एक प्रसिद्ध लेखक पत्रकार और राजनयिक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जो बेहद ही हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी है। उनकी पत्रकारिता देश ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने वैसे जगह पर भी पत्रकारिता की है जहां अन्य पत्रकारों के लिए संभव नहीं है।उनकी हसमुख प्रवृत्ति और हाजिर जवाब का कोई सानी नहीं है। एक समय की बात …
Read More »story katha
कर्म का फल
भीष्म पितामह रणभूमि में शरशैया पर पड़े थे। हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते। ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा…. आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, …
Read More »जियेंगे तो साथ में – मरेंगे तो साथ में
यह story एक ऐसे लड़के-लड़की की है जिनका प्यार एक मिशाल है. आज के दुनिया के लिए. ऐसी lover के लिए जो रोज ही अपना प्यार बदलते है. जो आज किसी के साथ तो कल किसी और के साथ. मैं यही कहुगी प्यार हो तो उनके जैसा. सभी को प्यार चाहिए मगर प्यार देना कोई नहीं जानता.
Read More »क्रोध अकेला नहीं आता
सभी धर्मों में क्रोध को सर्वनाश का प्रमुख कारण बताया गया है। महाभारत में कहा गया है कि निद्रां तंद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रिता। इसलिए आलस्य एवं क्रोध आदि दुर्गुणों को छोड़ने में ही कल्याण है। क्रोध के कारण मानव आवेश में आकर विवेक खो बैठता है तथा उसका दुष्परिणाम कई बार अत्यंत घातक होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा …
Read More »सत्कर्म करते रहो
विधि का नियम है कि मानव को जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत कुछ-न- कुछ कर्म करते रहना पड़ता है। इसलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को हर क्षण सत्कर्म में ही व्यतीत करना चाहिए। सत्कर्म करते रहने में ही जीवन की सार्थकता है। आदि शंकराचार्य कहते हैं, जो पुरुषार्थहीन है, वह वास्तव में जीते-जी मरा हुआ है। गीता में …
Read More »दीप जलाकर देखो
तीर्थंकर महावीर से एक दिन एक श्रद्धालु ने पूछा, ‘भगवन्, मैं सभी व्रतों का यथासंभव पालन करता हूँ। अर्जित धन का एक अंश दान करता हूँ, उपवास भी करता हूँ, किंतु कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन व्यर्थ जा रहा है। मन की शांति के लिए क्या करना चाहिए?’ यह सुनकर महावीर ने उसी से प्रश्न किया, ‘क्या केवल धन …
Read More »आचरण के बिना व्यर्थ
दार्शनिक राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्वयं शिक्षक रहे थे। वह कहा करते थे, वही शिक्षा सार्थक कही जाएगी, जो सदाचारी व संस्कारी बनने की प्रेरणा देती है। संस्कारहीन शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को यह विवेक नहीं रहता कि क्या करने में कल्याण है। इसलिए शिक्षा के साथ-साथ आचरण की शुचिता पर आवश्य ध्यान देना चाहिए। रावण ने सोने की लंका बनाई। …
Read More »ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि प्रत्येक प्राणी में परमात्मा के दर्शन करनेवाला और प्रत्येक जीव से प्रेम करनेवाला सच्चा ब्रह्मज्ञानी होता है। एक दिन ब्रह्मनिष्ठ संत उड़िया बाबा गंगा तट पर श्रद्धालुओं को उपदेश दे रहे थे। उन्होंने अचानक दोनों हाथों से गंगाजी की बालुका (रेती) उठाई और पास बैठे भक्त को संबोधित करते हुए कहा, ‘शांतनु, जब तक …
Read More »धन की तृष्णा
सभी धर्मशास्त्रों में धन-संपत्ति तथा अन्य सांसारिक पदार्थों के प्रति तृष्णा को पतन का मूल कारण बताया गया है। महाभारत के वन पर्व में कहा गया है, तृष्णा ही सर्वपापिष्ठा अर्थात् तृष्णा सर्वाधिक पापमयी है। तृष्णा के कारण मानव घोर पाप कर्म करने में भी नहीं हिचकिचाता। विष्णु पुराण में कहा गया है, ‘जो व्यक्ति धन-संपत्ति को भगवान् की धरोहर …
Read More »दुःख में सुमिरन
कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से दुःख स्वीकार करने को तत्पर नहीं हो सकता। सभी हर क्षण सुखी रहने की कामना करते हैं। महाभारत में जरूर पांडवों की माता कुंती का प्रसंग मिलता है, जो भगवान् से प्रार्थना करती हैं, ‘प्रभु, मेरे जीवन में समय-समय पर दुःख का आभास होते रहना चाहिए। मैंने अनुभव किया है कि सुख में आपकी याद …
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