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बुद्धिमान बहू !!

गंगा के तट पर पर एक सुंदर नगर था। उसमें एक व्यापारी परिवार सहित रहता था। उसके परिवार में व्यापारी पति पत्नी, उसका पुत्र और पुत्रवधू रहते थे। पुत्र का नाम अजितसेन और पुत्रवधू का नाम शीलवती था।

अजितसेन व्यापार के सिलसिले में कई दिनों तक बाहर रहता था। जबकि पुत्रवधू घर पर सास ससुर की सेवा करती थी। पूरा परिवार सुखी और प्रसन्न रहता था।

एक दिन शीलवती आधी रात के बाद खाली घड़ा लेकर बाहर गयी और बहुत देर में लौटी। उसके ससुर ने उसे वापस लौटते देख लिया। उसे शीलवती के चरित्र पर शंका हुई।

उसने सोचा कि बेटा बाहर गया हुआ है ऐसे में बहू का यह आचरण आपत्तिजनक है। इससे मेरा कुल कलंकित हो जाएगा। इस चरित्रहीन बहू को घर में रखना ठीक नहीं है। उसने अपनी पत्नी से चर्चा की और बहू को पीहर छोड़ देने का निर्णय किया।

अगले दिन ससुर शीलवती को रथ में बैठाकर स्वयं रथ हांकते हुए उसके पीहर की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक छोटी सी नदी मिली। ससुर ने बहू से कहा- “तुम रथ से उतरकर जूते उतारकर नदी पार कर लो।”

किन्तु शीलवती ने बिना जूते उतारे ही नदी पार कर ली। ससुर ने मन में सोचा कि यह दुष्चरित्र होने के साथ ही अवज्ञाकारी भी है।

थोड़ा आगे जाने पर रास्ते के किनारे एक खेत मिला। जिसमें मूंग की फसल लहलहा रही थी। ससुर ने किसान के भाग्य की प्रसंशा करते हुए कहा- “कितनी सुंदर फसल है ! इस बार तो किसान खूब लाभ कमाएगा।”

शीलवती ने उत्तर दिया, “आपकी बात तो ठीक है, किन्तु यदि यह जंगली जानवरों से बच जाए तब न।” ससुर को उसकी बात बहुत अटपटी लगी। लेकिन वह कुछ नहीं बोला।

कुछ दूर और चलने पर वे एक नगर में पहुंचे। जहां के लोग बहुत सुखी और प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। यह देखकर ससुर के मुंह से निकला- “कितना सुंदर नगर है !” शीलवती बोली- “आपकी बात तो ठीक है, यदि इसे उजाड़ा न जाये तो।”

ससुर को उसकी बात अच्छी तो नहीं लगी। किन्तु वह फिर भी कुछ नहीं बोला। कुछ दूर आगे जाने पर एक राजपुत्र दिखाई पड़ा। जिसे देखकर ससुर फिर बोल पड़ा- “अरे वाह ! यह युवक तो देखने में ही शूरवीर लगता है।”

लेकिन शीलवती फिर बोल पड़ी, “यदि कहीं पीटा न जाये तो।” इस बार तो ससुर क्रोधित हो गया। किन्तु किसी प्रकार उसने अपने क्रोध को रोका और आगे बढ़ा। थोड़ी देर बाद दोपहर हो गयी।

व्यापारी एक घने बरगद के पेड़ के नीचे रथ को रोककर पेड़ की जड़ में बैठकर आराम करने लगा। जबकि शीलवती पेड़ से दूर जमीन पर बैठ गयी। यह देखकर व्यापारी ने सोचा कि यह कैसी औरत है, जो उल्टे काम ही करती है।

थोडा देर आराम करके वे फिर आगे बढ़े। थोड़ा आगे बढ़ने पर शीलवती का ननिहाल आ गया। रास्ते में ही उसका मामा मिल गया और जिद करके उन्हें अपने घर ले गया। वहां भोजन करके शीलवती का ससुर अपने रथ में ही लेट गया।

ससुर को रथ में लेटा देखकर शीलवती भी रथ के पास ही जमीन पर बैठ गयी। उसी समय पास के बबूल के पेड़ पर बैठा एक कौवा कांव-कांव करने लगा। लगातार कांव-कांव की आवाज सुनकर शीलवती बोली-

“अरे ! तू थकता क्यों नहीं ? एक बार पशु की बोली सुनकर उसके अनुसार कार्य करने के कारण मुझे घर से निकाल जा रहा है। अब तुम्हारी बात मानकर मैं एक नई आफत मोल ले लूँ ? कल रात एक गीदड़ की आवाज सुनकर मैं नदी किनारे गयी और किनारे लगे एक मुर्दे के शरीर से बहुमूल्य आभूषण उतारकर घर ले आयी।”

“उसके कारण मेरे ससुर मुझे घर से निकाल रहे हैं। अब तू कह रहा है कि इस बबूल की जड़ में खजाना गड़ा है। तो क्या इसे निकालकर मैं एक नई विपत्ति मोल ले लूँ। मैं पशु-पक्षियों की बोली समझती हूँ तो इसमें मेरा क्या दोष ?”

शीलवती का ससुर उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने बबूल की जड़ में खुदाई करके देखा तो उसे सचमुच खजाना मिल गया। वह बहुत प्रसन्न हुआ और बहू की बड़ाई करने लगा और उसे लेकर वापस घर की ओर चल पड़ा।

रास्ते में उसने पूछा कि तुम बरगद की छाया में क्यों नहीं बैठी ? शीलवती ने उत्तर दिया, ” वृक्ष की जड़ में सर्प का भय रहता है, ऊपर से चिड़ियां भी बीट करती हैं। इसलिए वृक्ष की जड़ से दूर बैठना ही बुद्धिमानी है।” ससुर उसके उत्तर से प्रसन्न हुआ।

फिर उसने शूरवीर राजपुत्र के विषय में पूछा। जिसके उत्तर में शीलवती ने बताया कि वास्तविक शूर वही होता है जो प्रथम प्रहार करता है। इसी प्रकार खुशहाल नगर के बारे में उसने कहा कि जिस नगर के लोग आगंतुक अतिथियों का स्वागत नहीं करते। वह वास्तव में आदर्श और खुशहाल नहीं होता है।

अंत में ससुर ने जूते पहने नदी पार करने का कारण पूछा। जिसके जवाब में शीलवती ने कहा, “नदी में विषैले जीव जंतुओं का भय होता है। इसके अलावा नदीतल में कंकड़-पत्थर होते हैं। इसलिए नदी तालाब को सदैव जूते पहने ही पार करना चाहिए।

शीलवती का ससुर उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण बातें सुनकर अति प्रसन्न हुआ। उसके हृदय में शीलवती के लिए प्रेम और सम्मान बढ़ गया। घर पहुंचकर उसने शीलवती को घर की सारी जिम्मेदारी दे दी।

सीख- Moral

व्यक्ति को हमेशा हर परिस्थिति में अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। बुद्धि के प्रयोग से मनुष्य कठिन परिस्थितियों से भी आसानी से पर पा लेता है।

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