Breaking News

मन पर नियंत्रण पर बौद्ध कहानी

मन पर नियंत्रण पर बौद्ध कहानी

मन में उठ रहे सवालों को कैसे शांत करें, बेचैनी को कैसे शांत करें। इस कहानी में मैं आपको चार ऐसी आदतों के बारे में बताने वाला हूं जिसे आप अपने जीवन में अपनाकर एक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं और अच्छे कामों में अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अगर आप इस कहानी को शुरू से लेकर अंत तक पढ़ते हैं तो यहां पर बताई गई यह चार आदतें आपकी पूरी जिंदगी को बदल सकते हैं जो की है।

  1. दूसरों के मन को पढना छोड दो।
  2. ये सोचना की असफल हो गए हो तो लोग हंसेंगे।
  3. समय को काटना छोड दो।
  4. यह सोचना छोड दो कि मुझसे बडे बडे लोग नहीं कर पाए तो मैं कैसे कर पाऊंगा?

अगर आप इन चार आदतों को अपने जीवन में अपना लेते हैं तो फिर आप अपने जीवन को एक खुशहाल जिंदगी में बदल देंगे और फिर आपका मन कभी भी बेचैन नहीं होगा ना ही उदास रहेगी और ना ही बेफिजूल के कामों में व्यस्त रहेगा।

एक बार किसी राज्य का राजकुमार महात्मा बुद्ध के पास आता हैं और वह महात्मा बुद्ध से कहता हैं। आप हमेशा कहते रहते हैं कि ध्यान करो। ध्यान करो। लेकिन, मेरे लिए ध्यान करना तो दूर की बात है। मैं कुछ समय के लिए अपनी आंखें बंद करके शांति से भी नहीं बैठ पाता हूं। मेरा मन इतना बेचैन है कि यह हर समय कुछ ना कुछ सोचता रहता है। मैं जब भी ध्यान करने बैठता हूं, तो मेरे अंदर विचारों का तूफान आने लगता है। लोगों के बारे में सोचकर, अपने जीवन की बीती घटनाओं के बारे में और अपने भविष्य के बारे में और ऐसी ही ना जाने कितने सारे अजीबोगरीब विचार लगातार मेरे मन में आते रहते हैं मैं इन्हें रोकने की बहुत कोशिश करता हूं। लेकिन जब मैं इन्हें रोकने मैं अफल हो जाता हूं। तो मैं ध्यान को तोडकर बैठ जाता हूं। इतनी बातें कहने के बाद वह महात्मा बुद्ध की ओर देखता है और कहता है। बुद्ध आप मेरी इस समस्या का कोई समाधान बताएं?

बुद्ध ने कहा मैं क्या समाधान बता सकता हूँ? सोचो तुम्हारा ही मन है, लेकिन यह तुम्हें कुछ देर तक आंख बंद करके बैठने भी नहीं देता है। कितना आज़ाद कर रखा है तुमने इसे? राजकुमार ने कहा, बुद्ध मैंने बहुत सोचा लेकिन मुझे अपनी इस समस्या का कोई समाधान समझ नहीं मिला। इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूँ, अब आप ही कोई रास्ता दिखाए? बुद्ध ने कुछ देर तक राजकुमार के चेहरे की तरफ बडे ध्यान से देखा और फिर कहा। ठीक है,

तुम ये चार आदतें छोड दो और फिर तुम्हारा मन लगने लगेगा। राजकुमार पूरे ध्यान लगाकर बुद्ध की बातें सुनने लगा। बुद्ध ने कहा,

पहली आदत दूसरों के मन को पढना छोड दो। तुम और तुम्हारे जैसे ज्यादातर लोग यही गलती कर रहे हैं कि वो दूसरों की मन की बातों को पढने का प्रयास कर रहे हैं, की अच्छा सामने वाला मेरे बारे में ऐसा सोच रहा है और यही एक आदत तुम्हें सबसे ज्यादा बेचैन और परेशान कर रही है। ज्यादातर उत्सवों पर लोग दूसरों के मन की बातों को गलत और नकारात्मक तरीके से ही पढते है। जैसे कि लोग अक्सर सोचते हैं कि दूसरे लोग उनकी तरक्की से जलते हैं, उसे नीचा दिखाना चाहते हैं। उसे पसंद नहीं करते, उसकी मदद नहीं करना चाहते और ऐसी ही ना जाने कितनी सारी नकारात्मक बातें ये लोग दूसरों के प्रति अपने अंदर बैठा लेते हैं, फिर उनके बारे में ही सोचते रहते है, उनसे बदला लेने के तरीके सोचते रहते हैं, उन्हें नीचा दिखाने के मौके ढूंढते रहते हैं। और दूसरों के प्रति यही नकारात्मक सोच इन्हें दुखी करती है। और फिर ये लोग बेचैनी महसूस करते हैं। इसलिए दूसरे लोग क्या सोच रहे हैं इसका अनुमान लगाना बंद करो।दूसरे लोगों के विचारों को पढने की कोशिश करना बंद करो। अगर पढना ही है तो खुद के विचारों को पढना शुरू करो कि तुम्हारे अंदर क्या चल रहा है? कहीं तुम नकारात्मक सोच, शिकायत या बुराइई करने जैसी आदतों के शिकार तो नहीं हो रहे हो? बुद्ध ने कहा,

दूसरी आदत ये सोचना की असफल हो गए हो तो लोग हंसेंगे। हंसने दो, लोगों को असफलता पर हंसना तो लोगों का धर्म है, क्योंकि अगर तुम सफल हो जाते तो यही तो वो लोग हैं जो तुम्हारी तारीफ करते, तुम्हें सम्मान देते तुम पर गर्व करते। अगर तुम अपनी सफल होने पर दूसरों से तारीफ की उम्मीद करते हो तो अपनी असफलता पर उनके हंसने से तुम्हें दुखी नहीं होना चाहिए और समस्या ही यही है कि हम इंसान असफलता को बुरा मानते हैं, जबकि असफल होना सफल होने से भी ज्यादा जरूरी है। क्योंकि बिना असफल हुए सफल इंसान के अंदर घमंड और दूसरों को खुद से छोटा समझने की भावना पैदा करती है, जबकि असफलता हमें विनम्र रहना, धैर्य रखना और लगातार प्रयास करना सिखाती है। इसलिए असफलता को बुरा मत समझो और अगर तुम्हारे काम में असफल होने की संभावना नहीं है तो इसका अर्थ है कि तुमने अपना लक्ष्य अपनी क्षमताओं से छोटा बनाया है और अगर लोग तुम पर हँस नहीं रहे, तुम्हें ताने नहीं मार रहे हैं, तुम्हारी बुराई नहीं कर रहे हैं तो तुम अंदर से मरे हुए हो। तुम अपने मानसिक सीमाओं से बाहर जाकर कुछ नया करने का प्रयास नहीं कर रहे हो क्योंकि असफल भी वही होता है जो कुछ नया करने का प्रयास करता है। और एक बात हमेशा याद रखना अगर तुम्हारे अंदर असफल होने का साहस नहीं है तो तुम कभी भी तुम बडा लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते जो तुम करना चाहते हो। इसलिए असफल होने और लोगों के हंसने से डरना बंद कर दो। बुद्ध ने आगे कहा,

तीसरी आदत समय को काटना छोड दो। लोगों को लगता है कि वो समय को काट रहे हैं, लेकिन असल में समय हर बार उन्हें काट रहा है। लोगों के द्वारा समय को व्यर्थ के कामों में बर्बाद करने का केवल एक ही कारण है और वह यह है कि उन्हें लगता है कि उनके पास बहुत समय है, जबकि सच्चाई यह नहीं है क्योंकि उनसे पहले वाले लोगों को भी यही लगता था कि उनके पास बहुत समय है। लेकिन उन्हें पता नहीं चल पाया कि कब समय बीत गया और उनका बुलावा आ गया और जब तक उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब तक समय उनके हाथ से निकल चुका था। बस पश्चाताप रह गया था कि सारा जीवन व्यर्थ के कामों में बर्बाद कर दिया और फिर वो चले गए। इस दुनिया से बिना खुद को जाने। बिना इस जीवन की सच्चाई को समझें। इसलिए जब तक यह जीवन है, इसे अच्छे कामों में लगाओ।खुद को जानने में, दूसरों की मदद करने में, लोगों को सही राह दिखाने में, मानवता के कल्याण में और दूसरी बात समय को बर्बाद करने से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली है। हालांकि समय काटने से तुम्हें क्षणिक खुशी तो महसूस हो सकती है, लेकिन जब तुम्हें होश आता है और तुम देखते हो कि कितना सारा समय बर्बाद किया जा चुका है, तब तुम्हें खुद पर क्रोध आता है और तुम पश्चाताप के भाव से भर जाते हो और फिर यही पश्चाताप का भाव तुम्हारे अंदर तनाव पैदा करता है और तुम बेचैन हो जाते हो और लगातार अपनी उस गलती के बारे में सोचते रहते हो। फिर तुम्हारा किसी भी काम में मन नहीं लगता और तुम उदास रहने लगते हो और यह चक्र लगातार चलता रहता है, जिसकी शुरुआत हुई थी समय को काटने से। इसलिए समय को काटना बंद करो और वो करना शुरू करो जो जरूरी है। बुद्ध ने कहा

चौथी आदत यह सोचना छोड दो कि मुझसे बडे बडे लोग नहीं कर पाए तो मैं कैसे कर पाऊंगा? असल में दूसरों से खुद की किसी भी चीज़ में तुलना करना ही व्यर्थ है। सब की परिस्थितियां अलग हैं। सबकी सोच अलग है। और क्या हुआ? अगर दूसरे नहीं कर पाए तो हो सकता है कि तुम ही कर जाओ, क्योंकि अक्सर वही लोग इतिहास रचते हैं जिनसे ज्यादा उम्मीद नहीं होती और फिर हो सकता है कि जिसे तुम बडा समझ रहे थे, जिसके लिए तुम सोच रहे थे।की उसने बहुत मेहनत की है, बहुत प्रयास किया है। उसने कभी उतना प्रयास किया ही ना हो, केवल मेहनत करने का दिखावा किया हो, क्योंकि ज्यादातर लोग कभी उतनी मेहनत करते ही नहीं है जितनी उन्हें अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए करनी चाहिए और दूसरे लोगों के सामने यह दिखाने का प्रयास करते रहते हैं कि मैंने तो बहुत मेहनत की थी लेकिन मेरी किस्मत ही खराब थी और यही वो लोग हैं जो दूसरों को बातों ही बातों में कहते रहते हैं कि जब इतनी मेहनत करने के बाद मैं सफल नहीं हो पायातो तुम कैसे हो पाओगे? लेकिन अंदर ही अंदर यह इस बात को जानते हैं कि उन्होंने कभी उतनी कोशिश नहीं की थी। जितनी उन्हें करनी चाहिए थी। ये बस दूसरों की नजरों में, अपनी इज्जत बचाने के लिए और इस डर से कि कहीं दूसरा व्यक्ति इनसे आगे ना निकल जाए। यह अपने अधूरे प्रयास से घबराते रहते हैं और दूसरों को डराते रहते हैं कि जब मैं नहीं कर पाया तो तुम कैसे कर पाओगे? इसलिए किसी दूसरे असफल व्यक्ति को देखकर ये सोचना छोड दो कि तुम यह सफल हो जाओगे।तुम बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करो और बाकी सब समय पर छोड दो। बुद्ध ने आगे कहा,

अगर तुमने ये चार आदतें छोड दी तो तुम्हारा मन एकदम शांत हो जाएगा और फिर तुम जहाँ चाहो वह अपना मन लगा सकते हैं। इतना कहकर बुद्ध मौन हो गई और राजकुमार को भी अब समझ आ चुका था कि उसे क्या करना है। उसने मन ही मन उन चारों आदतों को छोडने का निश्चय किया और बुद्धि का धन्यवाद कर वहाँ से चला गया। दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं अगर मैं कोई काम करता हूं तो लोग उसे कम को लेकर हसेंगे इसके अलावा हमें अपना व्यर्थ ही समय बर्बाद नहीं करना चाहिए इसके अलावा हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर किसी व्यक्ति से कोई काम नहीं हो पाया है तो मैं उसे नहीं कर पाऊंगा अगर दोस्तों आप मेहनत से किसी भी कम को करते हैं तो कोई भी काम छोटा या बडा नहीं होता और एक ना एक दिन सफलता अवश्य मिलती है। आपको यह पोस्ट केसी लगी?

Check Also

malik-naukar

जीवन को खुशी से भरने की कहानी

रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं