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टोपीवाला और बंदर

बहुत पुरानी बात है… एक टोपीवाला था। वह मस्ती में हाँक लगाता, “टोपियाँ ले लो, टोपियाँ… रंग बिरंगी टोपियाँ, पाँच की, दस की, हर उम्र के लिए टोपियाँ ले लो…” एक शहर से दूसरे शहर टोपियाँ बेचने जाया करता था।

एक बार जंगल से गुजरते समय वह थककर एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठ गया। शीघ्र ही उसकी आँख लग गई। पेड़ पर ढेर सारे बंदरों का बसेरा था।

उन्होंने टोपीवाले को सोते देखा तो नीचे उतर आए और उसकी गठरी खोलकर टोपियाँ ले लीं और वापस पेड़ पर जाकर बैठ गए। सभी टोपियाँ पहनकर खुशी से ताली बजाने लगे।

ताली की आवाज सुनकर टोपीवाले की आँख खुल गई। उसने अपनी गठरी खोली और टोपियों को गायब पाया। इधर-उधर देखा पर टोपियाँ नहीं दिखी।

अचानक उसकी दृष्टि पेड़ पर टोपी पहने बंदरों पर पड़ी। टोपीवाले को कुछ सूझा। उसने अपनी टोपी उतारी और नीचे

फेंक दी।

नकलची बंदरों ने उसकी नकल उतारी और उन्होंने भी अपनी- अपनी टोपियाँ उतारकर नीच फेंक दीं। टोपीवाले ने उन्हें समेटा और गठरी बनाकर खुशी-खुशी हॉक लगाता हुआ चल पड़ा…, “टोपी ले लो भाई, टोपी… रंग बिरंगी टोपी…

शिक्षा : बुद्धिमता मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण निधि है।

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