जवाहरलाल नेहरू अपने परिचितों के दुःख-दर्द के बारे में सुनकर द्रवित हो उठते थे। एक बार नेहरूजी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने लखनऊ पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्हें पता लगा कि लालबहादुर शास्त्रीजी की बेटी चेचक से पीड़ित थी और आर्थिक वजहों से समुचित इलाज न हो पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई । शास्त्रीजी उन दिनों लखनऊ में …
Read More »Panchatantra
अहंकार त्यागो !!
राजगृह के राजकीय कोषाध्यक्ष की पुत्री भद्रा बचपन से ही प्रतिभाशाली थी। उसने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध एक युवक से विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसे पता चला कि वह दुर्व्यसनी और अपराधी किस्म का है। एक दिन युवक ने भद्रा के तमाम आभूषण कब्जे में ले लिए और उसकी हत्या का प्रयास किया, पर भद्रा ने युक्तिपूर्वक …
Read More »शील अनूठा रत्न है !!
धर्मशास्त्रों में शील (चरित्र) को सर्वोपरि धन बताया गया है। कहा गया है कि परदेश में विद्या हमारा धन होती है। संकट में बुद्धि हमारा धन होती है। परलोक में धर्म सर्वश्रेष्ठ धन होता है, परंतु शील ऐसा अनूठा धन है, जो लोक-परलोक में सर्वत्र हमारा साथ देता है। कहा गया है कि शीलवान व्यक्ति करुणा एवं संवेदनशीलता का अजस्र …
Read More »नर से नारायण !!
हमारे ऋषि-मुनियों तथा धर्मशास्त्रों ने संकल्प को ऐसा अमोघ साधन बताया है, जिसके बल पर हर क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है। स्वाम विवेकानंद ने कहा था, ‘दृढ़ संकल्पशील व्यक्ति के शब्दकोश में असंभव शब्द नहीं होता। लक्ष्य की प्राप्ति में साधना का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। संकल्प जितना दृढ़ होगा, साधना उतनी ही गहरी और फलदायक होती जाएगी।’ …
Read More »जिससे सीखा वही गुरु !!
भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यंत महत्त्व दिया गया है स्कंदपुराण में कहा गया है, अज्ञान तिमिरंधश्च ज्ञानांजनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः। यानी जो गुरु अज्ञान के अंधकार में दृष्टिहीन बने अबोध शिष्य की आँखों को ज्ञान का अंजन लगाकर आलोकित करता है, उससे अधिक प्रणम्य कौन है। पिता और माता को शास्त्रों में नैसर्गिक गुरु बताया गया है। …
Read More »ढाई आखर प्रेम का
एक बार सत्संग के दौरान परम भागवत संत अखंडानंद सरस्वती ने अपने गुरु उड़िया बाबा से प्रश्न किया, ‘महाराज, पंडित कौन है?’ उड़िया बाबा ने बताया, ‘शास्त्र में कहा गया है- आत्मज्ञान समारम्भस्तितिक्षा धर्म नित्यता। यमर्थात्रापकर्षन्ति स वै पंडित उच्यते।’ यानी जिन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान है, जो धर्मानुसार जीवन जीते हैं, दुःख सहन करते हैं और जो धन …
Read More »बलूत का पेड़ व नरकट के पौधे !!
एक झील के किनारे पर एक विशाल बलूत का वृक्ष था। उसका तना बहुत मोटा था और शाखाएँ बहुत बड़ी-बड़ी थी। उसकी जड़ें धरती में बहुत अंदर तक गई हुई थीं। जिनकी सहायता से वृक्ष बहुत मजबूती से धरती पर खड़ा था। वृक्ष को अपनी कद-काठी पर बड़ा घमंड था। के बलूत वृक्ष के पास ही निकट के कुछ …
Read More »मोर और बगुला !!
एक समय की बात है। एक जंगल में एक मोर घूम रहा था। आकाश काले बादलों से घिरा हुआ था और ऐसा लगता था कि कुछ ही देर में वर्षा होने लगेगी। बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर खुश हो गया और अपने पंख फैलाकर नाचने लगा। उसे अपने नृत्य व सुंदरता पर बड़ा नाज था। नाचते हुए मोर के …
Read More »कंजूस की नियति !!
किसी समय एक गाँव में एक कंजूस व्यक्ति रहता था। उसके पिताजी एक धनवान व्यक्ति थे और मरते समय उसके लिए वह बहुत सारा धन छोड़ कर गए थे। कंजूस को हमेशा चोरों का डर सताता था। इसलिए वह उस धन की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहता था। धन की चिंता में उसका दिन का चैन और रातों की …
Read More »विशाल पर्वत और छोटी गिलहरी !!
एक दिन एक गिलहरी एक पर्वत के पास खुशी से चहकते हुए खेल रही थी। पर्वत की नजर उस पर पड़ी तो उसने मन में सोचा ‘इस गिलहरी का छोटा-सा शरीर किसी भी काम का नहीं है फिर भी यह इतनी खुश कैसे रहती है?’ पर्वत ने गिलहरी को बुलाया और बोला, “कितनी छोटी हो तुम! किसी भी काम …
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