भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता में अपने – आपको अव्यय आत्मा कहा है । इसी अव्ययात्म – स्वरूप का विशेषरूप से स्पष्टीकरण है – लोक में दो पुरुष हैं – एक क्षर, दूसरा अक्षर । इंद्रियों से जो जाने जाते हैं वे सब भूत क्षर हैं, उनमें कूटस्थ – नित्यरूप से रहने वाला – विकृत न होने वाला पुरुष अक्षर कहा …
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श्रीकृष्ण अवतार
श्रीकृष्णावतार – प्रभु का साक्षात स्वरूप यह ईश्वर और अवतार का रहस्य दृष्टि में रखकर अब भगवान श्रीकृष्ण के चरित्रों की आलोचना कीजिए, तो स्फुटरूप से भासित हो जाएंगा कि वे ‘पूर्णावतार’ हैं । दुराग्रह छोड़ दिया जाएं तो विवश होकर कहना ही पड़ेगा कि ‘कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’ (श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान – परब्रह्म परमेश्वर हैं ) । पहले बुद्धि के …
Read More »महात्मा की कृपा
पुण्यभूमि आर्यावर्त के सौराष्ट्र – प्रांत में जीर्णदुर्ग नामक एक अत्यंत प्राचीन ऐतिहासिक नगर है, जिसे आजकल जूनागढ़ कहते हैं । भक्तप्रवर श्रीनरसिंह मेहता का जन्म लगभग सं0 1470 में इसी जूनागढ़ में एक प्रतिष्ठित नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम था कृष्णदामोदर दास तथा माता का नाम लक्ष्मी गौरी । उनके एक और बड़े …
Read More »कर्मयोग
जन्म – जन्मांतर में किये हुए शुभाशुभ कर्मों के संस्कारों से यह जीव बंधा है तथा इस मनुष्य शरीर में पुन: अहंता, ममता, आसक्ति और कामना से नए – नए कर्म करके और अधिक जकड़ा जाता है । अत: यहां इस जीवात्मा को बार – बार नाना प्रकार की योनियों में जन्म – मृत्युरूप संसारचक्र में घुमाने के हेतुभूत जन्म …
Read More »श्रीकृष्ण की पत्नियों तथा पुत्रों के संक्षेप से नाम निर्देश तथा द्वादश
श्रीकृष्ण की पत्नियों तथा पुत्रों के संक्षेप से नाम निर्देश तथा द्वादश – संग्रामों का संक्षिप्त परिचय अग्निदेव कहते हैं – वसिष्ठ ! महर्षि कश्यप वसुदेव के रूप में अवतीर्ण हुए थे और नारियों में श्रेष्ठ अदिति का देवकी के रूप में आविर्भाव हुआ था । वसुदेव और देवकी से भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ । वे बड़े तपस्वी थे …
Read More »श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी
श्रीसूत जी ने श्रीमद्भागवत में कहा है – ‘एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’ इस वचन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने यदि अपने किसी अवतार में अपने भगवान होने को साफ – साफ प्रकट किया है तो वह केवल श्रीकृष्णावतार में । अन्य अवतारों में उन्होंने इस भेद को इस प्रकार नहीं खोला । कहा जा सकता है …
Read More »योगेश्वर श्रीकृष्ण
रासलीला तथा अन्यान्य प्रकरणों में श्रीकृष्ण नाम के साथ महर्षि वेदव्यास के द्वारा ‘योगेश्वर’ शब्द का प्रयोग होते हुए देखकर साधारण पाठकों के हृदय में सन्देह उत्पन्न होता है कि इस प्रकार के पुरुष योगेश्वर कैसे हो सकते हैं । विदेशी लोगों ने तो भ्रमवश श्रीकृष्णभगवान को ‘INCARNATION OF LUST’ अर्थात् कामकलाविस्तार का ही अवतार कह दिया है । हमारे …
Read More »आदर्श गृहस्थ
श्रीमद्भागवत के वर्णन से यह पता लगता है कि भगवान श्रीकृष्ण आदर्श गृहस्थ थे । भागवत में वर्णन आता है कि जब श्रीनारद जी के दिल में यह प्रश्न उठा कि एक श्रीकृष्ण 16108 रानियों के साथ कैसे गृहस्था चला रहे हैं । तो इसकी जांच करने के लिए वह द्वारका पहुंचे और भगवान की एक – एक पत्नी के …
Read More »परात्पर श्रीकृष्णावतार का प्रयोजन विमर्श
दीनदयालु भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्णचंद्र के चरित्रावलोकन में सतत निमग्न रहनेवाले, ‘अनन्याश्चिन्तयन्तोमाम्’ इत्यादि वचन के अनुसार पराकाष्ठा की अनन्यतापर आरूढ़ हुए आश्रितों के लिए दीनबंधु परम प्रभु को क्या – क्या नहीं करना पड़ता है ? सब प्रकार की सेवा करना, दूत बनना, सारथि बनना और उसी समय गुरु बनकर उपदेश भी देना इत्यादि अनेक भाव से अपने आश्रितों को प्रसन्न …
Read More »गीता के उपदेष्टा श्रीकृष्ण
परब्रह्म पुरुषोत्तम भगवान अपनी माया का अपनी योगमाया का अधिष्ठान करके मनुष्य रूप से सृष्टि में प्रकट होते हैं और संसार – चक्र की स्थानविच्युता धुरी को पुन: सुव्यवस्थित कर, अनेकता में एकत्व का अर्थात् भिन्न – भिन्न रूप से दिखनेवाले व्यक्तियों का मूलस्वरूप एक ही है, यह भान होने के लिए सुविधा प्रदान कर देते हैं । इस बात …
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