलीं कि “अवनी ये अंश की चिठ्ठी है” मैंने तुरंत ही चिट्ठी खोली और अपनी आंँखें बंँद कर अंश की चिट्ठी को पढ़ने लगी…

मांँ, मैं आपका अंश,कैसी हैं मांँ आप?,मुझे पता है कि आप मुझसे नाराज़ होकर गई हैं लेकिन मांँ आपने जाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि मैं आपके बिना कैसे रह पाऊंँगा? मैं जानता हूं कि आप मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करती हैं और मेरी बेहतरी के लिए ही मुझसे दूर गई हैं, पर आप ही बताइए मां जबसे मैंने होश संँभाला हैै हर वक्त सिर्फ आपको ही अपने पास पाया है, मुझे नहीं पता कि सुबह कैसी होती है पर जब आप मेरे बालों को सहलाकर जगाती हैं तब मुझेे सुबह होने का एहसास होता है;आपकी लोरी मुझे रात होने का एहसास कराती है,सिर्फ आपके स्पर्श की कोमलता को ही पहचानता हूंँ बस आपकी खुशबूू को ही महसूस कर पाता हूं,ठोकर लगने से पहले ही आपने मुझे थामा है मेरे हर आंँसू और हर हंँसी में आप शामिल रही हैं, फिर आज अचानक ही आप मुझसे नाराज हो मुझे अकेला छोड़ गईं,मुझे पता है मांँ आप भी मुझसे दूर रहकर खुश नहीं होंगी! मांँ अब से मैं आपकी हर बात मानूंगा और हां आपको पता ही होगा कि अब मैं अपने काम पर भी जाने लगा हूंँ माँ अब तो नाराजगी छोड़ दीजिए;बस अब आप अपने अंश के पास “लौट आओ मांँ”।

आंसू

जन्म से लेकर जीवन के अंतिम छोर तक साथ निभाते हैं आंसू…. जीवन के अलग-अलग भावों को दर्शाते हैं आंसू….. कभी मिलने की खुशी, कभी बिछड़ने का गम, कभी दूसरों के दुःख में शामिल होते नजर आते हैं आंसू….. कभी ग़म की परछाइयों में चुपके से आंखों के कोने से लुढ़क जाते हैं आंसू…. कभी आशाओं, कभी निराशाओं में साथ देते हैं आंसू..…कभी अकेलेपन की घुटन से बाहर निकालते हैं आंसू.…. जीवन की भूली बिसरी यादों के साथी हैं आंसू….

जीवन की कठोर परीक्षाओं की सफलता के साक्षी है आंसू… कभी दर्द भरें जख्मों के गुब्बार को बाहर निकालते हैं आंसू… कठिन डगर को जज्बे के साथ, आसान करते हैं आंसू….. अपनों के प्यार, समर्पण, त्याग, सहयोग को दर्शाते हैं आंसू… परेशानियों, कठिनाइयों में संबल देते हैं आंसू….. अनंत दुख की घड़ी में सूखकर पत्थर से बन जाते हैं आंसू…. टूटे हुए, बिखरे हुए को संवारते हैं आंसू ….. जीवन की विपत्तियों में सहारा बनते हैं आंसू….. ,

दर्द तकलीफ, करुणा में भागीदारी निभाते हैं आंसू….. जीवन के अनमोल क्षणों में सहभागी होते हैं आंसू…. बिन बोले ही मूक भाषा में सब बयां कर देते हैं आंसू…. ईश्वर की भक्ति में लीन हो या देशभक्ति की दीवानगी में,,, बरबस ही निकल आते हैं आंसू…….. कभी नवजीवन के आगमन की खुशी में मां की ममता बन जाते हैं आंसू… बच्चों की आंखों से छोटी-छोटी जिद में, मासूमियत से मोती बनकर लुढ़क जाते हैं आंसू…… कभी विस्मय में ,कभी संयोग में, कभी वियोग में, कभी साजन के आगमन के इंतजार में सावन की झड़ी लगा देते हैं आंसू..….

हर इंसान के जज्बातों, भावनाओं को उजागर करते हैं आंसू…. जीवन के हर पहलू को उजागर करते हैं आंसू….. रिश्तो की अहमियत को बताते हैं आंसू…… कभी कामयाबी का जश्न मनाते हैं आंसू…. कभी अपनों से बारिश की बूंदों में खुद को छुपा लेते हैं आंसू….. स्मरणीय घटनाओं के गवाह होते हैं आंसू….. कभी गुस्से की ज्वाला में अंगारों की तरह बहते हैं आंसू…. कभी सच्चाई, इमानदारी, कभी बदनामी, झूठ के इल्जाम भी सहते हैं आंसू…. कभी घुट-घुट कर जीने को मजबूर होते हैं आंसू….. कभी बेबसी, कभी लाचारी का शिकार बनते हैं आंसू….. जीवन के अर्थ, संघर्ष को समझाते हैं आंसू….जीवन का साथ निभाते हैं

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