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बृज सूना सूना लागे रे

‘बृज सूना सूना, लागे रे, गोपाल के बिना’ ll
*गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना ll
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,,,,,,,,,

शीकण पर, चढ़ चढ़ करके, माखन कौन चुराए रे,
कदम की डारन, झूले पड़े, पींघें कौन बढाए रे l
“गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना xll “
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,,,,,,,,,

दिखला कर, सूरत मोहिनी, मन को कौन लुभाए रे,
गोपियन के संग, हस हस के, मोतिन कौन लुटाए रे l
“गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना xll “
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,,,,,,,,,

रूठी, भवन में बैठी माँ, आ के कौन मनाए रे,
वहॉं आ के, सच्ची झूठी, बातन कौन बनाए रे l
“गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना xll “
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,,,,,,,,,

पनघट पे, पनिहारन की, मटकिन कौन उठाए रे,
रच रच कर, सुँदर लीला, आनन्द कौन फैलाए रे l
“गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना xll “
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,,,,,,,,,

वन उपवन और कुंजन में, गऊयन कौन चराए रे,
यमुना के, तट पे आकर, बँसी कौन बजाए रे l
“गोपाल के बिना, नन्दलाल के बिना xll “
बृज सूना ll सूना, लागे रे,,,,,,,,

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